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44. दंसणपुव्वं णाणं छदमत्थाणं ण दोण्णि उवउग्गा।
जुगवं जम्हा केवलिणाहे जुगवं तु ते दोवि।।
दर्शन
पुव्वं
णाणं
प्रारंभ में ज्ञान छदमस्थों के नहीं .
*दंसण- (मूलशब्द) (दंसण) 1/1
पुव्वं (अ) = प्रारंभ में
(णाण) 1/1 छदमत्थाणं (छदमत्थ) 6/2 वि
अव्यय दोणि (दो) 1/2 वि उवउग्गा (उवउग्ग) 1/2 जुगवं
अव्यय जम्हा
अव्यय केवलिणाहे [(केवलि) वि-(णाह)
7/1] अव्यय अव्यय
(त) 1/2 सवि दोवि
(दोवि) 1/2 वि
उपयोग एक साथ क्योंकि केवली भगवान में
जुगवं
एक साथ
परन्तु
AC
दोनों
अन्वय- छदमत्थाणं दंसणपुव्वं णाणं जम्हा दोण्णि उवउग्गा जुगवं ण तु केवलिणाहे ते दोवि जुगवं।
अर्थ- छदमस्थों के (स-रागियों के) प्रारंभ में दर्शन (होता है) (फिर) ज्ञान क्योंकि (उनके) दो उपयोग (दर्शन और ज्ञान) एक साथ नहीं (होते हैं)। परन्तु केवली भगवान में वे (दर्शन और ज्ञान) दोनों एक साथ (होते हैं)।
प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517)
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द्रव्यसंग्रह
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