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ववहारा सुहदुक्खं पुग्गलकम्मप्फलं पभुजेदि। आदा णिच्छयणयदो चेदणभावं खु आदस्स।।
ववहारा
व्यवहारनय से सुख-दुःख को
सुहदुक्खं
पुग्गलकम्मप्फलं
पुद्गल कर्मों के फल
पभुंजेदि
आदा णिच्छयणयदो
(ववहार) 5/1 [(सुह)-(दुक्ख)
2/1] [(पुग्गल)-(कम्म) -(प्फल) 2/1] (पभुंज) व 3/1 सक (आद) 1/1 (णिच्छयणय) 5/1 पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय [(चेदण)-(भाव) 2/1] अव्यय (आद) 6/1
भोगता है आत्मा निश्चयनय से
चेदणभावं
चेतन भाव को
आदस्स
निज के
अन्वय- आदा ववहारा पुग्गलकम्मप्फलं सुहदुक्खं पशुंजेदि णिच्छयणयदो आदस्स खु चेदणभावं।
अर्थ- आत्मा व्यवहारनय से पुद्गल कर्मों के फल सुख-दुःख को भोगता है। (अशुद्ध) निश्चयनय से निज के ही चेतन (राग-द्वेष आदि अशुद्ध) भाव को (भोगता है)। (शुद्धनय से शुद्ध भावों को भोगता है)।
द्रव्यसंग्रह
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