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25. होंति असंखा जीवे धम्माधम्मे अनंत आयासे । मुत्ते तिविह पदेसा कालस्सेगो ण तेण सो काओ ।।
होंति
असंखा
जीवे
धमाधम्मे
* अणंत (मूल
आयासे
शब्द) (अणंत) 1/2 (आयास) 7/1 (मुत्त) 7 / 1 वि
मुत्ते
* तिविह (मूल शब्द ) (तिविह) 1 / 2 वि
पदेसा
(पदेस) 1/2 [(कालस्स) + (एगो)]
कालस्सेगो
कालस्स (काल) 16/1 एगो (ग) 1 / 1 वि
अव्यय
ण तेण
सो काओ
**
(हो) व 3 / 2 अक (असंख) 1/2 वि
(जीव) 7/1
[(धम्म) + (अधम्मे ) ]
[ ( धम्म ) - (अधम्म) 7 / 1]
1.
अव्यय
(त) 1 / 1 सवि
(137) 1/1
द्रव्यसंग्रह
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होते हैं
असंख्यात
जीव में
धर्म और अधर्म में
अनंत
अन्वय- जीवे धम्माधम्मे असंखा पदेसा होंति आयासे अणंत मुत्ते तिविह कालस्सेगो तेण सो काओ ण ।
अर्थ - जीव (द्रव्य) में, धर्म तथा अधर्म (द्रव्य) में असंख्यात प्रदेश होते हैं। आकाश में अनंत (प्रदेश होते हैं)। मूर्त (पुद्गल) में तीन प्रकार के ( संख्यात, असंख्यात, अनंत प्रदेश) (होते हैं)। काल का / में एक (प्रदेश होता है)। इसलिए वह 'काय' नहीं है।
आकाश में
मूर्त में तीन प्रकार के
प्रदेश
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एक
नहीं
इसलिए
वह
काय
कालका/में
में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है।
प्राकृत (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517 )
सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134 )
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