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29. आसवदि जेण कम्मं परिणामेणप्पणो स विण्णेओ।
भावासवो जिणुत्तो कम्मासवणं परो होदि।।
आसवदि जेण कम्म परिणामणप्पणो
विण्णेओ भावासवो जिणुत्तो
(आसव) व 3/1 सक प्रवेश मिलता है (ज) 3/1 सवि
जिससे (कम्म) 2/1
कर्म को [(परिणामेण) + (अप्पणो)] परिणामेण (परिणाम) 3/1. भाव से अप्पणो (अप्प) 6/1 आत्मा के (त) 1/1 सवि
वह (विण्णेअ) विधिकृ 1/1 अनि समझा जाना चाहिये (भावासव) 1/1 [(जिण)+ (उत्तो)] [(जिण)-(उत्त) भूक 1/1 जिनेन्द्र के द्वारा अनि]
कहा हुआ [(कम्म)+(आसवणं)] [(कम्म)-(आसवण) 1/1] द्रव्यकर्म का प्रवेश (पर) 1/1 वि (हो) व 3/1 अक होता है
भावास्रव
कम्मासवणं
भिन्न
परो होदि
अन्वय- परिणामणप्पणो जेण कम्मं आसवदि स जिणुत्तो भावासवो विण्णेओ कम्मासवणं परो होदि।
अर्थ-आत्मा के जिस भाव से कर्म को प्रवेश मिलता है वह जिनेन्द्र के द्वारा कहा हुआ भावास्रव समझा जाना चाहिये। (जो) द्रव्यकर्म का प्रवेश (द्रव्यास्रव) होता है (वह) भिन्न (है)।
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द्रव्यसंग्रह
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