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37. सव्वस्स कम्मणो जो खयहेदू अप्पणो हु परिणामो।
णेयो स भावमुक्खो दव्वविमुक्खो य कम्मपुहभावो ।।
समस्त
सव्वस्स कम्मणो
कर्म के
नाश का कारण
खयहेदू अप्पणो
परिणामो
(सव्व) 6/1 सवि (कम्म) 6/1 (ज) 1/1 सवि [(खय)-(हेदु) 1/1] (अप्प) 6/1 अव्यय (परिणाम) 1/1 (णेय) विधिकृ 1/1 अनि (त) 1/1 सवि [(भाव)-(मुक्ख) 1/1] [(दव्व)-(विमुक्ख) 1/1] अव्यय [(कम्म)-(पुह) वि(भाव) 1/1]
णेयो
आत्मा का निश्चय ही परिणाम समझा जाना चाहिये वह भावमोक्ष द्रव्यमोक्ष
और कर्म की पृथक
भावमुक्खो दव्वविमुक्खो
कम्मपुहभावो
अवस्था
अन्वय- सव्वस्स कम्मणो खयहेदू जो अप्पणो परिणामो स हु भावमुक्खो णेयो य कम्मपुहभावो दव्वविमुक्खो।
अर्थ- समस्त कर्म के नाश का कारण जो आत्मा का परिणाम (है) वह निश्चय ही भावमोक्ष समझा जाना चाहिये और (द्रव्य) कर्म की (आत्मा से) पृथक अवस्था द्रव्यमोक्ष (है)।
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