Book Title: Dravyasangraha
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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35. वदसमिदीगुत्तीओ धम्माणुपेहा परीसहजओ य।
चारित्तं बहुभेया णायव्वा भावसंवरविसेसा।।
वदसमिदीगुत्तीओ
व्रत-समिति-गुप्ति
धम्माणुपेहा
[(वद)-(समिदि)(गुत्ति) 1/2] [(धम्म)-(अणुपेहा)
1/2] (परीसहजअ) 1/1
धर्म-अनुप्रेक्षा
परीसहजओ
परीषह को जीतना
अव्यय
और
चारित्तं
चारित्र
बहुभेया
णायव्वा
(चारित्त) 1/1 (बहुभेय) 1/2 वि (णा) विधिकृ 1/2 [(भाव)-(संवर) -(विसेस) 1/2]
बहुत भेदवाले समझे जाने चाहिये भावसंवर के भेद
भावसंवरविसेसा
अन्वय- वदसमिदीगुत्तीओ धम्माणुपेहा परीसहजओ य चारित्तं बहुभेया भावसंवरविसेसा णायव्वा।
अर्थ-व्रत-समिति-गुप्ति-धर्म-अनुप्रेक्षा-परीषह को जीतना और चारित्र(ये सब) बहुत भेदवाले भावसंवर के भेद समझे जाने चाहिये।
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द्रव्यसंग्रह
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