Book Title: Dravyasangraha
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 53
________________ 33. पयडिट्ठिदिअणुभागप्पदेसभेदा दु चदुविधो बंधो। जोगा पयडिपदेसा ठिदिअणुभागा कसायदो होति।। प्रकृति, स्थिति, अनुभाग, प्रदेश भेद से और पयडिडिदिअणुभाग- [(पयडि)-(ट्ठिदि)प्पदेसभेदा (अणुभाग)-(प्पदेस) (भेद) 5/1] अव्यय चदुविधो (चदुविध) 1/1 वि बंधो (बंध) 1/1 (जोग) 5/1 पयडिपदेसा [(पयडि)-(पदेस) जोगा चार प्रकार का बंध योग से प्रकृति और प्रदेश 1/2] ठिदिअणुभागा स्थिति और अनुभाग कसायदो [(ठिदि)-(अणुभाग) 1/2] (कसाय) 5/1 पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय (हो) व 3/2 अक कषाय से होंति होते हैं अन्वय- पयडिट्ठिदिअणुभागप्पदेसभेदा बंधो चदुविधो जोगा पयडिपदेसा दु कसायदो ठिदिअणुभागा होंति। अर्थ- प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश भेद से बंध चार प्रकार का (है)। योग से प्रकृति और प्रदेश (बंध होते हैं) और कषाय से स्थिति और अनुभाग (बंध) होते हैं। (44) द्रव्यसंग्रह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120