Book Title: Dravyasangraha
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 52
________________ 32. बज्झदि कम्मं जेण द चेदणभावेण भावबंधो सो । कम्मादपदेसाणं अण्णोण्णपवेसणं इदरो ।। बज्झदि कम्मं जेण दु चेदणभावेण भावबंधो सो कम्मादपदेसणं अण्णोण्णपवेसणं इरो ( बज्झ ) व कर्म 3 / 1 सक अनि बांधा जाता है कर्म जिससे और द्रव्यसंग्रह Jain Education International (कम्म) 1 / 1 (ज) 3 / 1 सवि अव्यय [ ( चेदण) - (भाव) 3 / 1] ( भावबंध) 1/1 (त) 1 / 1 सवि [(कम्म) + (आदपदेसाणं ) ] [(कम्म) - (आद) - (पदेस) 6/2] [(अण्णोण्ण) वि - (पवेसण ) 1/1] (इदर) 1 / 1 वि आत्मभाव (राग द्वेषादि) से भावबंध वह अन्वय- जेण चेदणभावेण कम्मं बज्झदि सो भावबंधो दु कम्मादपदेसाणं अण्णोण्णपवेसणं इदरो । अर्थ- जिस आत्मभाव ( राग-द्वेषादि भाव) से कर्म बांधा जाता है वह भावबंध है और कर्म तथा आत्मा के प्रदेशों का परस्पर / आपस में प्रवेश ( वह ) अन्य (द्रव्यबंध है)। For Personal & Private Use Only कर्म तथा आत्मा के प्रदेशों का परस्पर / आपस में प्रवेश अन्य (43) www.jainelibrary.org

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