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28.
* आसव (मूल शब्द) (आसव) 1/1
* बंधण (मूल शब्द )
* संवर (मूल शब्द )
णिज्जर'
मोक्खो
सपुण्णपावा
जे
जीवाजीवविसेसा
to do
वि
आसव बंधण संवर णिज्जर मोक्खो सपुण्णपावा जे। जीवाजीवविसेसा ते वि समासेण पभणामो ॥
समासे 2
पभणामो
**
1.
2.
( बंधण) 1 / 1
( संवर) 1 / 1
( णिज्जरा ) 1 / 1
द्रव्यसंग्रह
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( मोक्ख) 1 / 1 [(स) वि- (पुण्ण ) - (पाव) 1 / 2 ] (ज) 1/2 सवि
[(जीव) + (अजीवविसेसा ) ] [(जीव) - (अजीव) -
(विसेस) 1 / 2 ]
(त) 2 / 2 सवि
अव्यय
(समास) 3 / 1
( पभण) व 1 / 2 सक
अन्वय- सपुण्णपावा आसव बंधण संवर णिज्जर मोक्खो जे जीवाजीवविसेसा ते वि समासेण पभणामो ।
अर्थ- पुण्य-पाप सहित आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा (और) मोक्ष जो (पदार्थ) जीव और अजीव (द्रव्य) के भेद ( हैं ), उनको भी (हम) संक्षेप में कहते
हैं।
आस्रव
बंध
संवर
निर्जरा
मोक्ष
पुण्य-पाप सहित
जो
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जीव और अजीव
(द्रव्य) के भेद
उनको
भी
संक्षेप में
कहते हैं
प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517 )
छंद की मात्रा की सुविधा के अनुसार दीर्घ स्वर को ह्रस्व किया गया है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 182 )
सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग।
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