Book Title: Dravyasangraha
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 43
________________ 24. संति जदो तेणेदे अत्थित्ति भणंति जिणवरा जम्हा। काया इव बहुदेसा तम्हा काया य अत्थिकाया य।। संति विद्यमान हैं चूँकि जदो तेणेदे इसलिए अत्थित्ति अस्ति कहते हैं (अस) व 3/2 अक अव्यय [(तेण)+ (एदे)] तेण (अ) = इसलिए एदे (एद) 1/2 सवि [(अत्थि )+(इति)] अत्थि (अ) = अस्ति इति (अ) = ही (भण) व 3/2 सक (जिणवर) 1/2 अव्यय (काया) 1/1 अव्यय (बहुदेस) 1/2 वि अव्यय (काय) 1/2 अव्यय (अत्थिकाय) 1/2 अव्यय भणंति जिणवरा जम्हा काया इव बहुदेसा तम्हा काया जिनवर चूँकि की तरह बहुत प्रदेशी इसलिये काय अत्थिकाया अस्तिकाय और अन्वय- जदो एदे संति तेण जिणवरा अत्थित्ति भणंति जम्हा काया इव बहदेसा तम्हा काया य अत्थिकाया य। अर्थ- चूँकि ये (द्रव्य) विद्यमान हैं इसलिए जिनवर (इनको) 'अस्ति' ही कहते हैं। चूँकि (ये द्रव्य) देह की तरह बहुत प्रदेशी (है) इसलिये 'काय' भी (कहे जाते हैं)। और (ये द्रव्य अस्ति और काय संयुक्तरूप से) अस्तिकाय (कहे गये हैं)। Education International For Personal & Private Use Only www,द्रव्यसग्रह

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