Book Title: Dravyasangraha
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 41
________________ 22 लोयायासपदेसे इक्किक्के जे ठिया हु इक्किक्का। रयणाणं रासी इव ते कालाणू असंखदव्वाणि।। लोयायासपदेसे [(लोयायास)-(पदेस) 7/1] लोकाकाश के प्रदेश पर इक्किक्के ठिया एक-एक जो . स्थित निश्चय ही एक-एक रत्नों के इक्किक्का रयणाणं (इक्किक्क) 7/1 वि (ज) 1/2 सवि (ठिय) भूकृ 1/2 अनि अव्यय (इक्किक्क) 1/2 वि (रयण) 6/2 (रासि) 1/1 अव्यय (त) 1/2 सवि (कालाणु) 1/2 [(असंख) वि-(दव्व) 1/2] रासी इव समान कालाणू असंखदव्वाणि कालाणु असंख्यात द्रव्य अन्वय- लोयायासपदेसे इक्किक्के जे इक्किक्का कालाणू ठिया ते रयणाणं रासी इव हु असंखदव्वाणि। अर्थ- लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर जो एक-एक कालाणु स्थित हैं वे (कालाणु) रत्नों के ढेर के समान निश्चय ही असंख्यात द्रव्य (हैं)। (32) द्रव्यसंग्रह www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only

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