Book Title: Dravyasangraha
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 39
________________ 20. धम्माधम्मा कालो पुग्गलजीवा य संति जावदिये। आयासे सो लोगो तत्तो परदो अलोगुत्तो।। धम्माधम्मा धर्म, अधर्म काल कालो पुग्गलजीवा संति जावदिये आयासे [(धम्म)+(अधम्मा)] [(धम्म)-(अधम्म) 1/2] (काल)1/1 [(पुग्गल)-(जीव) 1/2] अव्यय (अस) व 3/2 अक (जावदिय) 7/1 वि (आयास) 7/1 (त) 1/1 सवि (लोग) 1/1 अव्यय अव्यय [(अलोग)+ (उत्तो)] (अलोग) 1/1 (उत्त) भूक 1/1 अनि पुद्गल, जीव और रहते हैं जितने आकाश में वह लोक इसलिए दूसरी तरफ लोगो तत्तो परदो अलोगुत्तो अलोक कहा गया है अन्वय- धम्माधम्मा कालो पुग्गलजीवा य जावदिये आयासे संति सो लोगो तत्तो परदो अलोगुत्तो। अर्थ- धर्म, अधर्म, काल, पुद्गल और जीव (द्रव्य) जितने आकाश में रहते हैं वह लोक (लोकाकाश) (है)। इसलिए दूसरी तरफ अलोक (अलोकाकाश) कहा गया है। (30) Jail Education International द्रव्यसंग्रह For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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