Book Title: Dravyasangraha
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 38
________________ 19. अवगासदाणजोग्गं जीवादीणं वियाण आयासं । जेण्हं लोगागासं अल्लोगागासमिदि दुविहं । । अवगासदाणजोगं जीवादीणं वियाण आयासं जेहं लोगागासं अल्लोगागासमिदि दुविहं [ ( अवगास) - (दाण) - (जोग्ग) 1 / 1 वि] [(जीव) + (आदीणं)] [(जीव) - (आदि) 4 / 2] द्रव्यसंग्रह Jain Education International = अवकाश (जगह) देने में योग्य (समर्थ) (वियाण) विधि 2 / 1 सक ( आयास) 2 / 1 जे (अ) हं (अ) = (लोगागास) 1 / 1 [(अल्लोगागासं) + (इदि) ] अल्लोगागासं (अल्लोगागास)1/1 अलोकाकाश इदि (अ) = और (दुविह) 1 / 1 वि जीव आदि (द्रव्यों) के लिए जानो For Personal & Private Use Only आकाश को पादपूर्ति वाक्यालंकार लोकाकाश अन्वय- जीवादीणं अवगासदाणजोग्गं आयासं वियाण जेन्हं दुविहं लोगागास अल्लोगागासमिदि । अर्थ- (जो) जीव आदि (द्रव्यों) के लिए अवकाश ( जगह) देने में योग्य (समर्थ) (है) (उस) आकाश (द्रव्य) को जानो । ( वह) (आकाश द्रव्य) दो प्रकार का है- लोकाकाश और अलोकाकाश। और दो प्रकार का (29) www.jainelibrary.org

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