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17. गइपरिणयाण धम्मो पुग्गलजीवाण गमणसहयारी।
तोयं जह मच्छाणं अच्छंता णेव सो णेई।।
गइपरिणयाण
गति में परिवर्तित के लिए
[(गइ)-(परिणय) भूकृ 4/2 अनि (धम्म) 1/1 [(पुग्गल)-(जीव) 4/2]
धम्मो
धर्म
पुग्गलजीवाण
पुद्गल और जीवों के लिए गमन में सहकारी
गमणसहयारी
तोयं
जल
जैसे
जह मच्छाणं अच्छंता
[(गमण)-(सहयारि) 1/1 वि] (तोय) 1/1 अव्यय (मच्छ) 4/2 (अच्छ) वकृ 2/2 अव्यय (त) 1/1 सवि (णी) व 3/1 सक
मछलियों के लिए ठहरती हुई को नहीं
णेव
वह
णेई।
गति कराना
अन्वय- गइपरिणयाण पुग्गलजीवाण धम्मो गमणसहयारी जह मच्छाणं तोयं सो अच्छंता णेई णेव।
अर्थ- गति में परिवर्तित पुद्गल और जीवों के लिए धर्म (द्रव्य) गमन में सहकारी (होता है) जैसे मछलियों के लिए जल। (किन्तु) वह (धर्म द्रव्य) ठहरती हुई (मछलियों) को गति नहीं कराता (अर्थात् गति में प्रेरक नहीं होता)।
1.
छन्द की मात्रा हेतु 'इ' का 'ई' किया गया है।
द्रव्यसंग्रह
(27)
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