________________
18. ठाणजुदाण अधम्मो पुग्गलजीवाण ठाणसहयारी।
छाया जह पहियाणं गच्छंता णेव सो धरई।।
ठाणजुदाण
अधम्मो पुग्गलजीवाण
ठाणसहयारी
छाया
[(ठाण)-(जुद) भूक 4/2 स्थितियुक्त के लिए अनि]
(ठहरे हुओं के लिए) (अधम्म) 1/1
अधर्म [(पुग्गल)-(जीव) 4/2] पुद्गल और जीवों के
लिए [(ठाण)-(सहयारि)1/1 वि] स्थिति में सहकारी (छाया) 1/1 अव्यय (पहिय) 4/2
पथिकों के लिए (गच्छ) वकृ 2/2 चलते हुओं को अव्यय (त) 1/1 सवि (धर) व 3/1 सक ठहराता है
छाया
जह पहियाणं गच्छंता
णेव
नहीं वह
धरई।
अन्वय- ठाणजुदाण पुग्गलजीवाण अधम्मो ठाणसहयारी जह पहियाणं छाया सो गच्छंता धरई णेव।
अर्थ- स्थितियुक्त पुद्गल और जीवों के लिए (अर्थात् ठहरे हुओं के लिए) अधर्म (द्रव्य) स्थिति (ठहरने) में सहकारी होता है जैसे पथिकों के लिए छाया। (किन्तु) वह (अधर्म द्रव्य) चलते हुओं (पथिकों) को ठहराता नहीं है (अर्थात् ठहराने में प्रेरक नहीं होता)।
1.
छन्द की मात्रा हेतु 'इ' का 'ई' किया गया है।
(28)
द्रव्यसंग्रह
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org