Book Title: Dravyasangraha
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
View full book text
________________
10.
अणुगुरुदेहपमाणो उवसंहारप्पसप्पदो चेदा। असमुहदो ववहारा णिच्छयणयदो असंखदेसो वा।।
चेदा
अणुगुरुदेहपमाणो {[(अणु) वि - (गुरु) वि छोटे-बड़े शरीर
- (देह)-(पमाण) 1/1] वि} प्रमाणवाली उवसंहारप्पसप्पदो [(उवसंहार)-(प्पसप्प) संकोच-विस्तार से
5/1] पंचमी अर्थक ‘दो' प्रत्यय (चेद) 1/1
आत्मा असमुहदो (अ-समुहद) 1/1 वि समुद्घात को अप्राप्त ववहारा (ववहार) 5/1
व्यवहार (नय) से णिच्छयणयदो (णिच्छयणय) 5/1 निश्चयनय से
पंचमी अर्थक ‘दो' प्रत्यय असंखदेसो {[(असंख)-(देस) असंख्यात प्रदेशवाली
1/1] वि} अव्यय
तथा
अन्वय- असमुहदो चेदा ववहारा अणुगुरुदेहपमाणो उवसंहारप्पसप्पदो वा णिच्छयणयदो असंखदेसो।
अर्थ- समुद्घात को अप्राप्त आत्मा व्यवहार (नय) से संकोच-विस्तार (गुण) से छोटे-बड़े शरीर प्रमाणवाली (होती है) तथा (शुद्ध) निश्चयनय से (आत्मा) असंख्यात प्रदेशवाली (है)।
(20) Jal Education International
For Personal & Private Use Only
द्रव्यसग्रह www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120