Book Title: Dravyasangraha
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
View full book text
________________
8. पुग्गलकम्मादीणं कत्ता ववहारदो दु णिच्छयदो ।
चेदणकम्माणादा
सुद्धणया
सुद्धभावाणं ।।
पुग्गलकम्मादी
कत्ता
ववहारदो
दु णिच्छयदो
चेदणकम्माणादा
सुद्धणया सुद्धभावाणं
[( पुग्गलकम्म) + (आदीणं) ]
[ ( पुग्गल ) - (कम्म) -
(आदि) 6 / 2]
( कत्तु ) 1 / 1 वि
(ववहार) 5 / 1
पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय
(18)
Jain Education International
अव्यय
( णिच्छय) 5/1
पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय
[(चेदणकम्माण) + (आदा ) ]
[(चेदण) - (कम्म) 6 / 2]
आदा (आद) 1/1
(सुद्धणय) 5/1 (सुद्धभाव) 6/2
पुद्गल कर्म आदि का
कर्ता
व्यवहार (नय) से
For Personal & Private Use Only
और
निश्चय (नय) से
अन्वय-आदा ववहारदो पुग्गलकम्मादीणं कत्ता दु णिच्छयदो
भावकर्मों का
आत्मा
शुद्धनय से
शुद्धभावों का
चेदणकम्माण सुद्धणया सुद्धभावाणं ।
अर्थ- आत्मा व्यवहार (नय) से पुद्गल कर्म आदि का कर्ता है और (अशुद्ध) निश्चय (नय) से (राग-द्वेष आदि अशुद्ध) भावकर्मों का (तथा) शुद्धनय से शुद्धभावों का (कर्ता) है।
द्रव्यसंग्रह
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120