________________
7.
वण्ण रस पंच गंधा दो फासा अट्ट णिच्छया जीवे। णो संति अमुत्ति तदो ववहारा मुत्ति बंधादो।।
पंच
गंधा
स्पर्श
*वण्ण (मूलशब्द) (वण्ण) 1/2 *रस (मूलशब्द) (रस) 1/2
(पंच) 1/2 वि (गंध) 1/2
(दो) 1/2 वि फासा
(फास) 1/2 अट्ठ
(अट्ठ) 1/2 वि णिच्छया
(णिच्छय) 5/1 (जीव) 7/1
अव्यय संति
(अस) व 3/2 अक *अमुत्ति (मूलशब्द) (अमुत्ति) 1/1 वि तदो
अव्यय ववहारा (ववहार) 5/1 *मुत्ति (मूलशब्द) (मुत्ति) 1/1 बंधादो (बंध) 5/1
जीवे
आठ निश्चय (नय) से जीव में नहीं होते हैं अमूर्तिक उस कारण से व्यवहार (नय) से मूर्तिक
बंध से
अन्वय- वण्ण रस पंच गंधा दो फासा अट्ठ णिच्छया जीवे णो संति तदो अमुत्ति ववहारा बंधादो मुत्ति।
___ अर्थ- वर्ण (पाँच), रस पाँच, गंध दो, स्पर्श आठ (ये) (शुद्ध) निश्चय (नय) से जीव में नहीं होते हैं उस कारण से (जीव) अमूर्तिक है। व्यवहार (नय) से (जीव) (कर्मपुद्गल के) बंध से मूर्तिक (होता है)।
प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517)
द्रव्यसंग्रह
(17)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org