Book Title: Dharmratna Prakaran Part 03
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 14
________________ ७१ १९९ ते प्रसंगे बतावेला पांच कल्पना साधुओनां लक्षणो. गुण उपर अनुराग करवारुप भाव साधुना छठा लिंगनू स्वरुप. १६६ ते उपर पुरुषोत्तम-श्रीकृष्णनुं चरित्र. १६८ गुण उपर अनुराग करवानां बीजां लिंगो. गुण उपर अनुराग करवान फळ. गुरुनी आज्ञानु आराधन करवारुप भाव साधुना सातमा . लिंगर्नु स्वरुप. गुरुना छत्रीश गुण. गुरुना छत्रीश गुणनो बीनो प्रकार. गुरुना छत्रीश गुणनो त्रीजो प्रकार. ते प्रसंगे दश प्रकारना प्रायश्चित्तनुं स्वरूप अदार हजार शीलांग रथनी स्थापना. १९७ पिंड विशुद्धिनुं स्वरूपः ते प्रसंगे शवर राजानी वार्ता. २०२ गुरुनी आज्ञा माननारनी विशेष प्रशंसा. कुंतल देवीनुं दृष्टांत. केवा गुरुने सेववा जोइए ? तेनुं विवेचन. २११ शैलक पंथकनी कथा. संयममाथी लथडता गुरुने पण बराबर सेववाथी थता लाभ. २२३ एवा गुरुने नहि सेववाथी थती हानि. , २२६ पांच निग्रंथर्नु स्वरुप. . २२८ गुरुनी अवज्ञा करनार शिष्यने थता अनर्थ विषे आगमनुं प्रमाण. २३३ शिष्य गुणी थतां गुरुनुं गौरव थाय छे, ए उपर वज्रस्वामीनी कथा. २३६ उपर कहेला सात लिंगने धारण करनार भावसाधु थाय छ, ए वातनो उपसंहार. प्रथम कहेल एकवीश गुणनी संपत्तिवाळो पुरुष धर्म रत्नने योग्य थाय, ते विषे विवेचन. २४४ ते उपर श्रीप्रभ महाराजानी कथा. २०६ २१८ २४३. २४५

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