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प्रवचन-७३
देद ने भोजन किया। नागार्जुन के पास सुवर्णसिद्धि थी। वह यह सुवर्णसिद्धि किसी योग्य व्यक्ति को देना चाहता था । अयोग्य व्यक्ति को 'सिद्धि' नहीं दी जाती। ___ कच्ची मिट्टी के घड़े में पानी डालो तो? घड़ा ही ढह जायेगा न? वैसे अयोग्य व्यक्ति को सिद्धि दी जाय तो? उस व्यक्ति का ही अहित हो जाय! इसलिए महापुरुष, दूसरे जीवों पर उपकार की भावनावाले तो होते हैं, परन्तु वे पात्रता भी अवश्य देखते हैं। भिखारी को क्या देना? :
सभा में से : आजकल कई ऐसे भिखारी होते हैं, उनको पैसा देते हैं तो वे जुआ खेलते हैं; अच्छे कपड़े देते हैं तो बेच देते हैं। ___ महाराजश्री : ऐसे लोगों को पैसा नहीं देना चाहिए | भोजन देने में ऐसा कुछ सोचने की जरूरत नहीं है। आपने जैसे भिखारी की बात कही, वैसे कई ऐसे लोग कि जो अपने को दुःखी बताते हैं-जैनधर्मी बताते हैं, वे भी भीख माँगना सीखे हुए हैं। कोई काम-धंधा करते नहीं, धर्मस्थानों में जाते हैं और सहायता की याचना करते हैं । उनको माँगने की आदत पड़ गई है। ऐसे लोगों को पैसा देकर उनकी आदत को दृढ़ करते हो आप लोग! और इस तरह उन्हें बढ़ावा देते हो। ___ एक युवक था | ग्रेज्युएट था | मेरे पास आया | नौकरी छूट गई थी। दरिद्र हो गया था। सहायता की याचना की। मैंने उससे कहा : 'किसी उद्योगपति के वहाँ तुझे नौकरी दिला दूं, परन्तु चार बातों का पालन करना होगा। मांसाहार नहीं करना, शराब नहीं पीना, जुआ नहीं खेलना, और अपनी पत्नी को वफादार रहना | बोल, है इन बातों के पालन की तैयारी?'
उसने कहा : 'मैं कल सोचकर आऊँगा...।' अभी तक नहीं आया है। कहिए, इन बातों का भी जो पालन करने को तैयार न हो, उसको पात्र कहेंगे या कुपात्र? ऐसे कुपात्रों पर उपकार कैसे किया जाय?
लोगों को धनवान होना है, चरित्रवान नहीं बनना है! चरित्रहीनता कितनी बढ़ गई है? चरित्रहीन व्यक्ति कभी भी महान् सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता है।
नागार्जुन ने, देद में उच्चकोटि का चरित्र देखा । महान् सिद्धि को पाने की और सुरक्षित रखने की क्षमता देखी। वचनपालन की दृढ़ता देखी । नागार्जुन ने देद से कहा : 'वत्स, मैं तुझे उपकृत करना चाहता हूँ। तू यदि मेरी एक बात माने तो...।'
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