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प्रवचन- ७३
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देद का प्रत्युत्तर बहुत ही मार्मिक है। उसने नीतिशास्त्र की उक्ति को मिथ्या सिद्ध कर दिया ! नीतिशास्त्र कहता है : ' बुभुक्षितो किं न करोति पापम् ?' भूखा मनुष्य कौन-सा पाप नहीं करता है ? यानी कोई भी पाप कर लेता है । परन्तु देद, बुभुक्षित- भूखा होने पर भी अनजान घर का भोजन करने को तैयार नहीं हुआ। तीन-तीन दिन का भूखा था देद, फिर भी अपने आचारपालन में दृढ़ रहा ! वह भी एक महायोगी के सामने ... I
मनोबल गिरता जा रहा है :
आप लोग क्या अपना आत्मनिरीक्षण करेंगे ? मामूली विघ्नों में भी आप अपनी आचार-मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करते हो न ? कैसी कैसी बातें आप लोग करते हैं?
● मुसाफरी में दूसरी कोई सब्जी नहीं मिलती है इसलिए हमें जमीनकंद खाना पड़ता है। आलू की सब्जी ही मिलती है।
● पार्टी में जाना पड़ता है । वहाँ भोजन में जमीनकंद आ ही जाता है। होटल में जाते हैं, वहाँ पर भी जमीनकंद आता है।
० यों तो शराब नहीं पीते हैं... परन्तु कभी 'बॉस' के साथ पार्टी में जाना पड़ता है, वहाँ मना नहीं कर सकते हैं... थोड़ी सी शराब पीनी पड़ती है।
० रात्रि - भोजन तो करना ही पड़ता है...
ऐसी तो अनेक बातें लोग करते हैं । निःसत्त्वता व्यापक बनी है। निःसत्त्व मनुष्य आचार-मर्यादाओं का पालन नहीं कर सकता है।
निःसत्त्व और कायर मनुष्य, योगी पुरुषों की कृपा के पात्र नहीं बन सकते हैं। दिव्य कृपा, सत्त्वशील और सहनशील मनुष्य पर अवतरित होती है। देद वणिक सत्त्वशील था, सहनशील था। तीन दिन का भूखा होने पर भी, अनजान घर से योगशक्ति से मंगवाया हुआ भोजन करने से वह इनकार कर देता है! नागार्जुन जैसे योगी को मना करने में कितनी निर्भयता चाहिए? नागार्जुन प्रसन्न हो उठा :
नागार्जुन, देद वणिक की आचारदृढ़ता देखकर प्रसन्न हो गया । उसने योगबल से, जहाँ से क्षीरान्न का भोजन मंगवाया था, देद को कह दिया : 'वत्स, यह भोजन, नांदुरी नगर से, 'नाग' नाम के श्रेष्ठि के घर से मंगवाया है। नाग ने गोत्र देवता के सामने यह भोजन रखा था। इसलिए तू खा ले ।'
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