Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 9
________________ पर्वमाला शीतल जिनवर साहिबा, पाम्या मुक्ति वास, वासुपूज्य लहे अ तिथे, केवल ज्ञान ज खास...२... अरनाथ चव्या अह तिथे, दोय बंधन दिया छोड़, निश्चय ने व्यवहार थी, धर्म पक्ष लह्यो जोड़...३... दुविध धर्म प्रकाशीओ, साधु श्रावक सार, दोय नये आराधतां, भवियण लहे भव पार.. दोय वरस तप की जिओ, ऊपर वलि दोय मास, समकित तरुवर संपजे, शिव सुख संपति वास...५... चोविसमां जिनराजजो, भाख्यो तप हितकार, आदर करी आराधतां, कीत्तिचंद्र लहे सार...६... पंचमी ना चैत्यवन्दनो ज्ञान पंचमी नु चैत्यवन्दन [१] त्रिगडे बेठा वीरजिन, भाखे भविजन आगे, त्रिकरणशु तिहुं लोक जन, निसुणो मन रागे...१... आराधो भली भांत से, पांचम अजवाळी, ज्ञान आराधन कारणे, अहिज तिथि निहाळी...२.. ज्ञान विना पशु सारीखा, जाणो अणे संसार, ज्ञान आराधन थी लहो, शिवपद सुख श्रीकार...३ ज्ञान रहित क्रिया कही, काश कुसुम उपमान, लोकालोक प्रकाश कर, ज्ञान अक परधान...४... ज्ञानी श्वासोश्वासमां, करे कर्मनो छेह, पूर्व कोडि वरसां लगे, अजानी करे तेह...५... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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