Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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पर्वमाला
[६५]
गुण प्रमत्त अप्रमत्तते, भये अंतरजामी, मानस इंद्रिय दमन भूत, शम दम अभिरामी...२... चारु तिघन गुण कर्योओ, पंचम पद मुनिराज, तत्पद पंकज नमत है, हीर धर्म के काज...३...
दर्शन पद नु चैत्यवन्दन [१५] हूय पुग्गल परिअट्ट, अड्ढ परिमित संसार, गंठि भेद तब करि लहे, सब गुणनो आधार...१... क्षायक वेदक शशी असंख, उपशम पण वार, विना जेण चारित्र नाण, नवि हुवे शिव दातार...२... श्री सुदेव गुरु धर्मनी अ, रुचि लच्छन अभिराम, दर्शनकुं गणि हीरधर्म, अहनिश करत प्रणाम...३...
ज्ञान पद नु चैत्यवन्दन [१६] क्षिप्रादिक रस राम वह्नि, मित आदिम नाण, भाव मीलापसे जिनजनित, सुय वीश प्रमाण...१... भव गुणपज्जव ओहि दोय, मण लोचन नाण, लोकालोक सरूप नाण, इक केवल भाण...२... नाणावरणी नाशथी अ, चेतन नाण प्रकाश, सप्तम पदमें हीरधर्म, नित चाहत अवकाश...३...
चारित्र पद नु चैत्यवन्दन [१७] जस्स पसाये बहु पाय, जुग जुग समितेंद, नमन करे शुभ भाव लाय, कुण नरपति वृद...१... जंपे धरी अरिहंत राय, करी कर्म निकंद, सुमति पंच तिन गुप्ति युत, दे सुख अमंद...२...
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