Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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[ ६८ ]
पांच भेदथी दश तणो, विनय करी पुण्यवंत, धन धन्नो जग सेवतो, करे करमनो अंत...२... सुलभबोधि जीव जे, विनय करे अति खंत, धर्मरत्न मनमां धरी, दूर करो भव तंत...३... चारित्र पद नुं चैत्यवन्दन ( ११ )
संचित कर्म चय करे, ते चारित्र उदार, वर्ष चारित्र पर्यायथी अनुत्तर सुख असार...१... देश सर्व बे भेदथी, वर्णवतां जिनराज, श्रीदेवी उपसर्ग हठावी, वरुणदेवे सार्या काज...२.. चारित्र विण नवि मोक्ष छे, ओवी जेने प्रतीति, धर्मरत्न कहे तेहनें, नवि भव केरी भीति...३... ब्रह्मचर्य पद नुं चैत्यवंदन [१२]
सुवर्ण केरा जे करे, जिन प्रतिमा मंदिर, होड कदि नवि करो शके, ब्रह्मचर्ये जे धीर...१... सहस चोराशी साधुना, पारणके जे लाभ, विजय विजया भक्ति करे, पामे तेहिज लाभ...२... इच्छीत भोजने जे करे, क्रोड श्रावकनी भक्ति, ब्रह्मव्रतथी जिनदासने सोहागदेवीनी शक्ति...३... चोराशी चोवीशीमां, अमर कयूँ जे नाम, स्थुलिभद्र महिमानीलो, सारे वांछित काम... ४... तीर्थंकर पद पामतो, चंद्रवर्मा नृप राय,
शीयलवंतने
बंदतां,
धर्मरत्न
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चैत्य वन्दन
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महाराय ... ५...
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