Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 96
________________ [१२] चैत्य वन्दनं - ते माटे भवि तप करो अ, सर्व ऋद्धि मले सार, विधिशुं अह आराधतां, पामीजे" भव पार...६ श्री जिनवर पूजा करो, त्रिक शुद्ध त्रिकाल, तेम वली श्रुतज्ञाननों, भक्ति करो उजमाल...७ पडिकमणां बे टंकनां, ब्रह्मचर्यने धरी), ज्ञाननी सेवा करो, सहेजे भवजल तरी...८ चैत्यवंदन शुभ भावथीओ, स्तवनं थोय नवकार, श्रुतदेवो उपासना, धोरविजय हितकार...६ श्री उपधान तप नु चैत्यवन्दन विविध विषय जे तप तणां, भाख्यां श्री जिनराज, उपधान महानिशीथमां, आख्यो श्रावक काज...१ नवकार इरियावही, शक्रस्तव भगवान, अरिहंत चेइआणं लही, नामस्तव गुणगान...२ श्रुतस्तव सिद्धस्तव, तेह आखरी जाण, गुरुजन पासे आदरे, श्रावक तेह वखाण...३ माला पहेरे गुरु कने, धन धन जीवन तेह, धर्मरत्न ध्याने लहे, श्रावक शिवपुर गेह...४ श्री वर्षातप नु चैत्यवन्दन । क्लिष्ट कर्म खपाववा, वर्षीतप करे जेह, अंतराय परभव तणां, कापे भविजन तेह...१.. देववंदन त्रण कालनां, आवश्यक दोय वार, पडिलेहण पूजा वली, गणणुं दोय हजार...२... तप पूरण करी उजवे, सुलभबोधि जेह, धर्मरत्न पसायथी, पामे भवनो छेह...३... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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