Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाल ब्रह्मचारी श्री नेमिनाथाय नमः MINIST चैत्यवंदना पर्वमाला ज . संपादक :मुनि श्री दीपरत्नसागर M. Com., M. Ed. [अभिनव लघु प्रक्रिया-संस्कृत व्याकरण के सर्जक] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रम ? २ ३ * ५ ८ १७ १८ १६ २० २१ २२ २३ २४ २५ २६ अनुक्रमणिका चैत्यवन्दन बोज ना ज्ञान पंचमी ना १० पोष दशमी ना ११ मेरु तेरशन १२ चैत्र वदी आठमन १३ चैत्र सुदी तेरशन * अक्षय तृतीयान पर्युषण पर्व ना १५ १६ सिद्धचक तथा नवपद ना सामान्य पंचमी ना अष्टमी ना मौन एकादशी ना सामान्य एकादशी ना चौमासो चौदश ना सामान्य चतुर्दशी ना पंदरतिथिना ( कल्याणक युक्त) सिद्ध ना दीवाली ना गौतमस्वामी ना अन्य गणधरोना रोहिणी तप ना वर्धमान तप ना वोश स्थानक तप तथा पद ना अक्षय निधिन् उपधान तपन वर्षातपन संख्या C १० ३ w ITV Amr ५. ३ ४ १५ 3 १ १ पु १४ ३४ ४ ह "द ४ २३ पृष्ठ ५ १२ १४ २१ २६ २८ २८ ३० ३७ ३८ ३६. 30 ४० ४० ४६ ६६ ६६. ७५ ७६ =? ८ हर Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फ्र· बाल ब्रह्मचारी श्री नेमिनाथाय नमः श्री आनंद क्षमा ललित सुशीलसागर गुरुभ्यो नमः चैत्यवंदन पर्वमाला मुनि श्री दीपरत्नसागर M. Com., M. Ed. ( अभिनव लघु प्रक्रिया - संस्कृत व्याकरण के सर्जक ) [ सन् १९८६ संवत २०४५ ] संपादक फ्र फ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना स्तवन-सज्झाय-थोयना जोडाओ ना संग्रहो बहार पडेला मळे छे तेरीते चैत्यवन्दन नो संग्रह जोवामां आवेल नथी । चैत्य वन्दन मां प्रसंगने अनुरूप तेमज विविध विषयनो अक संग्रह होय ते जरूरी लाग्यु। “अभिनव हेम लघु प्रक्रिया" ना अभूतपूर्व, दळदार अने अंक मात्र सप्तांगी विवरण युक्त ग्रन्थनु सम्पूर्ण स्वतंत्र सर्जन कर्या बाद विचार्यु के शास्त्र वांचन माटेनो पायो तो मजबूत थई गयो, ज्ञानयोग मां प्रदान कर्यु तेम भक्ति योग माटे पण कंइक अभिनव प्रदान करवु। दर्शन शुद्धिना अक सचोट-सुन्दर अंग रूपे आ चैत्यवन्दन पर्वमाला श्रीसंघ समक्ष प्रस्तुत करवानो अल्प प्रयास करेल छे । 'अभिनव श्रुत प्रकाशन' नाम सार्थक करता आ संग्रह ना बीजा बे भाग मली ७०० थी वधारे चैत्यवन्दनो थशे । त्रिकाल देववंदन करतां श्रमण भगवंतो ने अन्तःकरण पूर्वक नमी पर्व दिवसोना विशिष्ट आराधकोनी अनुमोदना करता, तपस्वीओने तप अनुष्ठानमा उपयोगी बनवाना हेतु थी प्रेराइने "चैत्यवन्दन पर्वमाला" सर्व चैत्यवन्दन प्रेमीओ समक्ष मुकुछू। चैत्यवन्दन थकी चैत्योनी वन्दना करी हृदय मांथी भक्ति झरणा ने वहेवडावो तेम इच्छु। पू. साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रुप चतुर्विध संघ मारा आ प्रयास ने ज्ञान क्रिया ना समन्वय द्वारा क्षायिक सम्यग् दर्शन पामवानी अभिलाषा पूर्वक आदरनारा बने ते हार्दिक प्रार्थना सहजैन आराधना भवन नीमच (म.प्र.) अषाढ सुदी अष्टमी-२०४५ मुनि दीपरत्नसागर ___ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का बालब्रह्मचारी श्री नेमीनाथाय नमः बीजना चैत्यवन्दनो [१] बीज रोझ करी सींचिओ, प्रथम तिथिमां ओह, चन्द्रकला उदये वधे, तेम पुण्योदय रेह...१... अभिनन्दन सुमति प्रभु, दशमां शीतलनाथ, वासुपूज्य अरनाथजी, मुगतिपुरीनां नाथ...२... इत्यादिक जिनवर तणां, जनम नाण निर्वाण, बीज तणे दिन वंदतां, पामो कोड कल्याण...३... दुविह धर्म ने सेविओ, निश्चय ने व्यवहार, आगम नोआगम तणो, भावो तत्त्व विचार... ४... बीजे ठाण वर्णव्या, दोय दोय जे भेद, बीज तणे दिन मुनिवरा, ध्याता ध्यान दुभेद... ५... अंग उपांगे वर्णव्या, जीव अजोव पुण्य पाप, बंध मोक्ष दुग श्रेणिओ, भव्य अभव्यनी छाप...६... बहु श्रुत चरण कमल नमी, संशय करिओ दूर, गौतम प्रश्नोत्तर करे, श्री शुभ वीर हजूर... ७... [२] दुविध धर्म जिणे उपदिश्यो, चोथा अभिनन्दन, बोजे जनम्या ते प्रभु, भवदुःख निकंदन... १... दुविध ध्यान तुमे परिहरो, आदरो दीय ध्यान, एम प्रकाश्यु सुमति जिने, ते चविया बीज दिन...२... दोय बंधन राग-द्वेष, तेह ने भवि तजिओ, मूज पर शीतल जिन कहे, बीज दिन शिव भजिओ...३... Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२] चैत्यवन्दन जीवाजीव पदार्थनु, करो नाण सुजाण, बीज दिन वासुपूज्य परे, लहो केवल नाण...४... निश्चय ने व्यवहार दोय, एकांते न ग्रहिये, अरजिन बीज दिन चवि, ओम जिन आगम कहिये...५... वर्तमान चोवीशिये, अम जिन कल्याण, बीज दिने केइ पामिया, प्रभु नाण निर्वाण...६... अम अनन्त चोवीशिये, हुआ अनन्त कल्याण, जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां होय सुख खाण...७... श्री जिनपद पंकज नमो, सेवो बहु प्यार, बोज तणे दिन जिन तणां, कल्याणक सार...१... महा शुद बीजे जनमिया, अभिनन्दन स्वामी, वासुपूज्य केवल लह्यो, नमिले शिर नामी...२... फागण शुदी बीज वळी, चविया श्री अरनाथ, वदी वैशाखे बोजनी, शीतल शिवपुर साथ...३... श्रावण सुदी नी बीज तिथे, सुमति च्यवन जिणंद, ते जिनवर ने प्रणमतां, पामो अति आणंद...४... अतीत अनागत वर्तना, जिन कल्याणक जेह, बीज दिने चित्त धारिये, हयडे हरख धरेह...५... दुविध धर्म भगवंतजी, भाख्यो सूत्र मोझार, तेह भणो बोज आराधतां, शिवपंथ साधनहार...६... प्रह उठीने नित्य नमो, आणी प्रेम अपार, हंस विजय प्रभु नाम थो, पामो सुख श्रीकार...७... Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [३] [ ४ ] चौवीशमो जिनराजजी, चम्पापुरी आवे, चौद सहस अणगारना, स्वामी तेह कहावे...१... अढी कोश ऊंचो सही, समवसरण विरचावे, त्रिभुवनपति गुरु तेहमां, उपदेश वरसावे...२... जित शत्रु राजा तिहां, प्रभु ने वन्दन आवे, ते पण समवसरणमांही, बेसी हरषित थावे...३... भविक जीवना हित भणी, गौतम पूछे जिनने, बीज तिथि महिमा कहो, संशय हरण प्रभु अमने... ४ तव प्रभु परखदा आगले, बीजनो महिमा भाखे, पंच कल्याणक जिन तणा, ते सहु संघनो साखे... ५... बीजे अजित जनमिया, बीजे सुमति च्यवन, बीज वासुपूज्यजी, लह्यु केवल नाण... ६... दशमा शोतलनाथजी, बीजे शिव पाम्या, सातमा चक्री अर जिन, जन्म्या गुणधाम... ७... ओ पांचे जिन समरतां, भवि पामे दोय धर्म, 1 • सर्व विरति ने देश विरति टाळे पातिक मर्म... वीर कहे द्वितिया तिथि, ते कारण तमे पाळो, चन्द्रकेतु राजा परे, आतम अजवाळो... ६... ते सांभळी बहु आदरे, प्राणी बीज तिथि सार, ते आराधतां केइना. थया आतम उद्धार... १०... चोविहार उपवास करो, बीज आराधो विवेक, नय सागर कहे वीर जिन, द्यो मुजने शिव ओक... ११... Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्य वन्दन - दुविध बंधन टाळिजे, जे वळी राग ने द्वेष, आर्त रौद्र दोय अशुभ ध्यान, नवि करो लवलेश...१... बीज दिने वळी बोधि बीज, चित्त ठाणे वावो, जेम दुःख दुर्गति नवि लहो, जगमां जश चहावो...२. भावो रूडो भावनाओ, वाधो शुभ गुण ठाण, ज्ञानविमल तप तेज थी, होवे कोडि कल्याण...३.. [६] द्विविध धर्म आराधवा, भविजन बीज आराधो, जिम अन्तर परमातमा, संप्राप्ति फल साधो...१... अभिनन्दन ने सुमतिनाथ, वळी शीतलस्वामी, इत्यादिक बहु जिनवरे, केवल श्री पामी...२... जन्म दिवस पण कैंकना, कैक लह्या निर्वाण, ज्ञान विमल गुणथी वधे, जो कीजे तप मंडाण...३... द्विविध धर्म आराधतां, अविचल सुख लहो, समकित मूल सोहामणो, प्रवचन जे कहीओ...१... धर्मध्यान ने शुक्लध्यान, केरां जे अंग, द्विविध विरति जे देश सर्व, चारित्र अभंग...२... संगति कीजे बहु परे ओ, ज्ञानविमल गुरु भाण, बीज तणो तप आदरो, जिम होय कोडि कल्याण...३... बीज तिथि अति दीपति, भाखी वीर जिणंद, अभिनंदन प्रभु जनमिया, चविया सुमति जिणंद...१... Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला शीतल जिनवर साहिबा, पाम्या मुक्ति वास, वासुपूज्य लहे अ तिथे, केवल ज्ञान ज खास...२... अरनाथ चव्या अह तिथे, दोय बंधन दिया छोड़, निश्चय ने व्यवहार थी, धर्म पक्ष लह्यो जोड़...३... दुविध धर्म प्रकाशीओ, साधु श्रावक सार, दोय नये आराधतां, भवियण लहे भव पार.. दोय वरस तप की जिओ, ऊपर वलि दोय मास, समकित तरुवर संपजे, शिव सुख संपति वास...५... चोविसमां जिनराजजो, भाख्यो तप हितकार, आदर करी आराधतां, कीत्तिचंद्र लहे सार...६... पंचमी ना चैत्यवन्दनो ज्ञान पंचमी नु चैत्यवन्दन [१] त्रिगडे बेठा वीरजिन, भाखे भविजन आगे, त्रिकरणशु तिहुं लोक जन, निसुणो मन रागे...१... आराधो भली भांत से, पांचम अजवाळी, ज्ञान आराधन कारणे, अहिज तिथि निहाळी...२.. ज्ञान विना पशु सारीखा, जाणो अणे संसार, ज्ञान आराधन थी लहो, शिवपद सुख श्रीकार...३ ज्ञान रहित क्रिया कही, काश कुसुम उपमान, लोकालोक प्रकाश कर, ज्ञान अक परधान...४... ज्ञानी श्वासोश्वासमां, करे कर्मनो छेह, पूर्व कोडि वरसां लगे, अजानी करे तेह...५... Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यवन्दन - - देश आराधक क्रिया कही, सर्व आराधक ज्ञान, ज्ञान तणो महिमा घणो, अंग पांच में भगवान...६... पंच मास लघु पंचमी, जाव जीव उत्कृष्टि, पंच वरस पंच मासनी, पंचमी करो शुभ दृष्टि...७... अकावन ही पंचनो ओ, काउस्सग्ग लोगस्स केरो, उजमणु करो भावशु, टाळो भव फेरो...८... अणीपरे पंचमी आराही, आणी भाव अपार, वरदत्त गुणमंजरी परे, रंगविजय लहो सार...६... [२] बार पर्षदा आगले, श्री नेमी जिनराय, मधुर ध्वनि दोये देशना, भवि जनने हितदाय...१... पंचमी तप आराहोओ, जिम लहोजे ज्ञान, कार्तिक शुदी पंचमी गृही, हर्ष धरी बहुमान...२... पांच वरस उपरे वलो, पंच मास लगे जाण, अथवा जावजीव लगे, आराधो युण खाण...३... वरदत्त ने गुणमंजरी, पंचमी आराधी, अंते आराधन करी, शिवपुरी ने साधी...४... अणी पेरे जे आराधशे, पंचमी विधि संयुक्त, जिन उत्तम पद्मने, नमी थाये शिवभक्त...५... श्यामवान सोहामणो, श्री नेमि जिनेसर, समवसरण बेठा कहे, उपदेश सोहंकर...१... Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्रमाला पंचमी तप आराधतां, लहे पंचम नाण, पंच वरस पंच मासनो, अ छ तप परिमाण...२... जिम वरदत्त गुणमंजरीओ, आराध्यो तप अह, ज्ञान विमल गुरु अम कहे, धन धन जगमां तेह...३... मतिज्ञान नु चैत्यवन्दन [४] श्री सौभाग्य पंचमी तणो, सयल दिवस शिणगार, पांचे ज्ञानने पूजीये, थाये सफल अवतार... सामायिक पोसह विषे, निरवद्य पूजा विचार, सुगंध चूर्णादिक थकी, ज्ञान ध्यान मनोहार...२... पूर्व दिशे उत्तर दिशे, पीठ रची त्रण सार, पंच वरण जिन बिंबने, स्थापीजे सुखकार...३... पंच पंच वस्तु मेलवी, पूजा सामग्री जोग, पंच वरण कळशा भरी, हरीये दु:ख उपभोग. यथाशक्ति पूजा करो, मतिज्ञान ने काजे, पंच ज्ञानमां धूरे कह्यु, श्री जिनशासन राजे...५... मति श्रुत विण होवे नहि, अवधि प्रमुख महाज्ञान, ते माहे मति धुरे कह्यु, मति श्रुतमां मति मान...६ क्षय उपशम आवरणनो, लब्धि होये समकाले, स्वाम्यादिकथी अभेद छे, पण मुख्य उपयोग काले....७... लक्षण भेदे भेद छे, कारण कारज जोगे, मति साधन श्रुत साध्य छे, कंचन कलश संयोगे...८... Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्य वन्दन परमातम परमेसरु, सिद्ध सयल भगवान, मति ज्ञान पामी करी, केवल लक्ष्मी निधान...६... श्रुतज्ञान नु चैत्यवन्दन श्रीश्रुतज्ञान ने नित्य नमो, स्वपर प्रकाशक जेह, जाणे देखे ज्ञान थी, श्रुत थी टले संदेह...१ .. अनभिलाप्य अनंत भाव, वचन अगोचर दाख्या, तेह ने भाग अनंत में, वचन पर्याये आख्या...२... वली कथनीय पदार्थ नो, भाग अनंतमो जेह, चौदे पूरवमां रच्यो, गणधर गुण ससनेह...३... माहोमांहे पूरवधरा, अक्षर लाभे सरीखा, छठाणवडोया भाव थी, तेश्रत मतिय विशेषा.. तेहिज माटे अनंत में, भाग निबद्धा वाचा, समकित श्रुतना मानीये, सर्व पदारथ साचा...५... द्रव्य गुण पर्याये करी, जाणे अंक प्रदेश, जाणे ते सवि वस्तु ने, नंदीसूत्र उपदेश...६... चोवीश जिननां जाणीओ, चौद पूरवधर साध, नवशत तेत्रोश सहस छे, अठ्ठाणु निरुपाध...७... परमत अकांत वादीना, शास्त्र सकल समुदाय, ते समकितवंते ग्रह्या, अर्थ यथारथ थाय...८... अरिहंत श्रुत केवलो कहे, ज्ञानाचार चरित्त, श्रुत पंचमी आराधवा, विजय लक्ष्मो सूरि चित्त...६... Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [६] - अवधिज्ञान - चैत्यवन्दन [६] अवधिज्ञान त्रीजुका , प्रगटे आत्म प्रत्यक्ष, क्षय उपशम आवरणनो, नवि इंद्रिय आपेक्ष...१... देव निरय भव पामतां, होय तेहने अवश्य, श्रद्धावंत समय लहे, मिथ्यात विभंग वश्य...२... नर तिरिय गुणथी लहे, शुभ परिणाम संयोग, काउस्सग्गमां मुनि हास्यथी, विघट्यो ते उपयोग.... जघन्य थी जाणे जुओ, रूपो द्रव्य अनंता, उत्कृष्टा सवि पुद्गला, मूत्ति वस्तु मुणंता...४... क्षेत्र थी लघु अंगुल तणो, भाग असंखित देखे, तेहमां पुद्गल खंध जे, तेह ने जाणे पेखे...५. लोक प्रमाणे अलोकमां, खंड असंख उक्किट्ट, भाग असंख्य आवलि तणो, अद्धा लघुपणे दिट्ठ...६... उत्सपिणि अवसपिणि), अतीत अनागत अद्धा, अतिशय संख्या तिगपणे, सांभळो भाव प्रबंधा...७... ओक ओक द्रव्यमां चार भाव, जघन्यथी ते निरखे, असंख्याता द्रव्य दीठ, पर्यव गुरु थी परखे...८. चार भेद संक्षेपथी अ, नंदी सूत्र प्रकाशे, विजयलक्ष्मीसूरि ते लहे, ज्ञान भक्ति सुविलासे...६... मनः पर्यव ज्ञान नु चैत्यवन्दन [७] श्री मनः पर्यव ज्ञान छे, गुण प्रत्ययी ओ जाणो, अप्रमादि ऋद्धिवंतने, होय संयम गुण ठाणो...१... Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०] चैत्य वन्दन कोइक चारित्रवंतने, चढते शुभ परिणामे, मनवा भाव जाणे सही, सागारी उपयोग ठामे...२... चितवता मनोद्रव्यनाओ, जाणे खंध अनंता, आकाशे मनोवर्गणा, रह्या ते नवि मुणता...३.. संज्ञी पंचेंद्रिय प्राणोये, तनु योगे करो ग्रहीया, मनयोगे करो मनपणे, परिणमे ते द्रव्य मुणिया...४... तिर्छ माणस क्षेत्रमा, अढिद्विप सही विलोके, तिलिोक ना मध्य थी. सहस जोयण अधोलोके...५.. उरध जाणे ज्योतिष लगे अ, पलियनो भाग असंख, कालथी भाग थया थशे, अतीत अनागत संख...६... भावथी चिंतित द्रव्यना, असंख्य पर्याय जाणे, ऋजुमति थी विपुलमति, अधिका भाव वखाणे...७... मनना पुद्गल देखीने, अनुमाने ग्रहे साचु, वितथपणु पामे नहीं, ते ज्ञावे. चित्त राचु...८... अमर्त्त भाव प्रगटपणे, जाणे श्री भगवंत, चरण कमल नमु तेहना, विजयलक्ष्मी गुणवंत...६... ___ केवलज्ञान नु चैत्यवन्दन श्री जिन च उनाणी थई, शुक्ल व्यान अभ्यामे, अतिशय अतिशय आत्मरूप, क्षण क्षण प्रकाशे...१. निद्रा स्वप्न जागर दशा, ते सवि दूरे होवे, चोथी उजागर दशा, तेहनो अनुभव जोवे...२... क्षपक श्रेणि आरोहियाओ, अपूर्व शक्ति संयोगे, लही गुणठाणु बारमु, तूरीय कषाय वियोगे...३... Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला नाण दंसण आवरण मोह, अंतराय घनघाती, कर्म दुष्ट उच्छेदीने, श्रया परमातम जाती... ४... दोय धरम सवि वस्तुना, समयांतर उपयोग, प्रथम विशेषपणे गृहे, बीजे सामान्य संयोग... ५... सादि अनंत भागे करी ओ, दर्शन ज्ञान अनंत, गुण ठाणु लही तेरमु, भाव जिणंद जयवंत... ६... मूल पयडीनो ओक बंध, सत्ता उदये चार, उत्तर पयडीनो अक बंध, उदये रहे बायाल... ७... सत्ता पंचासी तणी, कर्म जेहवा रज्जू छार, मन वच काय योग जास, अविचल अधिकार... ८... सयोगी केवली तणी ओ, पामी दशाये विचरे, अक्षय केवल ज्ञानना, विजयलक्ष्मी गुण उचरे... ६... [] बुद्धि खोडीय बुद्धि थोडीय, जिभ मुखे अंक... १... महिमा जस महीमंडले, जलधि जेम गुरु गुहीर गाजे, त्रिभुवनमा उपमान को, तुम्ह समान जे वस्तु छाजे...२... ज्ञानविमल गुण प्रभु तणा, भाखी शके कहो कोय, जाणे पण न कही शके, अक्षय ज्ञान जो होय... .३... [१०] चढीक्षपक श्रेणी अपूर्व उत्साह धरीने, लहे गुणठाणु बारम् संजलण हरीने... १... नाण दंसणावरण कर्म, अंतराय उच्छेदी, गुण ठाणु लही तेरमु, प्रभु थया अवेदो...२ [११] Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२] चैत्य वन्दन लोकालोक प्रकाशतो अ, दर्शन ज्ञान अनंत, भाव तीर्थंकर तव थया, दान दया कर संत...३... नोंध : चैत्यवंदन 'नव-दश' विशेष रूपे केवल ज्ञान नु छ । पंचमी सामान्य नू चैत्यवन्दन सकल सुरासुर साहिबो, नमीये जिनवर नेम, पंचमी तिथि जग परवड़ो, पालो जन बहु प्रेम...१... जिन कल्याणक अ तिथे, संभव केवल ज्ञान, सुविधि जिनेसर जनमीया, सेवो थई सावधान...२... च्यवन चंद्र प्रभु जाणोओ, अजित सुमति अनंत, पंचमी दिने मोक्षे गया, भेटो भविजन संत...३... कुथु जिन संजम ग्रह्यो, पंचमो गति जिनधर्म, नेमि जन्म वखाणी, पंचमी तिथि जग शर्म. पंचमीना आराधने, पामे, पंचम ज्ञान, गणमंजरी वरदत्त ते, पहोंच्या मोक्ष सुठाण...५... कार्तिक शुदी पंचमी थकी, तप मांडीजे खाश, पंच वरस आराधीओ, उपर वळी पंच मास. दश क्षेत्रे नेवु जिन तणां, पंचमी दिन कल्याण, अह तिथि आराधतां, पामे शिवपद ठाण...७... पडिकमणां दोय टंकनां, करिओ शुद्ध आचार, देव वंदो त्रण कालनां, पहोंचाडे भवपार...८... नमो नाणस्स गणणु गणो, नवकारवाली वीश, सामायिक शुद्ध मने, धरीले शियल जगीश...६... Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [१३] अणीपरे पंचमी पाळशे, भविजन प्राणी जेह, अजरामर सुख पामशे, हंस कहे गुणगेह...१०... [१२] युगला धर्म निवारीओ, आदिम अरिहंत, शांतिकरण श्री शांतिनाथ, जग करुणावंत...१... नेमिनाथ बावीशमा, बाल थकी ब्रह्मचारी, प्रगट प्रभावी पार्श्वदेव, रत्नत्रयी धारी...२... वर्तमान शासन घणी, वर्धमान जगदीश, पांचे जिनवर प्रणमतां, वाधे जगमां जगीश.. जन्म कल्याणक पंच रूप, सोहमपति आवे, पंच वर्ण कलशे करी, सुरगिरि नवरावे... पंच साख अंगुठडे, अमृत संचारे, वालपणे जिनराज काज, अम भक्ति शुधारे...५ पांच धाव पालीज ते, जोवन वय आवे, पंच विषय विषवेली तोड़ी, संजम मन भावे...६... छंडी पंच प्रमाद पंच, इन्द्रिय बल मोडी, पंच महाव्रत आदरे, देइ धन कोडी...७... पंचाचार आराधतां, पाम्या पंचम ज्ञान, पंच देह वजित थया, पंच ह्रस्वाक्षर मान...८... पंचमी गति भरतार तार, पूरण परमाणंद, पंचमी तप आराधतां, क्षमाविजय जिनचंद...ह... [१३] पंचमी दिन प्रभु जनमीया, नेमि जिणंद जगभाण, अजित अनन्त सम्भव लहे,पंचमी गति गुणखाण...१... Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - [१४] चैत्यवन्दन सुविधि जिनेनर जनमीया, संभव केवल नाण, दीक्षा कुंथुजिन गृहे, चंद्रप्रभ चवन कल्याण...२... पंचमी तप वली कीजिओ, पंच वरस पंच मास, जाव जीव लगी जे करे, पामे ज्ञान उल्लास...३... आगम पांच प्रकारनां, सूत्र नियुक्ति सार, टीका भाष्य ने चूरणी, पंचम अंग मोझार...४... छंडे पंच प्रमाद ने, पंचमी गति लहे तेह, वीर प्रभु मुज दीजीओ, कीर्तिचंद्र शिव गेह...५... अष्टमीना चैत्यवंदनो [१] शासन नायक समरिओ, वर्धमान जिनचंद, अष्टमी तिथि ने वर्णवं, ध्यावो मन आणंद...१... ऋषभ जन्म दीक्षा प्रभु, शीतल च्यवन जिणंद, अजित सुमति नमीनाथजी जन्म्या तिथि आणंद...२... संभव ने सुपासजी, च्यवन कल्याणक जाण, अभिनंदन नेमि पास जिन, पाम्या पद निर्वाण...३... मुनिसुव्रत अष्टमी तिथे, जन्म्यां जिनवर श्याम, इत्यादिक द्वादश कह्या, कल्याणक शुभ काम...४... पर्व तिथे पोसह करो, आणी मन अंक तार, अष्ट कर्म मद मोडवा, सेवो तिथि सार...५... सुजश राजानी परे, सेवो धरी बहु प्यार, रिद्धि सिद्धि बहु पामशो, सेवो तमे नर नार...६... Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला शील संतोष ने धारीओ तजीओ जूठ अभिमान, मन वच काया से सेवतां, पामे अमर विमान... ७... आराधता अष्टमी तिथि, पामे भवनो पार, हंस कहे प्रभु सेवतां, पामे जय जयकार. (आमां शीतलनाथ वधारे छे बीजे नथी) ... [१५] [२] आठ त्रिगुण जिनवर तणी, नित्य कीजे सेवा, वहाली मुज मन अति घणी, जेम गज मन रेवा...१... प्रातिहारज आठ शुं, ठकुराई छाजे, आठे मंगल आगळे, जेह ने वळी राजे...२... भांजे भय आठ मोटका अ, आठ कर्म करे दूर, आठम दिन आराधतां ज्ञान विमल भरपूर...३... [६] अष्टमी तप आराधी ओ, भाव धरी उल्लास, आठ आत्माने ओळखो, पामो लोल विलास...१... आठ बुद्धि गुण आदरो, वली अष्टांगह योग, अष्ट महा सिद्धि संपजे, नावे शोक न रोग... .२... योगदृष्टि ने आदरोओ, मित्रादिक सुखकार, अष्ट महामद टालीओ, जिम पामो भवपार...३... प्रवचन माता आठने, आदरो धरी मनरंग, आठ ज्ञान ने ओळखो, शिववधू नो करो संग...४... गणी संपदा आठमी, आठम दिने धारो, नरक तिर्यंच गति दुःखनी, तेहनो नहीं चारो... ५... 5... Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६] चैत्य वन्दन नामा आठ जाति कलशे करी अ, नवरावो जिनराय, आठ योजन जाडी कही, सिद्ध शिला मुनिराय...६... पूजा अष्ट प्रकार नी, समजो करो तस मर्म, अष्टमी करता प्राणोओ, क्षय करे आठे कर्म...७ दूर करी आठ दोष ने, तिम अड गुण पाळो, ज्ञान दर्शन चारित्र ना, आठ अतिचार टाळो...८... आठ आठ प्रकारना ओ, भेद अनेक प्रकार, अष्टमी फल प्रभु भाखीआ, त्रिगडे बेसी सार. फागण वदी आठम दिने, मरु देवी जायो, दीक्षापण तेहिज दिने, सुर नर मली गायो...१०... सुमति अजित जन्म सार, सम्भव जिन च्यवन, आठम दिन बहु जाणजो, कल्याणक निधि भवन....११... अष्टमी तप भवियण करे ओ, कर्म तपावे जेह, तप करतां जस संपजे, शुभ फल पामे तेह...१२... . [४] महाशुदि आठम दिने, विजया सुत जायो, तेम फागण शुदि आठमे, सम्भव चवि आयो...१... चैतर वदनी आठमे, जन्म्या ऋषभ जिणंद, दीक्षा पण अ दिन लही, हुआ प्रथम मुनिचंद...२... माधव शुदि आठम दिने, आठ कर्म कर्या दूर, अभिनन्दन चोथा प्रभु, पाम्या सुख भरपूर...३... अहिज आठम उजळी, जन्म्या सुमति जिणंद, आठ जाति कलशे करी, न्हवरावे सुर इंद...४... Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [१७] जनम्या जेठ वदि आठमे, मुनिसुव्रत स्वामी, नेम आषाढ़ शुदि आठमे, अष्टमी गति पामी...५... श्रावण वदनी आठमे, नमि जनम्या जगभाण, तेम श्रावण शुदि आठमे, पासजी नु निर्वाण...६... भादरवा वदि आठम दिने, चविया स्वामी सुपास, जिन उत्तम पद पद्मने, सेव्याथी शिववास . ७... अष्टमी दिन धन जिनवर, चंद्रप्रभु मनोहार, सेवा करतां जेहनी, टाले भव दुःख द्वार...१... भगवत् भाखी जे वचन, धारे गुण भंडार, तेहिज अष्टमी तप भणु, आगम अर्थ उदार...२... ज्ञायक ज्ञेय स्वरूप थी, चरण धरे सुखकार, अष्टमी तप आराधवा, करे शुभ भाव विचार...३... अष्ट वरस आठ मासनो, तपविधि विधिमां सार, श्रावक तन-मन वचनथी, पाले निरतिचार.. पोसह पडिकमणं करीओ, पूजे जिन अंग अविकार, करुणासागर गुण भर्या, मुनिजन वंदे विचार...५... आगम वयण सुणि करीओ, पूछे प्रश्न विचार, गुरु गम लहीने सद्दहे, समकित वड विस्तार.. परम पुरुष परमेसरु, परमातम जगदीश, चंद्रप्रभु. जिन आठमां, वन्दो ते सुजगीश...७... सारण वारण चोयणा, प्रति चोयणा नां जाण, वस्त्र दीजे जो तेहने, लहे सुख निरवाण...८... Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८] चैत्य वन्दन - अहवी वाणी स्वमुखे, फरमावे जिनराज, भव्य जिव श्रवणे सुणी, धारे आतम काज...६... मान क्रोध मद परिहरी, धारो शुद्ध स्वभाव, आतमज्ञान नये गृही, आनन्दधन रस पाव...१०... शांति सुधारस गुणभर्या, अनुभव भाव जिणंद, चरण तेज अमृत समो, रत्नमुनि आणंद...११. उज्ज्वल अष्टमी दिन कयुं, समकीति ने सुखदाई, चंद्रमुनि गुण योग्यता, लहि आगम गुण छाई...१२... चतर वदि आठम दिने, मरुदेवी जायो, आठ जाति दिशिकुमरी, आठे दिशी गायो...१... आठ इन्द्राणी नाथशें, सुर संगते लई आवे, सुरगिरि उपर सुरवरा, सर्वे मली गावे...२... आठ जाति कलशा भरी, चोसठ हजार, दो सय ने पचास मानो, अभिषेक उदार...३... अक क्रोड ने साठ लाख, ऊंचा शतकोष, पहोळपणे अडियाल कोष, कलशा जलकोष. चार रिखभ अड शृंग रंग, आठे जल धारे न्हवरावी जिनराजने, सुरेन्द्र पाप परवाले...५... क्षुद्रादिक अड दोष शोष, करी अडगुण पेखो, टालो आठ प्रमाद आठ, मंगल आलेखो...६... क्रोडी आठ चउगुणा, कंचन वरसावे, प्रभु सोंपी निज मातने, नन्दीश्वर जावे...७... Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [१६] अट्ठाइ महोत्सव करे , ठवणा जिण उद्देश, अष्ट प्रकारे पूजीओ, अष्टमी दिन सुविशेष...८... रिषभ अजित सुमति नमी, मुनिसुव्रत जन्म, अभिनन्दन ने नेमि पास, पास्या शिव शर्म...६... सम्भव देव सुपास दोय, सुरभव थी चविया, सेना पुहवी मात दुग, उदरे अवतरिया...१०... वरस अंक उद्घोषणाओ, ऋषभ लीओ चारित्र, अष्टमी दिन अगीयार अम, कल्याणक सुपवित्र...११... दर्शन ज्ञान चारित्रना, आठे अतिचार, टाळे गाळे पापने, पाळे पंचाचार...१२... अणिमादि अड रिद्धि सिद्धि, खीणमांहे पामी, अष्ट कर्म हणीने थया, अड गुण अभिरामी... अष्टमी दिन उज्ज्वल मने, समरो दश अरिहंत, खीमाविजय जिन नामथी, प्रगटे ज्ञान अनंत...१४... अष्टमी तप आराधतां, अष्ट कर्म करे दूर, अड बुद्धि सिद्धि लहे, पामे सुख भरपूर... मद आठे अलगा तजी, देखीओ द्दष्टि आठ, आत्मा आठे जाणीओ, जिम पामो शिववाट...२.. प्रवचन माता आठने, आदरी) मन रंग, आठ नाणने ओलखी, शिव-सुन्दरी करो संग...३... आठ जोजन जाडी कही, सिद्धशिला गुणखाण, आठ दोष अलगा करी, वसीया सिद्ध ते ठाण...४... Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०] चैत्य वन्दन आदि जिनेसर जनमीया, दीक्षा तिथि जाण, अजित सुमति वळो जनमीया, संभव चवन कल्याण..५... अभिनन्दन प्रभु पासजी, मुक्ते गया महाराज, चवन सुपार्श्व जाणी, नमी जन्म तिथि आज...६... मुनि सुव्रत जिन जनमीया, नेमी तणो निर्वाण, संप्रति जिननां जाणोओ, कल्याणक गुण खाण...७... अष्ट प्रातिहार्य शोभता, वीर जिनेन्द्र अभंग, अष्टमी महिमा आखीयो, कीत्तिचन्द्र दिल रंग...८... [८] अके उणा पंच वर्ग, जिने आराहो, आठ वर्ग सुरपति नमे, धरी अंग उमाहो.. चोथा वर्ग ने साधवा, अहिज परम उपाय, अष्टापद गीरि थापीया, श्री भरतेसर राय...२. ज्ञान बिमल प्रभु सेवतांओ, आठ कर्म होय दूर, आठ अनंत गुण जिन लहो, अड मंगल भरपूर...३... राजगृही उद्यानमां, वीर जिनेश्वर आव्या, देव इन्द्र चोसठ मल्या, प्रणमे प्रभु पाया...१. रजत हेम मणि रयणनां, तिहुयण कोट बनाय, मध्य मणिमय आसने, वेठा श्री जिनराय...२... चउविह धर्मनी देशना, निसुणे परषदा बार, तव गौतम महारायने, पुछे पर्व विचार...३... पंच पर्वी तुमे वर्णवी, तेमां अधिकी केण, वीर कहे गौतम सुणो, अष्टमी पर्व विषेण...४... Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [२१] - बीज भवि करतां थकां, बीहु विध धर्म मुणंत, पंचमी तप करतां थकां, पांचे ज्ञान भणंत...५... अष्टमी तप करतां थकां, अष्ट कर्म हणंत, अकादशी करतां थकां, अंग अगीयार भणंत...६... चौदे पूरवधर भलाओ, चौदश आराधे, अष्टमी तप करतां थकां, अष्टमी गति साधे...७... दण्डविरज राजा थयो, पाम्यो केवल नाण, अष्टमी तप महिमा वडो, भाखे श्री जिनभाण...८... अष्ट कर्म हणवा भणी, करिअ तप सुजाण, न्याय मुनि कहे ते भवि, पामे परम कल्याण...६... अकादशीना चैत्यवंदनो मौन एकादशी . [१] नेमि जिनेसर गुणनीलो, ब्रह्मचारी शिरदार, सहस पुरुषशुं आदरी, दीक्षा जिनवर सार...१... पंचावनमें दिन लघु, निरूपम केवल नाण, भविक जीव पडिबोधवा, विचरे महियल जाण...२... विहार करंता आवियाओ, बावीशमा जिनराय, द्वारिका नगरी समोसर्या, समवसरण तिहां थाय...३... बार परषदा तिहां मली, भाखे जिनवर धर्म, सर्व पर्वतिथि साचवो, जिम पामो शिव शर्म.. तव पूछे हरि नेमने, दाखो दिन मुज अक, थोडो धर्म कर्या थकी, शुभ फल पामुं अनेक...५... ४ . . . Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यवन्दन [२२] नेम कहे केशव सुणो, वरस दिवसमा जोय, मागशर शुदि अकादशी, ओ समो अवर न कोय... ६... इण दिन कल्याणक थयां, नेवुं जिनना सार, अह तिथि आराधतो, सुव्रत थयो भव पार... ७... ते कारण मोटी तिथि, आराधो मन शुद्ध, अहो रात्रि पोषध करो, मन धरी आतम बुद्ध... ८... दोसो कल्याणक तणु, गणणु गणो मन रंग, मौन धरी आराधीये, जिम पामो सुख संग... ६... उजमणं पण कीजीये, चित्त धरी उल्लास, पाठा ने वीटांगणा, इत्यादि करो खाश... १०... ओम अकादशी भावशु, आराधे नरराय, क्षायिक समकितनो धणी, जिन वंदी घेर जाय... ११... अकादशी भवियण करो, उज्ज्वल गुण जिम थाय, क्षमाविजय जिन ध्यानथी, शुभ सुरपति गुण गाय... १२... [२] शासन नायक जग जयो, वर्धमान जग इश, आतम हित ने कारणे, प्रणम् परम मुनीश ...१... षट् परवी जेणे वर्णवी, तेहमां अधिकी जेह, अकादशी सम को नहीं, आरांधो गुण गेह...२... मागशर शूदि अकादशी, आराधो शिव वास, कल्याणक नेवु जिन तणां, ओक सो ने पचास...३... महायश सर्वानुभूति, श्रीधर नमि मल्लि अरनाथ, स्वयंप्रभ देवश्रुत उदय, मलिया शिवपुर साथ... ४... Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [२३] अकलंक शुभंकर सुप्रताप, ब्रह्मेन्द्र गुण गांगिक, सांप्रत मुनि विशिष्ट जिन, पाम्या पुन्यनी नीक...५... सुमदु व्यक्त कलाशत, अरण्य योग अयोग, परम सुधारति निकसे, तेम पाम्या शिव संयोग...६... सर्वार्थ हरिभद्र मगधाधिप, प्रयच्छ अक्षोभ मलयसिंह, दिनरूक धनद पौषथ तथा, जपतां सफली जेह...७... प्रलंब चारित्रनिधि प्रशमराजित, स्वामी विपरीत प्रसाद, अघटित भ्रमणंद्र ऋषभचंद्र, समर्या शिव आस्वाद...८... दयांत अभिनंदन रत्नेशनाथ,श्यामकोष्ट मरुदेव अतिपाव, नंदिषेण व्रतधर निर्वाण तथा, थाये शिवसुख आश...६... सौंदर्य त्रिविक्रम नरसिंह, क्षेमंत संतोषि कामनाथ, मुनिनाथ चंद्रदाह, दिलादित्य, मलियो शिवपुर साथ.१०. अष्टाह्निक वणिक उदयनाथ, तमोकंद सायकाक्ष खेमंत, निर्वाण रविराज प्रथम, नमतां दुःखनो अन्त...११... पुरुरवास अवबोध विक्रमेंद्र, सुशांति हरदेव नंदोकेश, महामृगेन्द्र अशोचित धर्मेन्द्र, संभारो नाम निवेश..१२... अश्ववन्द कुटिलक वर्धमान, नंदिकेश धर्मचंद्र विवेक, कलायक विसोम अरणनाथ, समयं गुण अनेक...१३ ... त्रणे पदे त्रण चोवीशीओ, पदे-पदे कोठो जाण, चोथा पदमां भावना, आराधो गुण खाण...१४... दोढसो कल्याणक तणो, गुणनो ओ मनोहार, चित्त आणी ने आदरो, जिम पामो भवपार...१५... जिनवर गुणमाला, पुन्यनो मे प्रनाला, Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२४] जे शिवसुख रसाला, पामिये सुविशाला, जिन उत्तम थुणोजे, पाद तेहना नमीजे, निजरूप समरीजे, शिव लक्ष्मी वरीजे...१६... [३] विश्वनायक मुक्तिदायक, नमि नेमि निरंजनं, हर्षधरी हरी पूछे प्रभुने, भाखो आतम हितकरं, कुण दिवस ओवो वरसमांहे, अल्प सुकृत बहुफलं, नेवुं जिननां हुआ कल्याणक, मौन अकादशी सुखकरं... १ केवली महाजण सर्वानुभूति, श्रीधर नाथओ, नमि मल्लि श्री अरनाथ जिन, साचो शिवपुर साथ, स्वयंप्रभ देवश्रुत वली, उदयनाथ जिनेश्वरं ... २नेवु अकलंक कर्म कलंक टाले, शुभंकर समरू सदा, सप्तनाथ ब्रह्मेन्द्र जिनवर गुणनाथ नमु मुदा, गांगिकनाथ सांप्रत मुनिनाथ विशिष्ठ अतिवरं... ३नेवु श्री मृदु जिनजी जगदेवता व्यक्त अरिहा वंदिओ, श्री कलारात अरण्य ध्याता सहज कर्म निकंदिओ, योग अयोगश्री परम प्रभुजी शुद्धाति नीकेशरं... ४नेव श्री सर्वार्थ सकल ज्ञायक हरिभद्र अरिहन्तओ, मगधाधिप जिनेन्द्र वंदो श्री प्रयच्छ गुणवंतओ, अक्षोभ मलयसिंह दिनरुक धनद पोषध जयकरं ... ५नेवु श्री प्रलंब चारित्रनिधि जिन प्रशमराजित ध्याइओ, स्वामी विपरीतदेव अहोनिश प्रसाद प्रेमे गाइ ओ, अघटित भ्रमणेन्द्र प्रभु ऋषभचंद्रजी अघहरं... ६नेवु चैत्य वन्दन Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [२५] दयांत दाता जगत केरो अभिनन्दन रत्नेश, श्यामकोष्ट मरुदेव नायक अतिपाव विशेष), नमो नन्दीषण व्रतधर श्री निर्वाणी दुःखहरं...७नेवु सौन्दर्यज्ञानी त्रिविक्रम जिन नरसिंह नमो तुमे, क्षेमंत संतोषित अरीहा कामनाथथी दुःख समे, मुनिनाथ ने श्री चन्द्रदाहओ दिलादित्य उदयकरं...टनेव अष्टाह्निक वणिक वंदो उदयज्ञान आराधीओ, तमोकन्द ने सायकाक्ष स्वामी खेमंत शिवसुख साधीओ, निर्वाणी रविराज साहिव प्रथमनाथ परमेश्वरं...हने श्री पुरुरवा अवबोध जगगुरु विक्रमेंद्र वखाणी, सुशांति हरदेव नन्दिकेश महामृगेंद्र मन आणीओ, अशोचित चित्तमां वसे नीत धर्मेंद्र जगजसकरं...१०ने अष्ववृन्द कुटिलक वर्धमान नन्दिकेशना, धर्मचन्द्र विवेक जगपति कलापक सोहामणा, विसोम सोम्याकृति जेनी अरण्यसंगी सुखकरं...११ने त्रिश चोवीशी दश क्षेत्रे कालत्रिक जिन लीजिओ, पंचकल्याणक त्रीस जिननां दोढसो गुणिजिअ, जिन भक्ति करतां ध्यान कोटि तप फल पामे नरं..१२नेवु पोषध उपवास करीने आराधे अकादशी, नरभव तेहनो सफल थाये परमानंद पद देहसी, गुरु रूपकीत्ति हृदय धरीने माणेक मुनि सुखक रं....१३ने [४] मल्लि जिनवरने नमो, करीने निर्मल भाव, जिनपूजा भवजलधिमां, तरवाने नाव...१... Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२६] चैत्यवन्दन जन्म दीक्षा ने नाण भाण, थयां त्रण कल्याण, अकादशी दिन जेहना, प्रणमो सुविहाण...२... ज्ञान विमल गुण मूळ थकी, सुणी अंग अग्यार अगीयारस दिन तप करी, पामो भव जल पार...३. [५] उत्तम तिथि अकादशी, भाखी नेमि जिणंद, मुक्ति वधुनो मांडवो, आदरे कृष्ण नरिंद...१... कल्याणक जिनराजनां, दोढसो इण दिन जाण, ध्यान धरो मन वश करी, पनरे सहस प्रमाण...२ अर जिणंद दीक्षा गृही, नमीने केवल नाण, जन्म दीक्षा केवल लह्यो, मल्लि जिणंद जगभाण...३... भरतादिक दश क्षेत्र में, कल्याणक पचास, अतीत अनागत मेलतां, दोढसो गणी खास. नमतां ने जिणंदने, सुव्रतनी परे जेह, मन वच काया स्थिर करी, कीर्तिचंद्र गुण गेह...५... एकादशी सामान्य [१] शासन नायक वीरजी, प्रभु केवल पायो, संघ चतुर्विध स्थापवा, महसेन वन आयो...१... माधव सित अकादशी, सोमिल द्विज यज्ञ, इन्द्रभूति आदे मल्या, अकादश विज्ञ...२... अकादशसें चउ गुणो, तेहनो परिवार, वेद अर्थ अवलो करे, मन अभिमान अपार...३... जिवादिक संशय हरीओ, अकादश गणधार, वीरे थाप्या वन्दीओ, जिनशासन जयकार...४ . . Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [२७] मल्लि जन्मअर मल्लि पास, वर चरण विलासी, ऋषभ अजित सुमति नमी, मल्लि घनघाती विनाशी...५ पद्मप्रभ शिववास पास, भव भवना तोडी, अकादशी दिन आपती, ऋद्धि सघळी जोडी...६. दश क्षेत्रे त्रिहुं कालना, त्रणसें कल्याण, वर्ष अग्यार अकादशी, आराधो वर नाण...७... अग्यार अंग लखावीओ, अकादश पाठां, पूजणी ठवणी विटणा, मसी कागळ कांठां...८... अग्यार अव्रत छंडवाओ, वहो पडीमा अग्यार, क्षमाविजय जिन शासने, सफल करो अवतार... [२] अंग अग्यार आराधीओ, एकादशी दिवसे, अकादश प्रतिमा वहो, समकित गुण विकसे...१... अकादशी दिवसे थया, दीक्षा ने नाण, जन्म लह्या केइ जिनवरा, आगम परमाण...२... ज्ञान विमल गुणवाधताओ, सकल कला भंडार, अगोयारश आराधतां, लहीले भवजल पार...३.. आज ओच्छव थयो मुज घरे, अकादशी मंडाण, श्री जिननां त्रणसे भला, कल्याणक घर जाण...१.. सुरतरु सुरमणि सुरघट, कल्पवेली फली मारे, अकादशी आराधतां, बोधि बीज चित्त ठारे...२... नेमि जिनेश्वर पूजतांओ, पहोंचे मनना कोड, ज्ञानविमल गुणथी लहो, प्रणमो बे कर जोड़...३... Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२८] चैत्य वन्दन चर्तुदशीना चैत्यवंदनो __ कार्तिक चोमासी [१] श्री जिनवरना शासने, चोमासी त्रण जाणुं, कार्तिक चोमासी तणो, महिमा इम वखाणुं...१... कांबल तणी घडी चारने, पाणी पहोरो चार, सुखडी काल अक मासनो, पल्ला चार विचार...२... साधु अने श्रावक वली, आराधे दिन अह, ज्ञानविमल गुरु ओम कहे, पामे दुःखनो छेह...३... फागण चोमासी [२] षट् अट्ठाई जे कही, ते मांहेली अक, फागण चोमासी लही, आराधो सुविवेक...१... कांबलनी घडी दो वली, पाणी पहोरो पांच, सुखडीना दिन वीश छे, पल्ला मुनि त्रण वांच...२... आठ मास छांडे सही, मेवो भाजी विचार, ज्ञानविमल प्रभु शासने, धन धन ते नरनार...३... अषाढ चोमासो [३] चउमासी अषाढ़ नी, मोसम धर्म नी जाण, देव गुरु आराधीओ, सांभळी जिननी वाण...१... मुनिवर पल्ला पांचने, सुखड़ी पंदर दिन, कांबलनो घडी छ कही, पाणी पहोरो तिन...२... पर्युषण दिवाली वली, ज्ञान पांचम गुण गेह, तन मन ध्याने जे करे, ज्ञान विमल लह तेह...३... [४] चौद स्वप्न लहे मावडी, सवी जिनवर केरी, ते जिन नमतां चौद राज, लोके न होय फेरी...१... Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [२६] चौद रत्नपति जेहना, प्रणमे पद आवी, चौद विद्याना थया जाण, संयम श्री भावी...२... चौद राज शिर उपरे, सिद्धि सकल गुण खाण, ज्ञानविमल प्रभु ध्यान थी, होय अचल अहिठाण...३... चौद भुवन वश कारणे, विद्या वर्धमान, वर्धमान सुख आपवा, अहिज परम निधान...१... वर्धमान जिनराजनु, करो भविका ध्यान, चौद भेद छ जीवना, ओ यतना प्रधान...२... चौद पूर्व नो सार छे चौदिशी जिनराज, ज्ञानविमल थो जाणोओ, अहना सकल दिवाज...३.. [६] सकल अर्हत् प्रणमुं सदा, चतुरदशी सुखकार, उत्कृष्टा अढीद्विपमां, पन्नर क्षेत्र मोझार...१... अकसो सित्तेर जिनवरा, जघन्य पदे वली वीश, सीमंधर आदे सदा, नित्य नमावू सीस...२... दक्षिण भरते वंदिओ, ऋषभ अजित अरिहंत, सम्भव अभिनंदन वली, सुमति पद्म महंत...३... श्री सुपार्श्व चंद्रप्रभु, सुविधि शीतलनाथ, श्री श्रेयांस जिनेश्वरु, वासुपूज्य विख्यात...४ विमल अनन्त वन्दु सदाधर्म शांति उर धार, कुंथु अर मल्ली प्रभु, मुनिसुव्रत मनोहार...५... नमी नेमि प्रमु पासजी, चोवीसमा श्री वीर, .. चौतीस अतिशय ओपतां, पेंतीस गुण गम्भीर...६... Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३०] सम्भव जिनवर जनमीया, अभिनंदन लहे नाण, शीतल केवल पामीया, कुन्थु जन्म कल्याण... ७... वासुपूज्य मुक्ते गया, जन्म तिथि अह जाण, शांति अनंत दीक्षा ग्रहे, अनंत जिन केवल नाण... ८... चौदश दिन तप जे करे, पक्खी तणो उपवास, गुण ठाणो लहे चौदमो, पामे शिवपुर वास... ६... शासन नायक शोभतो, व्हालो वीर जिणंद, कीर्त्तिचंद्र मोहे दीजिये, शिव रमणी सुखकंद.... १०... [७] चतुर्दशी चारित्र तिथि, आराधो उल्लास, वासुपूज्यजी अह दिने, पाम्या शिववास...१... अभिनंदन शीतल प्रभु, तिम अनंत नु जाण, केवल कल्याणक भलु हर्ष धरी मन आण...२... अनन्त शांति दीक्षा लहे, वासुपूज्य अवतार, संभव कुन्थु जनमीया, न्याय मुनि सुखकार...३... जिन जन्मादिक कल्याणक गर्भित चैत्यवंदनो अकम नुं चैत्यवन्दन श्री कुन्थु परमात्मा, सत्तरमो जिनराय, कनक वरण शुभ देहडों, प्रणम्या पातक जाय...१... मुख सोहे पुनम शशी, अनन्त गुणी अरिहन्त, अक सहस अड लक्षणा, हस्त चरण गुणवंत...२... नन्दन सूर नरिन्दनो, सुरादेवी माय, अज लंछन चरणांबुजे, छट्टो चक्री राय...३... चैत्यवन्दन Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला सहस पंचाणु वरसनु, पाली निर्मल आय, समेतशिखर तीरथ कर्यु, आप ठवि प्रभु पाय... ४... वैशाख वदि अकम दिन, साथै सहस मुणिंद, अविनाशी अरिहंत थया, चरण नमे सूर्य चंद्र... ५... बीज नुं चत्यवन्दन दशमा शीतलनाथ शीतल, मोक्षपुर पावनकरं, असित माधव द्वितिया प्रणमो, बीज कल्याणक वरं... १... अभिनंदन जिननाथ जनम्या, माघ द्वितिया सितवरं, ज्ञान वरिया वासुपूज्य, माघ शुदि बीजे परं ... २.. फागुन श्रावण शुक्ले चविया, सुमति ने अर जिनवरं, रवि उदये नित्यनाथ नमिओ, बीज कल्याणक वरं..३... त्रीज तु चैत्यवन्दन श्रावण वदि श्रीजे नमो, श्रेयांसनाथ निर्वाण, समेतशिखर गीरि उपरे, सहस मुनि गुणखाण... १... माघ सीत त्रीज जनमोया, धर्म विमल जिनराय, कार्तिक शुद्धि त्रीजे थया, सुविधि ज्ञानीराय...२... चैत्र शुक्ल तृतीया दिने, कुन्थु केवलज्ञान, रवि उदयें शिर नामिये, वरवा निर्मल नाण... चोथ तु चत्यवन्दन दुः कृतनाशी सुख विलासी, विमलगोरि वंदन करं, नरनाथ सुरपति सकल प्रणमे, आदिनाथ जिनेश्वरं ... १ असित चोथ अषाढ़ मासे, च्यवन कल्याणक वरं, चैत्र मासे असित चोथे, पार्श्व जिन जननी उरं...२... [३१] ... Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्य वन्दन [३२] शुक्ल फाल्गुन चोथ दिवसे, च्यवन मल्लि जिनवरं, वैशाखनी सित चोथे चविया, अभिनंदन अधहरं... ३.. कृष्ण चैत्रे चोथ दिवसे, पार्श्वजिन केवलधरं, माघसितनी चोथें वरिया, चरण विमल जिनवरं ... ४... क्षायिक भावे नाण दर्शन, सकल आपद दुःखहरं रवि उदये जिनराज नमिओ, चोथ कल्याणक वरं... ५... पंचमी नुं चैत्यवन्दन अनन्तनाणी सिद्धठाणी, रैवताचले गीरिवरं, सुर किन्नर नरनाथ संस्तुत, नमो नेमि जिनेश्वरं ...१... शुक्ल श्रावण पंचमी दिन जन्म कल्याणकवरं, असित मागशर पंचमी शुभ, जन्म सुविधि जिनवरं ...२... अजित सम्भव अनंत मुक्ति, चैत्र शुदि पंचमी वरं, 1 कार्तिक पंचमी असित पक्षे, संभव केवलधरं ...३... कृष्ण पंचमी चैत्र मासे, च्यवन अष्टम जिनवरं, पंचमी वैशाखनी वदि, चरित कुन्थु जिनवरं ...४... धर्म जिनवर मुक्तिगामी, जेष्ठ सित पंचमी वरं वहाणुं वाता रवि प्रणमे, पंचमी दिन जिनवरं ... ५... छट्ठ नुं चैत्यवन्दन मांडवगढ नो राजीयो, नामे देव सुपास, फाल्गुन कृष्णनी छठ दिने, पंचम ज्ञान प्रकाश...१... माघ जेठ वैशाख वदि, आषाढ़ शुदि छठ जाण, पद्म श्रेयांस शीतल जिणंद, वीर च्यवन कल्याण... २... Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [३३] सुविधि प्रभु संयम वर्या, मागशर वदि छठ जाण, पोष शुक्ल छठ दिवसे, विमल जिनेश्वर नाण...३... वरसीदान वरसी लीयो, संयम नेमि जिणन्द, श्रावण शुदि छठना दिने, नमत रवि मुनिचन्द...४... सातम नु चैत्यवन्दन । आषाढ वदि दिन सातमे, विमल विमल जिनचंद, असित फाल्गुन सप्तमी, श्री सुपार्श्व जिणंद...१... कृष्ण भाद्रवा सप्तमी, चन्द्रप्रभु जगनाथ, समेतशिखर सिद्धि वर्या, बहु मुनि परिकर साथ...२... वैशाख शुदि श्रावण वदि, भाद्रवा वदि तिथि तेह, धर्म अनन्त शांति प्रभु, च्यवन कल्याण गणेह...३... अष्टम जिन घाति हणी, प्राम्या पचम नाण, फाल्गुन वदि दिन सप्तमी, रवि प्रणमे जगभाण...४... अष्टमी - चैत्यवन्दन आबु गिरिवर अनंत महिमा, कोरणी भवि चित्त हरं, दुःख निवारण सुगति कारण, नमो आदि जिनेश्वरं...१ असित चैत्रे अष्टमी दिन, जन्म दीक्षा जिनवरं, अष्टमी आषाढ शुक्ले, परमपद नेमिश्वरं...२ माघ सित वैशाख जनम्या, अजित सुमति जिनवरं, फाल्गुन अष्टमी शुक्ल पक्षे, च्यवन सम्भव जिनवरं...३ अभिनन्दन मोक्ष पाम्या, माधव अष्टमी सितवरं, . मुनिसुव्रत जिननाथ जनम्या, जेठ वदि अष्टमी वरं...४ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३४] चैत्यवन्दन असित श्रावण अष्टमी दिन, जन्म श्री नमि जिनवरं, पास जिनवर मोक्ष वरीया, श्रावण सित अष्टमी वरं...५ कृष्ण अष्टमी भाद्रवानी, च्यवन सप्तम जिनवरं, अष्टमी दिन रवी प्रणमे, कल्याणक श्री जिनवरं ... ६ नवमी (नौम) नुं चत्यवन्दन जीवंतस्वामी मुनिसुव्रत जिन, भरूचपुरे भविलोक नमो, असित जेष्ठ नवमी दिन थुणिओ, पारंगत परमेश नमो. १ सुविधि जिन शिवरमणी वरिया, भाद्रव नवमी शुक्ल नमो, चैत्र शुदि नवमी दिन वरिया, सुमति जिन शिवनारी नमो. २ केवल श्री वरिया जिन शांति, पोष तणी सित नवमी नमो, सुमति अजितनी दीक्षा नवमी, वैशाख माघ शुदी प्रणमो. ३ असित पक्षे श्रावण फाल्गुन, कुन्थु सुविधि च्यवन नमो, वासुपूज्य जिन च्यवन कल्याण, नवमी जेठ शुद्धि प्रणमो. ४ आषाढ़ नवमी असित पक्षे, चरण लीयो नमिनाथ नमो, नवमी दिन जिननां कल्याणक, अकेंदु उवज्झाय नमो. ५ दशमी नुं चैत्यवन्दन अष्टादश अरनाथ सुजाण, मार्गशीर्ष शुदि दशमी जाण, वैशाख वदि दशमी कर सेव, नमिनाथ अकवीशमा देव. १ सहस मुनिवर साथे जाण, समेतशिखर पाम्या निर्वाण, पार्श्व प्रभुनो जन्म कल्याण, पोष वदि दशमी दिन जाण. २ महावीर दिक्षा दिन जाण, मागशर वदि दशमी मन आण, अरनाथ जिन जन्मकल्याण, मागशर शुदि दशमी गुणखाण. ३ वैशाख शुदि दशमी जगभाण, महावीर लही पंचम नाण, वर्तमान चोवीशी जाण, रवी नमे दशमी कल्याण ४ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [३५] __ अकादशी नु चैत्यवन्दन नमिये साचा देव सुमति, तालध्वज गिरी मातरं, अकादशी सित चैत्र मासे, नाण पंचम जिनवरं...१... शुक्ल अकादशी मागशर, जन्म दीक्षा दुःखहरं, मल्लि नमि वली केवलीश्री, अरजिन संयमवरं...२... अकादशी सित जेष्ठ मासे, जनम्या सप्तम जिनवरं, कृष्ण अकादशी फाल्गन, आदि जिन केवलपरं...३... अकादशी सित पोष पक्षे, अजित केवलश्री वरं, पोष अकादशी कृष्णा, चरित्त पारस जिनवरं...४... पद्मप्रभु निर्वाण पाम्या, समेतशिखर तीरथ वरं, असित अकादशी मागशर, रवि मन मोहन करं...५... द्वादशी (बारश) नुचैत्यवन्दन कार्तिक फाल्गत असिते जनम्या, पद्मप्रभु श्रेयांस नमो, माघ शुक्ल बारश दिन दीक्षा, अभिनंदन जिननाथ नमो.१ पोष असित ने जेठनी सिते, चंद्र सुपार्श्व जिन जन्म नमो, कार्तिक बारस असित पक्षे, नेमि जिनेश्वर च्यवन नमो.२ फाल्गुन कार्तिक असित सिते, मुनिसुव्रत अर नाण नमो, माघ मासनी बारस कृष्णा, शीतल संयम जन्म नमो.३' वैशाख मासे उज्ज्वल बारश,च्यवन विमल जिननाथ नमो, मुनिसुव्रत संयमश्री वरीया, फाल्गुन बारश श्वेत नमो.४ फाल्गुन उज्ज्वल बारश दिने, मल्लिनाथ महाराय नमो, समेतशिखर शिववधू वरीया, अर्केदु मुनिनाथ नमो.५ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३६] चैत्य वन्दन त्रयोदशी (तेरस) नुं चैत्यवन्दन वैभारवासी अघ विनाशी, मातृ त्रिसला नन्दनं, शासनाधिप नमित सुरपति, चोवीशमो जिन चन्दनं. १ चैत्र तेरश सिते जनम्या, वीर जग जन वन्दनं, जन्म ने शिव शांति वरीया, जेष्ठ वदि तेरश दिनं. २ फाल्गुन कार्तिक पोष मासे, कृष्ण त्रयोदशी वर दिनं, श्रेयांस श्री जिन पद्म चन्द्र, चरण जग जन वन्दनं. ३ ऋषभ अष्टापदे सिद्धा, माघ वदि तेरश दिनं, जननी उदरे अजित आव्या, वैशाख सित तेरश दिनं. ४ शुक्ल त्रयोदशी जेठ मासे, संयम सुपारस जिनं, चौदमां जिननाथ जनम्या, वैशाख सित तेरश दिनं. ५ चरण श्री जिन धर्म वरीया, माघ त्रयोदशो सित दिनं, शीत तम जिम रवी टाले, पाप तिम जिन वन्दनं. ६ चतुर्दशी (चौदश) तु चैत्यवन्दन > सितपक्ष सु चौदश मार्गसरं, जिन जन्म सुसंभवनाथ परं, उज्ज्वल वदि चौदश पोष परं, अभिनंदन शीतल नाणवरं . १ प्रभु शांति सुशांतिकरं चरणं, तिथि जेठ सुचौदश ते कृष्ण, जिन जन्म कल्याण द्वादशमं वदि चौदश फाल्गुन श्रीकरणं. २ वर संयम नाण अनंत जिनं, वदि चौदश माधव मास दिनं, जिन कुंथु सुजन्म थकी पवितं, दिन माधव चौदश तं असतं. ३ सित चौदश आषाढ़ मास दिनं, पुर चंपक पावन कार जिनं, वसुपूज्य सुतं गत मोक्ष पदं, उवज्झाय नमे अकेंदु पदं . ४ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [३७] पूर्णिमा तथा अमावस्या नु चैत्यवन्दन अमावास कार्तिकनी मधरात्रे, महावीर स्वामि वर्या मोक्षराजं, शुक्ल मागसरे पुर्णिमा पुन्यशाली, सुदीक्षा नमो संभवं देवराज...१ प्रभु पद्मने धर्म दो सर्व जाणी, मधु पोषनी पूर्णिमा परमनाणी, अमावास आसोजनी माघ मासे, प्रभु नेमि श्रेयांस श्रीनाणवरणं...२ आसोज श्रावण तणी पूर्णिमायां, नमिनाथने वीशमा देवचविया, अमावास फाल्गुन रवि शांति दरिया, प्रभु वासुपूज्य सुधीचरण वरीया...३ पौष दशमीना चैत्यवंदनो [१] महिमा पोष वदि तिथि, दशमी अपरंपार, पार्व जिनेसर पूजीओ, जिम लही भवपार...१. ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ, अर्हते नमः जाण, गणणुं प्रभुना नामर्नु, दोय हजार प्रमाण...२.. अकासन दिन त्रण हुवे, अथवा अट्ठम सार, धर्मरत्न प्रभु पासजी, तार तार भव पार...३... [२] पोष वदि दशमी दिने, पासजी- कल्याण, अश्वसेन - राजा घरे, मोटेरो मंडाण...१... Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ winterw armer [३८] चैत्यवन्दन वामादेवी चित्तमां, आनंद अति उभराय, मेरू गीरिवर उपरे, देव देवी हरखाय...२. सर्प लंछन सोहामणो, जगपति ने सोहे. शंखेसरमां भेटता, धर्मरत्न मन मोहे...३ [३] कल्याणक जिन पासन, पोष दशमी दिन जाण, पोष वदि अग्यारशे, संयम पास वखाण.. पोष वदि नवमी थकी, त्रण दिन आराधो, पार्श्वनाथाय नमः वली, अर्हते नमः साधो...२... त्रोजे दिन नाथाय नमः; वीश माला कीजे, अकाशन के अट्टमे, ज्ञानविमल शिव लीजे...३... मेरू तेरस नु चैत्यवन्दन अयोध्या नयरी भली, अनन्त वीर्य राजन, प्रियमति पटराणी वली, गुणवंता पुरिजन...१.. कोणिक साधु विचरता, आवे वहोरण काज, राजा राणी उल्लसे, वहोरावे मुनिराज...२... पुत्र होशे मुजने कदा, भाखो तेह विचार, मुनि कहे सुणो राजवी, ओ नहीं अम आचार...३... अति आग्रहथी विनवे, भाखे तव मुनिराय, पुत्र होशे पण पांगळो, जन्म थकी महाराय...४... विहार करंता आवता, चउनाणी मुनिराज, गांगिल सूरि सोहामणा, देशना सुणे महाराज...५... जन्म थकी सुत पांगळो, कवण कर्म विरतंत, किण विध कर्म खपे प्रभु, भाखो करुणावंत...६... Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला - - मगली तणा पग छेदीया, इण कर्मे पांगुल, वदि तेरश आराधीओ, कर्म नाश होय मूल...७... पारगताय नमः सहित, आदि जिनेसर राय, दोय हजार गणणुं गणो, मेरू पंच महाराय...८. आदि जिन निर्वाणथी, मोटो दिन छे अह, मेरू तेरश जगमहीं, करे कर्मनो छेह...६... पिंगल पुत्र पांगळो, आराधे उल्लास, शुभ कर्म उदये थयो, सुदर शरीर सुवास...१०... भुक्त भोगी दीक्षा लही, केवली मुक्ते जाय, मेरू तेरश उजवता, धर्मरत्न पद थाय...११... चैत्र वदि आठम (ऋषभ जन्म-दीक्षा) मुँचत्यवन्दन चैत्र वदि आठम तणो, दिन अति मनोहार, जन्मे प्रथम जिनेसर, हुंओ जय-जयकार...१... छप्पन दिक कुमरी मली, प्रभुने हुलरावे, ऋषभ मुख देखी करी, आनंद' अति पावे...२... दीक्षा पण अहिज दिने, प्रथम यति व्रत धार, आठम दिन जिन गावता, धर्मरत्न लहे पार... चैत्र शुदि तेरश (वीर जन्म) नु चैत्यवन्दन चैत्री तेरशने दिने, जनम्या श्री महावीर, छप्पन दिक्कुमरी मली, हुलरावे प्रभु वीर...१... मेरू गीरि पर उजवे, कल्याणक महावीर, इन्द्र तणी शंका तिहां, फेडे श्री प्रभु वीर...२... ज्ञानविमल ने पामतां, भक्ति करे जे धीर, वीर प्रभु ध्याने लहुं, परम पद गंभोर...३... Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४०] चैत्य वन्दन अक्षय तृतीया नुं चैत्यवन्दन छठ तप करी व्रत लीये, आदीश्वर जिनराय, आहारादिक तणो हुओ, प्रभुजी ने अंतराय ...१... अक वरसने अन्तरे, श्री श्रेयांस कुमार, प्रभु करावे पारणुं, वर्षीतप तिणे सार...२... वैशाखी त्रीजना दिने, धर्मरत्न गुणगाय, अखात्रीज नामे घणो, महिमा लोक गवाय...३... पर्युषण पर्वना चैत्यवंदनो [ १ ] नंद... १... शत्रुंजय श्रृंगार हार, श्री आदि जिणंद, नाभिराया कुळ चंद्रमा, मरूदेवी काश्यप गोत्र इक्ष्वाकु वंश, विनीतानो राय, धनुष पांचसें देहमान, सुवर्ण सम काय...२... वृषभ लंछन धुर वंदिओ, संघ सकळ शुभ रीत, अट्ठाइधर आराधीओ, आगम वाणी विनीत...३... [२] प्रणमुं श्री देवाधिदेव, जिनवर महावीर, सुरवर सेवे शांत दांत, प्रभु साहस धीर...१... पर्व पर्युषण पुण्यथी, पामी भवि प्राणी, जैन धर्म आराधीओ, समकित हित जाणी...२... श्री जिन प्रतिमा पूजीओ, कीजे जन्म पवित्र, जीव जतन करी सांभळो, प्रवचन वाणी विनीत...३... Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [४१] [३] कल्प तरुवर कल्पसूत्र, पूरे मन वांछित, कल्पधरे धुरथी सुणो, श्री महावीर चरित...१... क्षत्रिय कुंडे नरपति, सिद्धारथ राय, राणी त्रिसला तणी कुखे, कंचन सम काय...२... पुष्पोत्तरवर थी चव्या, उपज्या पुण्य पवित्र, चतुरा चौद सुपन लहे, उपजे विनय विनीत...३... [४] स्वप्न विधि कहे सुत होशे, त्रिभुवन शृंगार, ते दिनथी ऋद्धे वध्या, धन अखूट भंडार... १... साडा सात दिवस अधिक, जनम्या नव मासे, सुरपति करे मेरुशिखर, उत्सव उल्लासे...२... कुंकुम हाथा दीजिये अ, तोरण झाकझमाळ, हरखे वीर हुलरावीओ, वाणी बिनय रसाळ...३... [५] जिननी बहेन सुदर्शना, भाइ नंदिवर्धन, परणी यशोदा पदमणी, वीर सुकोमल रतन देइ दान संवत्सरी, लेइ दीक्षा स्वामी, कर्म खपावी केवली, पंचमी गति पामी... २... दिवाली दिवस थकीओ, संघ सकल शुभ रीत, अट्टम करी तेलाधरे, सुणजो ओके चित्त...३... [६] पार्श्व जिनेश्वर नेमनाथ, समुद्रविजय विस्तार, सुणीये आदीश्वर चरित्र, श्री जिननां अंतर... १... १... Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४२] चैत्यवन्दन गौतमादिक स्थविरावळी, शुद्ध सामाचारी, पर्वराय चोथे दिन, भाख्यां गणधारी...२... ज्ञान दर्शन चारित्र तप , जिन धर्मे दृढ चित्त, जिन प्रतिमा जिन सारिखी, वंदु सदा विनीत...३... [७] पर्वराज संवत्सरी, दिन दिन प्रति सेवो, श्लोक बारसे कल्पसूत्र, वीरनं निसुणेवो...१... पाट परंपर बार बोल, भाख्या गुरु हीरे, संप्रति श्री विजयदानसूरि, गच्छाग्रणी धीरे...२... जिनशासन शोभा कहुं, प्रीतिविजय गुरु शिष, विनीतविजय कहे वीरने, चरणे नामं शिश...३... नोंध : बहु जुना पुस्तकमां आ सातनु अकज चैत्यवंदन छ । [८] श्री शत्रुजय मंडणो, श्री आदि जिणंद, पद अरविंद नमे जास, सुर असुर नरिंद...१... काया पंचशय धनुष ऊंच, वृषभांक विराजे, गोमुख जक्ष चक्केसरी, शासन सूरी छाजे...२... नाभी सरोवर वंशमांओ, उग्यो अभिनव सूर, त्रिकरण शुद्ध पूजतां, लच्छी लहे भरपूर...३... पूरण पुन्ये पामीओ. पर्युषण पर्व, पुजा पोसह करो भवि, मूकी मन गर्व...४... जीव अमारी तणो पडह, भावे वजडावो, नवनिधि मंगल मालिका, जिम संपति पावो...५... Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [४३] पूजा ने प्रभावना ओ, पच्चक्खाण उदार, पडिक्कमणुं वली कीजिओ, साहम्मीवच्छल सार...६... छठ करी शुभ भावशुंओ, जिन पूजा रचीजे, अष्टोतरी ने सत्तरभेदी, यथाशक्ति करीजे...७... वडाकल्पे श्री कल्पसूत्र, ओच्छव शुं आणी, नाणे सोना रुप्यने, पूजी सुणो प्राणी...८... प्रथम चरित्र वीरनुं ओ, जग जनने सुखकार, कल्प अच्छेरां दश कह्यो, भव सत्तावीश सार...६. चौद सूपन भवि सांभळो, लक्षण संयुक्त, जन्म हुओ श्री वीरनो, बीज परे भाव सूत...१०. छप्पन दिग्कुमरी करे, ओच्छव अभिराम, इंद्र सर्वे ओच्छव करी, करे जिन गुणग्राम...११... श्री सिद्धारथ नरपति, जन्मोच्छव करेय, इंद्र आणाओ धनद देव, द्रव्ये घर भरेय...१२... बाल क्रिडा दीक्षा तणो, छे बहु अवदात, केवलज्ञान लही करी, पाम्या भवपार...१३... बीज दिने श्री इंद्रभूति, वरनाण संपन्न, इत्यादिक सुणो विस्तारी, श्री वीर चरित्र...१४... तेलाधर दिवसे करोओ, अठम तप मनोहार, नागकेतु श्रावक परे, जेम होय जय-जयकार...१५... पुरिसादाणि पार्श्वनाथ, श्री नेम चरित्र, जिनपति केरां आंतरा, सुणो थई पवित्र...१६... Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४४ ] वृषभ चरित्र स्थविरावली, यति सामाचारी, भावे सुणतां भवसमुद्र, तरीया नरनारी... १७... संवत्सरीने दिने करो, महा महोत्सव सार, कल्पसूत्र अकवीस वार, सुणीओ सुखकार... १८... बार बोल पट्टावली, धुर सोहम स्वामि, पट्ट परंपरा विजयमानसूरि, शिष्य गुणधामी... १६... कीजे चैत्य परिपाटिका, साहमी खामीजे, पडिकमणुं करी भावशुं, बहु दानज दीजे... २०... विजय आनंद सूरीसरू, तपगच्छ तिलक समान, पंडित हंसविजय तणो, धीर करे गुण गान... २१... [ε] सकल पर्व शृंगार हार, पर्युषण कहीओ, मंत्रमाही 'नवकार मंत्र, महीमा जग लहीओ ... १... आठ दिवस अमारो सार, अट्ठाई पालो, आरंभादिक परिहरी, नरभव नरभव अजुवालो...२... चैत्य परिपाटी साधु, विधि वंदन जावे, अठम तप संवच्छरी, पडिक्कणुं भावे...३... साधर्मिक जन खामणांओ, त्रिविधशु कीजे, साधु मुख सिद्धांत कांत, वचनामृत रस पोजे... ४... नव व्याख्याने कल्पसूत्र, विधि पूर्वक सुणीओ, पूजा नव प्रभावना, निज पातक हणीओ ... ५... चैत्य वन्दन प्रथम वीर चरित्र बीज, पार्श्व चरित्र अंकूर, नेम चरित्र प्रबंध खंध, सुख सम्पत्ति पूर... ६... Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [४५] ऋषभ चरित्र पवित्र पत्र, शाखा समुदाय, स्थविरावालो बहु कुसुम पुर, सरीखो कहेवाय...७... सामाचारी शुद्धता ओ, वर गंध वखाणो, शिवसुख प्राप्ति फल लहो, सुरतरु सम जाणो.. चोद पूर्वधर श्री भद्रबाह, कल्पे उद्धरीयो, नवमा पूर्व श्री युगप्रधान, आगम जल दरियो...६... अकवीस वार श्री कल्पसूत्र, जे सुणे भवि प्राणी, गौतमने कहे वीर जिन, परणे शिवराणी...१०... कालिकसूरि कारणे अ, पजुसण कीधां, भादरवा शुदि चोथमां, निज कारज सीधा...११... पंचमी करणी चोथमां, जिनवर वचन प्रमाणे, वीर थकी नवसें अंशी, वरसे ते आणे...१२... श्री लक्ष्मीसागर सूरीश्वरु, प्रमोद सागर सुखकार, पर्व पजुसण पालतां, होवे जय-जयकार...१३... [१०] श्री पजोसण पर्व सेवो, भविजन सहु हरखी, आठे दिन अ नित आराधो, निज आतम परखी...१... गुण अनंत छे जेहना, धर्म ध्यान नित कीजे, प्रभु गुण सर्व संभाळीने, निज भावो लखीजे...२... कल्पतरु सम कल्पसूत्र, निज मंदिर पधरावो, गीत गान मन भावशुं, शुभ भावना भावो...३... करी वरघोडो अभिनवो, जीनशासन दीपावो, शुभ करणी अनुमोदतां, गुरु समीपे लावो...४... Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- [४६] चंत्यवन्दन गुरु प्ररूपे वायणा, भाव भक्ति ने काजे, . छठ तप करी निर्मलो, आतम शक्ति छाजे...५... प्रतिपदा से प्रभु वीरनो, जन्म महोच्छव कीजे, भगति वत्सल भगवंतनी, सेवा भवि कीजे...६... अट्ठम तप करी निरमलो, सकल सुणो अधिकार, नागकेतुनी परे निरमलो, जेम पामो भवपार...७... वली सुणवा बारशें सूत्रनां, भवि थई उजमाल, श्रीफल स्वामी प्रभावना, करी टालो जंजाल...८... अट्ठाइ महोत्सव अणीपेरे, पालो निरतीचार, कारज़ कारण फल होशे, तो तरसो भवपार...६... द्विप नंदिसर आठमे, देव मली समुदाय, अठाइ ओच्छव करी, निज-निज थानक जाय...१०... सुलभबोधी जीवने, हरखे साते धात, ते माटे आराधवा, मन कीजे रळीयात...११... तपगच्छ नायक गुणनीलो, विजयसेन सूरीराय, पंडित पद्मविजय तणो, दीपविजय गुण गाय...१२... [११] पर्व पर्युषण गुणनोलो, नव कल्प विहार, चार मासांतर स्थिर रहे, अहिज अर्थ उदार...१... अषाढ़ शुदि चौदश थकी, संवत्सरी पचास, मुनिवर दिन सीत्तेर में, पडिक्कमतां चोमास...२... श्राबक पण समता धरी, करे गुरुनां बहुमान, कल्पसूत्र सुविहित मुखे, सांभळे थई अकतान...३... Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [४७] जिनवर चैत्य जुहारीओ, गुरु भक्ति विशाळ, प्राये अष्ट भवांतरे, वरीये शिव वरमाळ...४... दर्पणथी निज रूपनो, जुवे सुदृष्टि रूप, दर्पण अनुभव अर्पणे, ज्ञान रयण मुनि भूप...५... आत्मस्वरूप विलोकतां, प्रगट्यो मित्र स्वभाव, . राय उदायी खामणां, पर्व पर्युषण लाब...६... नव वखाण पूजी सुणो, शुक्ल चतुर्थी सीमा, पंचमी दिन बांचे सुणे, होय विराधक नियमा...७... मे नहि पर्वे पंचमी, सर्व समाणी चोथे, .. भवभोरू मुनि मानशे, भाख्युं अरिहा नाथे...८... श्रुत केवली वयणा सुणी, लही मानव अवतार, श्री शुभवीरने शासने, पाम्या जय-जयकार...६... [१२] वडाकल्प पूरव दिने, कल्प घरे लावो, रात्री जगो प्रमुख करी, शासन सोहावो...१... हय गय रथ शणगारीने, कुंवर लावो सुरु पासे, वडा कल्प दिन सांभळो, वीर चरित्र उल्लासे...२... छठ अठम तप कीजिओ, धरी शुभ परिणाम, साहम्मीवच्छल प्रभावना, पूजा अभिराम...३... जिन उत्तम गौतम प्रते, कहे जो अकवीस वार, गुरुमुख पद्म भावशू, सुणतां पामे पार...४... पर्व पजसण आवीया, कीजे व्रत पचखाण, अठाइ दिन अति भलो, पोषा सहित प्रमाण...१... Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४] चंत्य वन्दन अठाइ महोत्सव आदरे, सुणोये सद्गुरु पास, वडा कल्पे वली कीजिये, छठ तणो तप खास...२... जन्मोच्छव श्री वीरनो, दीक्षा केवल ज्ञान, पार्श्व नेमि वली अंतरा, आदिनाथ व्याख्यान...३ . संघ चतुर्विध अकठा, मिलिये सद्गुरु पास, सूत्र सुणो मन वस करी, पूरे वांछित आश...४... चउत्थ छठ अठम करी, सुणिये थिर करो चित्त, अकवीस वार आराधतां, ते पामे सुख नित...५... सिद्धारथ कुल शोभतो, स्वामो वीर जिणंद, अठाई महोच्छव आखीयो, कीत्तिचंद्र सुखकंद...६... [१४] प्रथम चरम जिनपतिना, शासने निश्चे कह्यु, साधु ने श्रावक तणा, भव दोष हरवा गुण ग्रह्यु, अशाश्वतुं पण शाश्वतुं जे, सुख देतुं शिवकर, पर्वमांही गुणनिधि ते, पर्युषण सवि हितकरं...१... उपवास छट्ट अट्ठम वली, मास पास छमासी, तप विविध जातीना करंता, आत्म शक्ति विकासीओ, पुनोत अबुं कल्पसूत्र, भद्रबाहु रचित वरं.पर्व.२ द्रव्य भाव थी सांहमी वच्छल, चैत्य सवि जुहारी, खामणा अट्ठम करतां, शल्य तीन निवारी, सवि जीव ने सुख आपनारो, पडहो अमारि दुःखहरं.पर्व.३ गुरुमुखे व्याख्यान सुणीने, दान दुःखोने दीजिअ, वीर नेम पास आदि चरित्र, वाणी सुधा पीजीओ, आंतरा स्थविरावलो ने, सामाचारी विहित परं.पर्व.४ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [४६] संवत्सरी दिन सार गणी, बारसा सुणीओ मुदा, चारे कषायो क्रोध मान, माया लोभ करी जुदा, .. मिच्छामि दुक्कडम् महामंत्र, धर्मरत्न वशकर, पर्वमांही गुणनिधि ते, पर्युषण सवि हितकरं.पर्व.५ श्री सिद्धचक्रजीना चैत्यवन्दनो [१] सुखदायक श्री सिद्धचक्र, अहिनिश आराहो, प्रेम धरीने प्रणमीये, धरी अंग उमाहो...१... त्रिकरण शुद्धे जावजीव, शक्ते आराही, उत्तरोत्तर सुख शाश्वता, जिम सहेजे वरीओ...२... जिनशासनमां अह छ, जिम महामंत्र नवकार, ज्ञानविमलथी जाणीये, अहनो परम आधार...३... [२] सुललित पद ध्यानथी, परमानंद लही, ध्यान अग्निथी कर्मनां, इंधण पुण दहीओ...१ इति भीति ने रोग शोक, सवि दूर पणासे, भोग संजोग सुबुद्धिता, प्राप्ति सुविलासे...२... सिद्धचक्र तप कीजतांबे, उत्तम प्रभुता संग, मोहन नाण प्रसिद्धता, गंगारंग तरंग...३... [३] श्री सिद्धचक्र आराधीओ, आसौ चैतर मास, नव दिन नव आंबिल करी, कीजे ओळी खास...१... केसर चंदन घसी घणां, कस्तूरी बरास, पद. अकेकुं दोय हजार, गुणतां पुरे आश...२... . Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५०] । चंत्यवन्दन जुगते जिनवर पूजीया, मयणा ने श्रोपाळ, पूजा अष्ट प्रकारनी, देववंदन त्रण काळ...३. कष्ट टळयुं उंबर तj, जपतां नवपद ध्यान, श्री श्रीपाल नरिंद थया, वाध्यो बमणो वान...४... सातसो कोढि सुख लह्या, पाम्या निज आवास, पुण्ये मुक्ति वधु वर्या, पाम्या लील विलास...५... [४] सकल मंगल परम कमला, केलि मंजुल मंदिरं, भवकोटो संचीत पाप नाशन, नमो नवपद जयकर...१ अरिहंत सिद्ध सूरीश वाचक, साधु दर्शन सुखकरं, वर ज्ञान पद चारित्र तप अ, नमो नवपद जयकर...२ श्रीपाल राजा शरीर साजा, सेवता नवपद वरं, जगमांही गाजा कीत्ति भाजा, नमो नवपद जयकरं...३ श्री सिद्धचक्र पसाय संकट, आपदा नासे परं, वळी विस्तरे सुमनोवांछित, नमो नवपद जयकरं...४ आंबिल नवदिन देववंदन, त्रण टंक निरंतरं, बे वार पडिकमणा पडिलेहण, नमो नवपद जयकरं...५ त्रिकाल भावे पूजीओ, भवतारकं तिर्थंकरं, गणणुं दोय हजार गुणीओ, नमो नवपद जयकरं...६ विधि सहित मन वचन काया, वश करी आराधी, तप वर्ष साढा चार नवपद, शुद्ध साधन साधीओ...७ गद कष्ट चूरे शर्म पूरे, यक्ष विमलेश्वर वरं, श्री सिद्धचक्र प्रताप जाणी, विजय विलसे सुखभरं...८ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [५१] [५] जो धुरि सिरि अरिहंत मूल, दृढ पीठ पइट्ठिओ, सिद्ध सूरि उवज्झाय साहू, चिहुँ साह गरिठ्ठिओ...१ दंसण नाण चरित्त तव ही, पडीसाहा सुंदरू, ततक्खर सरवग्ग लद्धि, गुरु पय दल दूंबरू...२ दिसिपाल जक्ख जक्खिणि, पमूह सुरकुसुमेहिं अलंकिओ, सो सिद्धचक्क गुरु कप्प तरु, अम्ह मनवंछिय फल दीओ..३ श्री सिद्धचक्र आराधतां, सुख सम्पत्ति लहोओ, सुरतरु ने सुरमणी थकी, अधिकज महिमा कहीजे...१... अष्ट कर्म हाणो करी, शिव मंदिर रही, विधिशुं नवपद ध्यानथी, पातिक सवि दहीओ...२... सिद्धचक्र जे सेवशे, अकमना नर नार, मनवांछित फळ पामशे, ते त्रिभुवन मोझार... अंग देश चंपा पुरी, तस केरो भूपाल, मयणा साथे तप तपे, ते कुंवर श्रीपाल... सिद्धचक्रना न्हवणथी, जस नाठा रोग, तत्क्षण त्यांथी ते लहे, शिवसुख संजोग...५... सातसे कोढी होता, हुआ निरोगी जेह, सोवन वाने झलहले, जेहनी नीरूपम देह...६... तेणे कारण तमे भविजनो, प्रह उठी भक्ते, आसो मास चैत्र थकी, आराधो जुगते...७ .. सिद्ध चक्र त्रण कालना, वंदो वली देव, पडिकमणुं करी उभयकाल, जिनवर मुनि सेव...... । भक्त , Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५२] नवपद ध्यान हृदये धरो, प्रतिपाळी भवि शील, नवपद आंबिल तप तपो, जेम होय लीलम लील... ६... पहेले पद अरिहंत नुं, नित्य कीजे ध्यान, बीजे पद वली सिद्धना, करीओ गुणगान ... १०.... आचारज त्रीजे पदे, जपतां जय-जयकार, चोथे पद उवज्झायना, गुण गाऊं उदार... ११... सर्व साधु वंदु सही, अढीद्विपमां जेह, पंचम पदमां ते सही, धरजो धरी सनेह... १२... छट्ठ े पद दरसण नमुं, दरशन अजवालुं, ज्ञान पद नमुं सातमे, तेम पाप पखालु...१३... आठमे पद रूडे जपुं, चारित्र सुसंग, नवमे पद बहु तप तपो, फल लहो अभंग... १४... अही नवपद ध्यानथी, जपतां नाठे कोढ, पंडित धीरबिमल तणो, नय वंदे कर जोड... १५... [७] उप्पन्नसन्नाण महोमयाणं, सप्पाडि हेरासण संठियाणं, सद्देसणाणं दियसज्जणाणं, नमोनमो होउ सया जिणाणं. १ सिद्धाणमाणंदर मालयाणं, नमो नमोणंत चउक्कयाणं, सूरीण दूरीकयकुग्गहाणं, नमो नमो सूरीसमप्पहाणं. २ सुत्तत्थवित्थारणतप्पराणं, नमो नमो वायग कुंजराणं, साहूण संसाहि असंजमाणं, नमो नमो शुद्धदयादमाणं. ३ जिणुत्ततत्ते रूइलक्खणस्स, नमो नमो निम्मलदंसणस्स, अन्नाणसंमोह तमोहरस्स, नमो नमो नाणदिवायरस्सः ४ चंत्य वन्दन Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [ ५३ ] आराहिया खं डियसक्किअस्स, नमो नमो संजमवीरियस्स, कम्मदुमोम्मूलण कुंजरस्स, नमो नमो तिव्वतवोभरस्स.. ५ इय नवपयसिद्धं, लद्धि विज्जा समिद्धं, पयडियसरवग्गं, ह्रीं तिरेहासमग्गं, दिसिवइ सुरसारं, खोणी पीढावयारं, तिजय विजय चक्कं, सिद्धचक्कं नमामि ...६ [=] बार गुण अरिहंतना, तेम सिद्धना आठ, छत्रीस गुण आचार्यना, ज्ञानतणा भंडार...१... पचीस गुण उवझायना, साधु सत्तावीश, श्यामवर्ण तनु शोभता, जिनशासनना इश...२... ज्ञान नमुं अकावने, दर्शनना सडसठ, सीत्तेर गुण चारित्रना, तपना बार ते जिठ...३... ओम नवपद युक्ते करी, त्रण शत अष्ट गुण थाय, पूजे जे भवी भावशुं, तेहना पातक जाय,... ४... पूज्या मयणा सुंदरी, तेम नरपति श्रीपाळ, पुण्ये मुक्ति सुख लह्या, वरीया मंगलमाळ... ५... [C] farfa...?... जास श्री सिद्धचक्र महामंत्रराज, पूजा परसिद्धि, नवणथी संपजे, संपूरण अरिहंतादिक नवपद, नित्य नवनिधि दाता, अ संसार अपार पार, होये पार विख्याता...२... Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५४ ] अमराचल पद संपजे, पूरे मनना कोड, मोहन कहे विधिसह करो, होये भवनो छोड... [१०] पहेले दिन अरिहंत नुं, नित्य कीजे ध्यान, बीजे पद वळी सिद्धनुं, कीजे गुणगान ...१... आचारज त्रीजे पढ़े, जपतां जय-जयकार, चोथे पदे उवझायना, गुण गाओ उदार...२... सकल साधु वंदो सही, अढी द्विपमां जेह, पंचम पद आदर करो, जपजो धरी ससने ह...३... छट्ट े पद दर्शन नमो, दरशन अजुवालो, नमो नाण पद सातमे, जिम पाप पखालो... ४... आठमे पद आदर करो, चारित्र सुचंग, पद नवमे बहु तप तणो, फळ लहो अभंग... ५... अणी पेरे नवपद भावशुं, जपतां नव-नव कोड, पंडित शांतिविजय तणो, शिष्य कहे कर जोड़... ६... [११] जैनेंद्रमिंद्रमहितं गत सर्व दोषं, ज्ञानाधनंत गुणरत्न विशालकोषं, कर्मक्षयं शिवमयं परिनिष्टितार्थं, चैत्यवन्दन सिद्धं च बुद्धमविरुद्ध महं च वंदे... १... गच्छाधिपं गुणगणं गणिनं सुसौम्यं, वंदामि वाचकवरं श्रुतदानदक्षं, क्षांत्यादि धर्मकलितां मुनिमालिकां च, ... निर्वाण साधनपरं नरलोक मध्यं ...२... Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [५५] सदर्शनं शममयं श्री जिनोक्त सत्त्यं, तत्त्वप्रकाश कुशलं सुखदं सुबोध छिन्नाश्रवं सुमतिगुप्तिमयं चरित्रं, कष्टिकाष्ट दहनं सुतपं श्रयामि...३... पापौघनाशनकरं' वरमंगलं च, त्रैलोक्य सारमुपकार परं गुरु च, भावात्ति शुद्धिवर कारणमुत्तमानां, श्री मोक्ष सौख्यकरणं हरणं भवानां...४.. भव्याब्ज बोधतरणि भव सिंधुनावं चिंतामणे सुरतरोरधिकं सुभावं, तत्त्वत्रिपादनवकं नवकाररूपं, श्री सिद्धचक्रसुखदं प्रणमामि नित्यं...५... [१२] सिद्धचक्र आराधतां, भव सागर तरोये, भव अटवी थी उतरी, शिववधू ने वरीये...१... अरिहंत पद आराधतां, तिथंकर पद पावे, जग उपकार करे घणां, सिधा शिवपुर जावे...२ .. सिद्धपद ध्याता थकां, अक्षय अचल पद पावे, कर्म कटक भेदी करी, अकळ अरुपी थावे...३... आचारज पद ध्यावतां, युग प्रधान पद पावे, जिनशासन अजवाळीने, शिवपुर नयर सोहावे. पाठक पद ध्यावता, वाचक पद पावे, भणे भणावे भावशू, सुर शिवपुर जावे...५... Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५६ ] साधु पद आराधतां साधु पद पावे, तप जप संयम आदरे, शिवसुंदरी ने कामे... ६... दर्शन ज्ञानपद ध्यावतां, दर्शन ज्ञान अजवाळे, चारित्र पद ध्यावतां, शिवमंदिरमां म्हाले... ७... केसर कस्तूरी केतकी, मचकुंद मालती चाले, सिद्धचक्र सेव्थं त्रिकाल, जेम मयणाने श्रीपाले ... ८... नव आयंबिल नववार, शील समकित वहाल, रूपविजय कविरायनो, माणेक कहे उजमाल... ६... [१३] पहेले पद अरिहंतनां, गुण गाउं नित्ये, बीजे सिद्धतणा घणा, समरो ओक चित्ते...१... आचारज त्रीजे पदे, प्रणमो बिहुं कर जोडी, नमिओ श्री उवझायने, चोथे मद मोडी... २... पंचम पद सर्व साधुनुं, नमतां न आणो लाज, अ परमेष्ठि पंचने, ध्याने अविचल राज. दंसण शंकादिक रहित, पद छट्ठ धारो, सर्व नाणपद सातमे, क्षण ओक न विसारो... ४... चारित्र चोखुं चित्तथी, पद अष्टम जपिये, सकल भेद बिच दान फल, तप नवमे तपिये... ५... ओ सिद्धचक्र आराधतां पूरे वंछित कोड, सुमतिविजय कविरायनो, राम कहे कर जोड... ६... 1 " चत्य वन्दन .. ३. ... [१४] श्री अरिहंत उदार कांति, अति सुंदर रूप, सेवो सिद्ध अनंत संत, आतम गुण भूप... १... Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [५७] आचारज उवझाय साधु, समता रस धाम, जिन भाषित सिद्धांत शुद्ध, अनुभव अभिराम...२... बोधि बीज गुण संपदाओ, नाण चरण तव शुद्ध, ध्यावो परमानंद पद, ओ नव पद अविरुद्ध...३... इह परभव आनंद कंद, जगमांहि प्रसिद्धो, चिंतामणी सम जास जोग, बहु पुण्ये लद्धो...४.... तिहुअण सार अपार मेह, महिमा मन धारो, परिहर पर जंजाल जाल, नित अह संभारो...५... सिद्धचक्र पद सेवतांओ, सहजानंद स्वरूप, अमृतमय कल्याणनिधि, प्रगटे चेतन भूप...६... [१५] अहं पद आदे नमुं, बीजे सिद्ध सुजाण, सूरि वाचक शोभतां, पंचम पद मुनि जाण...१... दर्शन नाण अति दीपतो, चारित्र तप सुखकार, बार आठ छत्तीस सही, पणवीस सगवीस धार...२... सडसठ इगवन शोभतां, सीत्तेर बार प्रकार, अष्ट कमल दल थापीने, ध्यावो हृदय मोझार...३... सिद्धादिक पद चिंह दिसे, मध्ये अरिहंत देव, दर्शन नाण चारित्र ने, तप विदिशीये सेव...४... ॐ ह्रीं अक्षर संयुत, दिन प्रत्ये दोय हजार, सिद्धचक्र सुण्य साहिबा, कीर्तिचंद्र कहे तार...५... [१६] शिवसंपदा वरवा सदा, नवपद धरू हुं ध्यानमां, Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५८] चंत्यवन्दन भववासनानो वेग टाले, राचतां गुण तानमां, श्रीपाल मयणासुंदरी, साधी घणा सुखिया थया, नवपद भजो सद्भावथी, अमां अखिल मंत्रो रह्या...१ अरिहंत पदने प्रथम थुणतां, विघ्न सहु दूरे टले, वली सिद्ध आचारज अने, उपाध्यायथी शांति मले, पंचम मनोहर साधु पद ने, सेवतां सुखोया थयां, नवपद भजो सद्भावथी, अमां अखिल मंत्रो रह्या...२ दर्शन तथा शुभ ज्ञानने, चारित्र पदनी योजना, ओ त्रितयनी आराधना, पूरे खदा सहु कामना, अंतिम रह्यं तपपद चळकतुं, बार जस भेदो कह्यां, नवपद भजो सद्भावथी, अमां अखिल मंत्रो रह्या...३ नवपद पूजाना चैत्यवंदनो ... अरिहंत नु चैत्यवन्दन [१] उपन्नसन्नाणमहोमयाणं, सप्पाडिहेरासण संठियाणं, सद्देसणाणंदियसज्जणाणं, नमो नमो होउ सया जिणाणं..१ नमो नंत संत प्रमोद प्रधान, ......... प्रधानाय भव्यात्मने भास्वताय, थया जेहना ध्यानथी सौख्य भाजा, सदा सिद्धचक्राय श्रीपाल राजा...२ कर्या कर्म दुर्मम चकचूर जेणे, भला भव्य नवपद ध्यानेन तेणे, करी पूजना भव्य भावे त्रिकाळे, सदा वासियो आतमा तेणे काळे...३ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [५] झिं के तीर्थकरा कर्म उदये करीने, दिये देशना भव्यने हित धरीने, सदा आठ महापाडिहारे समेता, सुरेशे नरेशे स्तव्या ब्रह्मपुत्ता...४ कर्यां घातियां कर्म चारे अलग्गां, भवोपग्रही चार जे छे विलग्गां, ... जगत् पंचकल्याणके सौख्य पामे, __ नमो तेह तीर्थंकरा मोक्षकामे...५ सिद्ध नु चैत्यवन्दन [२] सिद्धाणमाणंदरमालयाणं, नमो नमोणंत चउक्कयाणं, समग्गकम्मक्खयकारयाणं, जम्मंजरादुक्खनिवारयाणं.१ करो आठ कर्म क्षये पार पाम्या, जरा जन्ममरणादि भय जेणे वाम्या, . निरावरण जे आत्मरूपे प्रसिद्धा, थया पार पामी सदा सिद्ध बुद्धा...२ त्रि भागोनदेहावगाहात्म देशा, रह्या ज्ञानमय जातवर्णादि लेशा, सदानंद सौख्याश्रिता ज्योतिरूपा, अनाबाध अपुनर्भवादि स्वरूपा...३ आचार्यपद चैत्यवन्दन [३] सूरीण दूरीकयकुग्गहाणं, नमो नमो सूरिसमप्पहाणं, सद्देसणादाण-समायराणं, अखंड छत्तीस गुणायराणं.१ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६० ] नमुं सूरिराजा सदा तत्त्वताजा, जिनेंद्रागमे प्रौढ साम्राज्य भाजा, षड्वर्ग वर्गित गुणे शोभमाना, पंचाचारने पालवे सावधाना चंत्य वन्दन २ भवि जिवने देशना देश काले, सदा अप्रमत्ता यथा सूत्र आले, झिके शासनाधार दिग्दतिकल्पा, जगे ते चिरंजीवजो शुद्ध जल्पा... ३ उपाध्याय पद नुं चैत्यवन्दन [४] सुत्तत्थवित्थारणतप्पराणं, नमो नमो वायग-कुंजराणं, गणस्स साधारणसारयाणं, सव्वक्खणावज्जियमंथराणं. १ नहीं सूरि पण सूरिगणने सहाया, नमुं वाचका त्यक्त मद मोह माया, वळी द्वादशांगादि सूत्रार्थदाने, झींके सावधाना निरुद्धाभिमाने... २ धरे पंच ने वर्ग वर्गित गुणोघा, प्रवादि-द्विपोच्छेदने तुल्य सिंधा, गुणी गच्छ संधारणे स्थंभभूता, उपाध्याय ते वंदिये चित्प्रभूता... ३ साधु पद नुं चैत्यवन्दन [५] साहूण संसाहि असंजमाणं, नमो नमो शुद्धदयादमाणं, तिगुत्तिगुत्ताण समाहियाणं, मुणींदमानंदपर्यट्टि आणं. १ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला * करे सेवना सूरि तायग गणिनी, करू' वर्णना तेहनी शी मुणिनी, समेता सदा पंचसमिति त्रिगुप्ता, त्रिगुप्ते नहीं काम भोगेषु लिप्ता... २ बळी बाह्य अभ्यंतर ग्रंथि टाळी, होये मुक्तिने योग्य चारित्र पाळी, शुभाष्टांग योगे रमे चित्त वाली, नमुं साधुने तेह निज पाप टाळी... ३ दर्शन पद नुं चैत्यंवन्दन [६] जिणुत्त तत्ते रूइ लक्खणस्स, नमो नमो निम्मलदंसणस्स, मिच्छत्तनासाइसमुग्गमस्स, मूलस्स सुधम्ममहादुमस्स. १ विपर्यास हठ वासना रूप मिथ्या, टले जे अनादि अछे जे कुपथ्या, जिनोक्ते होये सहजथी सद्दधानं, [६१] विना जेहथी चरित्रं कहिये दर्शनं तेह परमं निधानं... २ ज्ञानमज्ञानरूपं, विचित्रं भवारण्यकूपं, प्रकृति सातने उपशमे क्षये ते होवे, तिहां आपरूपे सदा आप जोवे ... ३ ज्ञान पद नुं चैत्यवन्दन [७] अन्नाणसं मोहत मोहरस्स, नमो नमो नाणदिवायरस, पंचपयारस्सुवगारगस्स, सत्ताण सव्वत्थपयास गस्स. १ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यवन्दन - होये जेहथी ज्ञान शुद्ध प्रबोध, यथावर्ण नासे विचित्रावबोध, तेणे जाणिये वस्तु षड् द्रव्य भावा, नहुये वितत्था निजेच्छा स्वभावा...२ होये पंचमत्यादि सुज्ञान भेदे, गुरुपास्तिथी योग्यता तेह वेदे, वळी हेय ज्ञेय उपादेय रूपे, ___ लहे चित्तमां जेम ध्वांत प्रदीपे...३ चारित्र पद नू चैत्यवन्दन [-] आराहि अखंडिअसक्किअस, नमो नमो संजम वीरिअस्स, सब्भावणा संगविवड्ढि अस्स,निव्वाणदाणाइ समुज्जयस्स.१ वली ज्ञानफल चरण धरिये सुरंगे, निराशंसता द्वार रोध प्रसंगे, भवांभोधि संतारणे यानतुल्यं, धरू तेह चारित्र अप्राप्तमूल्यं...२ होये जास महिमाथकी रंक राजा, वळी द्वादशांगी भणी होय ताजा, वळी पापरुपोपि निःपाप थाय, - थइ सिद्ध ते कर्मने पार जाय...३ तप पद नु चैत्यवन्दन [६] कम्मदुमोम्मूलणकुंजरस्स, नमो नमो तिव्वतवोभरस्स, अणेगल ध्यीण निबन्धणस्स, दुसझायठाणस्स पसाहणस्स.१ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [६३] . विकालिकपणे कर्म कषाय टाले, निकाचीतपणे बांधिया तेह बाले, कह्यु तेह तप बाह्य अंतर दुभेदे, क्षमायुक्त निर्हेतु दुर्ध्यान छेदे...२ होये जास महिमा थकी लब्धि सिद्धि, अवांछकपणे कर्म आवरण शुद्धि, तपो तेह तप जे महानंद हेते, होय सिद्धि सीमंतिनी जिम संकेते...३ इशा नवपद ध्यान ने जेह ध्यावे, सदानंद चिद्रुपता तेह पावे, वली ज्ञानविमलादि गुणरत्नधामा, ___नमुं ते सदा सिद्धचक्र प्रधाना...४ इम नवपद ध्यावे, परम आनंद पावे, नवमे भव शिव जावे, देव नर भव पावे, ज्ञानविमल गुण गावे, सिद्धचक्र प्रभावे, सवि दुरित शमावे, विश्य जयकार पावे...५ अरिहंत पद नु चैत्यवन्दन [१०] जय जय श्री अरिहंत भानु, भवि कमल विकाशी, लोकालोक अरूपी रूपी, समस्त वस्तु प्रकाशी...१ समुद्घात शुभ केवले, क्षय कृत मल राशी, शुक्ल चमर शुचि पादसे, भयो वर अविनाशी...२ अंतरंग रिपुगण हणी, हुले अप्पा अरिहंत, तसु पद पंकजमें रही, हीर धरम नित संत...३ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्य वन्दन [ ६४ ] सिद्ध पद तु चैत्यवन्दन [११] श्री शैलेषी पूर्व प्रांत, तनु हीन त्रिभागी, पुव्वपओग पसंगसे, उरध गत जागी... १... समय अकमें लोकप्रांत, गये निर्गुण नीरागी, चेतन भूपे आत्मरूप, सुदिशा लही सागी...२... केवल दंसल नाणथी ओ, रूपातीत स्वभाव, सिद्ध भये जसु हीरधर्म, वंदे धरी शुभ भाव...३... आचार्य पद नुं चैत्यवन्दन [१२] जिनपद कुल मुखरस अनिल, मतरस गुण धारी, प्रबल सबल धन मोहकी, जिणते चमु हारी...१... ऋज्वादिक जिनराज गीत, नय तन विस्तारी, भव कूपे पापे पडत, जग जंग निस्तारी ... २... पंचाचारी जिवके, आचारज प्रद तीनकुं वंदे हीरधर्म, अट्ठोत्तरसो वार...३... उपाध्याय पद नुं चैत्यवन्दन [१३] सार, धन धन श्री उवज्झाय राय, शठता धन भंजन, जिनवर देशिल दुवालसंग, कर कृत जनरंजन... १ गुणवन भंजन मय गयंद, सुय शणि किज गंजण, कुलालंध लोय लोयणे, जत्थ य सुख मंजण... २ महाप्राण में जिन लह्यो अ, आगमसे पद तुर्य, तीन पे अहनिश हीरधर्म, वंदे पाठकवर्य ... ३ साधु पद तु चैत्यवंदन (१४) दंसण नाण चरित करी, वर शिवपदगामी, धर्म शुक्ल शुचि चक्रसे, आदिम चय कामी... १... Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [६५] गुण प्रमत्त अप्रमत्तते, भये अंतरजामी, मानस इंद्रिय दमन भूत, शम दम अभिरामी...२... चारु तिघन गुण कर्योओ, पंचम पद मुनिराज, तत्पद पंकज नमत है, हीर धर्म के काज...३... दर्शन पद नु चैत्यवन्दन [१५] हूय पुग्गल परिअट्ट, अड्ढ परिमित संसार, गंठि भेद तब करि लहे, सब गुणनो आधार...१... क्षायक वेदक शशी असंख, उपशम पण वार, विना जेण चारित्र नाण, नवि हुवे शिव दातार...२... श्री सुदेव गुरु धर्मनी अ, रुचि लच्छन अभिराम, दर्शनकुं गणि हीरधर्म, अहनिश करत प्रणाम...३... ज्ञान पद नु चैत्यवन्दन [१६] क्षिप्रादिक रस राम वह्नि, मित आदिम नाण, भाव मीलापसे जिनजनित, सुय वीश प्रमाण...१... भव गुणपज्जव ओहि दोय, मण लोचन नाण, लोकालोक सरूप नाण, इक केवल भाण...२... नाणावरणी नाशथी अ, चेतन नाण प्रकाश, सप्तम पदमें हीरधर्म, नित चाहत अवकाश...३... चारित्र पद नु चैत्यवन्दन [१७] जस्स पसाये बहु पाय, जुग जुग समितेंद, नमन करे शुभ भाव लाय, कुण नरपति वृद...१... जंपे धरी अरिहंत राय, करी कर्म निकंद, सुमति पंच तिन गुप्ति युत, दे सुख अमंद...२... Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६६] चंत्यवन्दन - - - इषु कृति मान कषायथी अ, रहित लेश सुचिवंत, जीव चरित्तकं हीरधर्म, नमन करत नित संत...३.. तप पद नु चैत्यवन्दन [१८] श्री ऋषभादिक तोर्थनाथ, तद्भव शिव जाण, बिहि अंतैरपि बाह्य मध्य, द्वादश परिमाण...१... वसु कर मति आमोसहि, आदिक लब्धि निदान, भेदे समतायुत खिणे, दृगधन कर्म वितान...२... नवमे श्री तपपद भलो, इच्छा रोध सरूप, वंदनसे नित होरधर्म, दूर भवतु भवकूप...३... * सिद्ध ना चैत्यवंदनो [१] सिद्ध सकल समरू सदा, अविचल अविनाशी, थाशे ने वळी थाय छे, थया अडकर्म विनाशी...१... लोकालोक प्रकाश भास, कहेवा कोण शूरो, सिद्ध बुद्ध पारंगत, गुणथी नहीं अधूरो...२... अनंत सिद्ध अणीपेरे नमुं, वळी अनंत अरिहंत ज्ञानविमल गुण संपदा, पाम्या ते भगवंत...३... [२] अज अविनाशी अकल जे, निराकार निराधार, निर्मम निर्भय जे सदा, तास भक्ति चित्त धार... जन्म जरा जाकं नही, नही शोक संताप, सादि अनंत स्थिति करी, बंधन रुचि काप...२... त्रीजे अंश रहित शुचि, चरम पिंड अवगाह, अक समे सम श्रेणिओ, अचल थणो शिवनाह...३... * दितीय सिद्ध पद ने आश्रीने आ चैत्यवंदन आप्या छे Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला सम अरू विषम पणे करी, गुण पर्याय अनंत, ओक ओक परदेशमां, शक्ति त्रिजग महंत... ४... . रूपातीत व्यतीत मल, पूर्णानंदी इश चिदानंद ताकुं नमत, विनय सहित निज शिष... ५... [३] तुम्हे तरणतारण दुःखनिवारण, भविकजन आराधनं, श्री नाभिनंदन त्रिजगवंदन, नमो सिद्ध निरंजनं. १ जगत भूषण विगत दूषण, प्रणव प्राण निरूपकं, ध्यान रूप अनूप उपमं नमो सिद्ध निरंजनं. २ गगन मंडल मुक्ति पद्म, सर्व उर्ध्व निवासनं, ज्ञान ज्योति अनंत राजे, नमो सिद्ध अज्ञान निद्रा विगत वेदन, दलित मोह निराउखं, 1 निरंजनं. ३ निरंजनं. ४ विसर्जनं, निरंजनं. ५ नाम गोत्र निरंतरायं, नमो सिद्ध विकट क्रोधा मान योधा, माया लोभ राग द्वेष विर्मादितांकुर, नमो सिद्ध विमल केवलज्ञान लोचन, ध्यान शुक्ल समीरितं, योगिनामिति गम्यरूपं, नमो सिद्ध निरंजनं. ६ योगमुद्रा सम समुद्रा, करी पर्यंकासनं, योगिनामिति गम्य रूपं, नमो सिद्ध निरंजनं ७ जगत जाके दास दासी, तास आश योगिनामिति गम्य रूपं नमो सिद्ध [ ६७ ] समय समकित दृष्टि जनकी, सोय योगी देखिता मिलि न होवे, नमो सिद्ध निरासनं, निरंजनं. ८ अयोगिकं, निरंजनं. ६ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंत्यवन्दन तीर्थ सिद्ध असिद्ध सिद्धा, भेद पंच दशादिकं, सर्व कर्म विमुक्ति चेतन, नमो सिद्ध निरंजनं.१० चंद्र सूर्य दीप मणि की, ज्योति तेने ओलंगिकं, तज्ज्योतिथी कोइ अपर ज्योति, नमो सिद्ध निरंजनं.११ अकमांहि अनेक राजे, नेकमांहि अककं, अक नेककी नहि संख्या, नमो सिद्ध निरंजनं.१२ अजर अमर अलख अनंत, निराकार निरंजनं, परब्रह्म ज्ञान अनत दर्शन, नमो सिद्ध निरजन१३ अचल सुखकी लहरमां, प्रभु लीन रहे निरंतरं, धर्म ध्यानथो सिद्ध दर्शन, नमो सिद्ध निरंजनं.१४ ध्याने धूपं मने पुष्पर्च, पंचे इंद्रि हुताशनं, क्षमा जाप संतोष पूजा, पूजो देव निरंजन,१५ तुम्हे मुक्तिदाता कर्मघाता, दीन जाणी दया करो, सिद्धार्थ नंदन जगत वंदन, महावीर जिनेश्वरं.१६ D सात, आठ गाथा नुत्रीजु चरण गाथा छ प्रमाणे छे सुज्ञो) तपासवु [४] अजर अमर अकलंक अरुज, निरज अविनाशी, सिद्ध सरूपी शकरो, संसार उदासी...१... सुख संसारे भोगवी, नहीं भोग विलासी, जीति कर्म कषायने, जे थयो जितकाशी...२... दासी आशी अवगणीओ, समीचिन सर्वांग, नय कहे तस ध्याने रहो, जिम होय निर्मल अंग...३... Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वनाला दिवाळी ना चैत्यवन्दनो [१] [ ६९ ] सुणी निर्वाण गौतम गुरु, पाछा वळता जेम, चितवता वीतरागता, वीतराग हुआ तेम...१... वीर नाण निर्वाण वळी, गौतम केवलज्ञान, गणणुं गणीओ तेहनुं, छठ तपशुं निर्वाण ...२... संभारे गौतम नामथी, केवली पचास हजार, नाण दिवाळी प्रणमता, पद्म कहे भवपार... ३.. [२] ज्ञान उज्ज्वल दिवा करो, मेरैया सज्झाय, तप जप सेव सुंवाळी, अध्यातम कहेवाय...१... शुद्धाहार सुखभक्षिका, सत्य वचन तंबोल, शीयल आभुषण पेरीओ, करीओ रंगरोल... २... निद्रा आळस दूरे करी, मोह गेह समारो, केवल लक्ष्मी लाववा, निज घरमां पधारो...३... दानादिक स्वस्तिक रचे, साधर्मिक श्रेण, ओम दिवाळी कीजीओ, सुणीओ गुरुना वेण... अम दिवाळी दिन भलोओ, जिन उत्तम निर्वाण, पद्म कहे आराधतां, लहीओ अविचल ठाण... ५... [३] त्रीस वरस केवलपणे, विचर्या श्री महावीर, पावापुरी पधारीया, श्री जिनशासन धीर... १... हस्पिाल नृप रायनी, रज्जुका सभा मोझार, चरम चोमासुं त्यां रह्या, लेइ अभिग्रह सार... ४... २... Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यवन्दन काशी कोशल देशना, मलिया राय अढार, स्वामी सुणी सौ आवीया, वंदनने निरधार...३... सोल पहोर दीधि देशना, जाणी लाभ अपार, दीधी भविहित कारणे, पोधी तेहीज पार...४... देवशर्मा बोधन भणी, गोयम गया सुजाण, कात्तिक अमावस्या दिने, प्रभु पाम्या निर्वाण...५... भाव उद्योत गयो हवे, करो द्रव्य उद्योत, इम कही राय सरवे मलो, कीधी दीपक ज्योत...६... दिवाली तिहांथी थइ, जगमांही प्रसिद्ध, पद्म कहे आराधतां, लहीले अविचल रिद्ध...७... [४] चरम चोमासु वीरजी, पावापुरी नयरी, मुनिवर वृदे आवीया, जित अंतर वयरी...१... देश अढारना नरपति, वंदे प्रभु पाय, सोळ पहोरनी देशना, दोधो जिनराय...२... पुन्य पाप फल केरडां, पंचावन भाख्या, छत्रीश अण पुछयां वळी, अज्झयणां दाख्या...३... प्रधान अध्ययन भावतां, पाम्या प्रभु निरवाण, कात्तिक अमासने दहाडले, पांच अक्षर मान...४... गण राये दीवा कर्या, द्रव्य उद्योतने काज, दिवाली ते दिन थकी, प्रगटी पुन्य समाज...५... उत्तम गुरु गौतम भणी, उपनुं केवलनाण, पद्मविजय कहे मोटको, अह परम कल्याण...६... Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला सिद्धारथ कुल नभ विषे, त्रिशला सुत वंदन करो, [ ७१] [५] इन्दु रूप जिनराज, मेळवावा शिव साज... १... गुणगणथी भरिया, सात हाथ परिमाण देह, भोग तजी संजम ग्रयुं, नाण केवल वरिया...२... त्रीस वरस संसारमा, साडा बार पर्याय; संजम ने केवल तणो, साडी ओगणत्रीस थाय...३... आव्या अपापा नयरीओ, कर्यु अंतिम चोमास, सोल पहोर देइ देशना, तार्या नृपवर खास...४... शुभाशुभ विपाकना, पचपण पचपण जाण, मारूदेव अध्ययनतणा, ध्याने शिव प्रयाण.. ५... अमावास्या भली कार्तिकी, देवानंदा रात, चार घड़ी बाकी रहो, मेळव्युं अनंत सात... ६... भाव दीपक गयो जगथकी, द्रव्य दीपक करीओ, नव मल्ली नव लच्छकी, नृपति मनधरी ओ... ७... दीपक ज्योत प्रगटावतां, थयुं दिवाली पर्व, ते दिन वीर ध्याने करी, लब्धि वरे शिवशर्म... ८... [६] A सोल पहोर देइ देशना, अढार भेदे भावे भणी, देशना देता रयणीओ, परण्या शिवराणी...२... मगध देश पावापुरी, प्रभु वीर पधार्या, भविक जोवने तार्या...१... अमृत जेवी वाणी, Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७२] चैत्य वन्दन उठो राय दीवा करो, अजुवाळो दिन मेह, आसो मासे कार्तिकी, दिवाली दिन तेह...३... मेरू थकी इंद्र आवोया, लेइ हाथमां दीवो, मेरैया ते कारणे, लोक कहे चिरंजीवो...४... कल्याणक जाणो करी, दोवा ते कीजे, जाप जपो जिनराजनो, पातिक सवि छीजे...५... बोजे दिन गौतम सुणो, पाम्यां केवलज्ञान, बार सहस गणणुं गणो, होशे कोडि कल्याण...६... सुर नर किन्नर सहु मली, गौतम ने आपे, भट्टारक पदवी देइ, सहु साथे स्थापे...७... जुहार. पटोरां ते कारणे, लोकांतिक व्यवहार, बहेने भाइ जमाडीयो, नंदीवर्धन सार...८... भाइबीज तिहां थकी, वीर तणो अधिकार, जयविजय गुरु संपदा, मेरूविजय सुखकार...६... [७] शासनना शणगार वीर, मुक्तिपुरी शणगारी, गौतमनी प्रीति प्रभु, अंत समये विसारी.. देवशर्मा प्रतिबोधवा, मोकल्यो मुजने स्वामी, विश्वासी प्रभु वीरजी, छेतर्या मुज अभिरामी...२... हा हा वीर आ शं कयु, भरतमां अंधारू, कुमति मिथ्वात्वी वधी जशे,कोण करशे अजवाळं...३... नाथ विनाना सैन्य जेम, थया अमे निरधार, इम गौतम प्रभु वलवले, आंखें आंसुडानी धार...४... Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [७३] कोण वीरने कोण तुं, जाणी अहवो विचार, क्षपक श्रेणि) आरोहता, पाम्या केवल सार...५... वीर प्रभु मोक्षे गया, दिवाली दिन जाण, ओच्छव रंग वधामणां, जस नामे कल्याण...६.. [८] देव मलिया, देव मलिया, करे उत्सव रंग...१ मेरइयां हाथे ग्रही, द्रव्य तेज उद्योत कीधो, भाव उद्योत जिनेंद्रनो, ठाम ठाम अह ओच्छव प्रसिद्धो...२ लख कोडि छठ फल करी, कल्याणक करो अह, कवि नयविमल कहे इश्यु, धन धन दहाडो तेह...३ - [६] वीर जिनवर, वीर जिनवर, चरम चौमांस...१ नयरी अपापाये आवीया, हस्तिपाल राजन सभाये, कार्तिक अमावास्या रयणीये, मुहुर्त शेष निर्वाण तांहि...२ सोल पहोर देइ देशना, पहोत्या मुक्ति मोझार, नित्य दिवाली नय कहे, मलिया नृपति अढार...३ * गौतमस्वामीना चैत्यवंदनो . [१] गौतम गुरु आणा गये, देवशर्मा के हेत, प्रतिबोधि आवत सुना, जाण्या नहीं संकेत...१... वीर प्रभु मोक्षे गया, छोडी मुज संसार, * दिवाली ना छट्ठ मां अलग आराधना करनार माटे गौतमस्वामीना चैत्यवंदन साथे आपी दीधा छ । Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७४] चैत्यवन्दन हा हा भरते हो गया, मोह अति अंधार...२... वीतराग नहीं रागहे, अक पखो मुज राग, निष्फल अम चिंतित गयो, गौतम मनसे भाग...३... मान कियो गणधर हुआ, राग कियो गुरु भक्ति, खेद कियो केवल लीयो, अद्भुत गौतम शक्ति...४... दीप जगावे राय ते, तिणे दिवाली नाम, पडवाने दिन केवली, उत्सव दिन अभिराम...५... [२] बिरुद धरी सर्वज्ञजें, जिन पासे आवे, मधुर वयणशं वीरजी, गौतम बोलावे...१... पंचभूत मांहे थकीओ, जे उपजे विणसे, वेद अर्थ विपरीतथी, कहो केम भव तरसे...२... दान दया दम त्रिहुं पदे अ, जाणे तेहिज जीव, ज्ञानविमल धन आतमा, सुख चेतना सदैव...३... नमो गणधर नमो गणधर, लब्धी भंडार...१... इंद्रभूति महिमा नीलो,वड वजीर महावीर केरो, गौतम गोत्रे उपन्यो, गणि अग्यारमांहि वडेरो...२... केवलज्ञान लघु जिणे, दिवाली परभात, ज्ञानविमल कहे तेहना, नाम थकी सुखशात...३... [४] इंद्रभूति पहेलो भj, गौतम जस नाम, गोबर गामे उपन्या, विद्याना धाम...१... Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला ... पंच सया परिवारशुं, लीओ संयम भार, वरस पचास गृहे वस्या, त्रीस वरस व्रत धार... बारवरस केवल वर्याओ, बाणं वरस सवि आय, नय कहे गौतम नामथी, नित नित नवनिधिथाय... ३. [ ५ ] जीव केरो जीव केरो, अछे मनमांही...१... संशय वेद पदे करी, कही अर्थ अभिमान वार्यो, श्री महावीर सेवा करी, गृहि संयम आप तार्यो...२... त्रिपदी पामी गुथिया, पूरव चउद उदार, नय कहे तेहना नामथी, होवे जय जयकार...३... D गणधरोना चैत्यवंदनो [ ७५ ] अग्नि भूति गणधरनु चैत्यवन्दन ( १ ) कर्म तणो संशय धरी, जिन चरणे आवे, अग्निभूति नामे करी, तव ते बोलावे...१... ओक सुखी ओक छे दुःखी, ओक किंकर स्वामी, पुरुषोत्तम ओके करी, किम शक्ति पामी...२... कर्मतणा परभावथी ओ, सकल जगत मंडाण, ज्ञानविमलथी जाणीये, वेद अरथ सुप्रमाण...३... वायुभूति गणधर नुं चैत्यवन्दन ( २ ) वायुभूति त्रीजो कह्यो, तस संशय छे अह, जीव शरीर बेहु एक छे, पण भिन्न न देह...१... गौतम स्वामी नी साथे लेवा बाकीना गणधर चैत्यवंदन अहीं आपेला छे गणधर स्थापना दिनने आश्रीने गणधर आराधना करनारा माटे पण उपयोगी थशे २... Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७६] चैत्य वन्दन ब्रह्मज्ञान तपे करी, आतम निर्मल लही, कर्म शरीरथी वेगलो, अम वेद सद्दहीओ...२... ज्ञानविमल गुणधन धणी, जडमां केम होय ओक, वीर वयणथी ते लह्यो, आणी हृदय विवेक...३... ____ व्यक्त गणधर नु चैत्यवन्दन (३) पंचभूतनो संशयी, चोथो गणी व्यक्त, इंद्रजालपरे जग कह्यो, तो किम तस सक्त...१... पृथ्वी पाणी देवता, इम भूतनी सत्ता, पण अध्यात्म चितने, नहि तेहनी ममता...२... इम स्याद्वाद मते करी, टाल्यो तस संदेह, ज्ञानविमल जिनचरणशं, धरता अधिक सनेह...३... सुधर्मास्वामि गणधर नु चैत्यवन्दन (४) सोहमस्वामिने मने, छे संशय अहवा, जे इहां होय जेहवो, परभव ते तेहवो...१... शालि थकी शालि नीपजे, पण भिन्न न थाय, सुणी अहवो निश्चय नथी, अह कहे जिनराय...२... गोमयथीविंछी होवे अ, अम विसहस पण होय, ज्ञानविमल मतिशुं करी, वेद अरथ शुद्ध जोय...३... मंडित गणधर नु चैत्यवन्दन (५) छट्टो मंडित बंभणो, बंध मोक्ष न माने, व्यापक विगुण जे आतमा, ते किम रहे छाने...१... पण सावरण थकी नहीं, केवल चिद्रुप, तेह निवारण थ, होय ज्ञान सरूप...२... Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [७७] तरणि किरण जेम वादले, होय निस्तेज सतेज, ज्ञान गुणे संशय हरी, वीर चरणे करे हेज...३... मोर्यपुत्र गणधर नु चैत्यवंदन (६) सातमो मौर्यपुत्र जे, कहे देव न दीसे, वेद पदे जे भाखिया, तिहां मन नवि हीसे...१ यज्ञ करतो लहे सर्ग, ओ वेदनी वाणी, लोकपाल इंद्रादिक, सत्ता किम जाणी...२ इम संदेह निराकरीओ, वोर वयणथी तेह, ज्ञानविमल जिनने कहे, हुं तुम पगनी रेह...३ ____ अकंपित गणधर नु चैत्यवन्दन (७) अकंपित द्विज आठमो, संशय छे तेहने, नारक होय परलोकमां, अ मिथ्या जनने...१ जे द्विज शुद्र असन करे, तसं नारक सत्ता, दाखी वेदे नवि कहे, अ तुज उन्मत्तता...२... मेरू परे शाश्वत नही, प्रायिक अहवी भाखी, ते संशय दूर कर्यो, ज्ञानविमल जिन साखी...३... ____ अचल भ्राता गणधर नु चैत्यवन्दन (८) . अचलभ्रातने मन वस्यो, संशय अक खोटो, पुण्य पाप नवि देखीये, अ अचरज मोटो...१ पण प्रत्यक्ष देखीये, सुख दुःख घणेरां, बीजानी परे दाखीये, वेद पद बहोतेरां...२.. समजावी ते शिष कर्यो, वीरे आणी मेह, ज्ञानविमल पाम्या पछी, गुण प्रगट्यो तस देह...३... Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - प्रभास [७८] चैत्यवन्दन मेतार्य गणधर नु चैत्यवंदन (8) परभवनो संदेह छे, मेतार्य चित्ते, . भाखे प्रभु तव तेहने, दाखी बहु जुगते...१... विज्ञानघन पद तणो, अम अर्थ विचारे, परलोके गमनागमे, मन निश्चय धारे...२... पूर्वारथ बहुपरे कहीओ, छेद्यो संशय तास, ज्ञानविमल प्रभु वीरने, चरणे थयो ते दास...३... प्रभास गणधर नु चैत्यवन्दन (१०) अकादशम प्रभास नाम, संशय मन धारे, भव निर्वाण लहे नहि, जीव इणे संसारे...१.. अग्निहोत्र नित्ये करे, अजरामर पामे, वेद अरथ इम दाखवे, तस संशय वामे...२... वीरचरणनो रागीयो, तेह थयो ततकाल, ज्ञानविमल जिनचरणनी, आण वहे निज भाल...३... गणधरो नु साधारण चैत्यवंदन (११) अह गणधर, अह गणधर, थया अग्यार...१. वीर जिनेसर पयकमले, रही भृगपरे जेह लीणा, संशय टाली आपणा, थया जिनमत प्रवीणा...२... इंद्र महोत्सव तिहां करे, वास क्षेप करे वीर, लब्धि सिद्धिदायक होजो, ज्ञानविमल गुण धीर...३... सर्व गणधरोनु सामान्य चैत्यवंदन (१२) . सयल गणधर, सयल गणधर, जेह जग सार...१... Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [७६] सकल जिनेसर पयकमले रही,भगपरे जेह लीणा, जिन मुखथी त्रिपदी लही, थया स्याद्वादे प्रवीणा...२... वास क्षेप जिनवर करे अ, इंद्र महोत्सव सार, उदय अधिक दिन दिन हुवे, ज्ञानविमल गुणधार...३... विविध तपोना चैत्यवंदनो रोहिणी तप नु चैत्यवन्दन रोहिणी तप आराधीओ, श्री श्री वासुपूज्य, दुःख दोहग दूरे टळे, पूजक होये पूज्य...१... पहेलां कीजे वास पूजा, प्रह उठी प्रेमें, मध्याह्न पहेरी धोतोआ, मन वच काय खेमे... अष्ट प्रकारनी विरचिओ, पूजा नृत्य वाजिंत्र, भावे भावना भाविओ, कीजे जन्म पवित्र...३... संध्या समे दीप आरति, प्रभु आगळ कीजे, जिनवर केरी भक्तिशृं, अविचल सुख लीजे...४... जिनवर पूजा जिन स्तवन, जिननो कीजे जाप, जिनवर पदने ध्याइओ, जिम नावे संताप...५... कोड कोड फल लीजीओ, उत्तर उत्तर भेद, मान कहे इणविध करो, जिम होवे भवनो छेद...६ [२] वासव पूजित वासुपूज्य, वर अतिशय धारी, केवल कमलानाथ साथ, अविरति जेणे वारी.. परमातम परमेसरू मे, भविजन नयनानंद, शान्त दान्त उत्तम गुणी, बर ज्ञान दिणंद...२... Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [50] बेठी बारे पर्षदा, निसुणे जिननी वाण, ओक चित्त लय लावीने, देइ निज कान. तव जगपति तिहां उपदिशे, रोहिणी तप सुविचार, आराधी भवि भावशुं, आतमने सुखकार... ४... सात वर्ष सात मासनी, अवधि कही सुप्रमाण, आराधे सुख संपदा, पामे पद निर्वाण ... ५... वाचक शुभनय शिष्यनो, भक्ति विजय गुण गाय, वासुपूज्य जिन ध्यानथी, अनुभव सुख थाय...६... [३] वासुपूज्य जिन वंदिओ, जगदीपक जिनराज, रोहिणी तप वर्णं, भवजल तरण जहाज... १... शुदि वैशाखे रोहिणी, त्रोज तणे दिन जाण, श्री आदिसर जिनवर, वर्षी पारणे जाण...२... रोहिणी नक्षत्र ने दिने, चउविहार उपवास, पोषह पडिकमणुं करो, तोडो कर्मनो पास...३... ते दिनी तप मांडीओ, सात वर्ष लगे सीम, सात मास उपर वळी, धरीओ ओहिज नीम... ४... रोहिणी कुंवरी अने, अशोक नामे भूपाल, ते तप पूरण ध्याइओ, पाम्या सुरगति शाल... ४... तिम भविजन तप कीजीओ, शास्त्र तणे अनुसार, जन्म मरणना भय थकी, टाळे ओ तप सार...६. तप पूरण तेहज समे, करो उजमणुं सार, यथाशक्ति होय जेहनी, तिम करीओ धरी प्यार... ७... चैत्य वन्दन ... ३.. ... Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला वासुपूज्य जिनबिंबनी, पूजा करो त्रण काल, देव वंदो वळी भावशुं, स्वस्तिक पर्यविशाल... ८... ओ तप जे सही आदरे, पहोंचे मनना कोड, मनवांछित फळे तेहना, हंस कहे कर जोड... ६... [ ४ ] तप करिये रोहिणी तणो, स्थिर करी मनं वच काय, पूजो जिनवर बारमां वासुपूज्य जिनराय ... १... रोहिणी नक्षत्रने दिने, चोविहार उपवास, पूजा अष्ट प्रकारनी, वास क्षेप वली खास...२... सगवीस लोगस्स काउसग, कीजे मनने रंग, सात वर्ष सात मासनो, कीजे तप अभंग...३... स्वस्तिक सगवीस कीजीये, धरिये शीयल जगीश, आरंभ सघलो छांडीने, नोकारवाली वीश... ४... पद्मप्रभु जिनराजजी, भाख्यो ओ अधिकार, पुन्य हेते भवि प्राणीया, कोर्त्तिचंद्र जग सार... ५... वर्धमान तपना चैत्यवंदनो [ - १] (१) वर्धमान जिनपति नमीं, वर्धमान तप नाम, ओळी आंबिलनी कहुं, वर्धमान परिणाम... १... अकादि आयत शत्, ओळी संख्या थाय, कर्म निकाचीत तोडवा, वज्र समान गणाय...२... चौद वरस त्रण मासने, उपर दिन वली वीश, यथाविधि आराधतां धर्मरत्न पद इश३... Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यवन्दन [ -२] [२] वर्धमान जिन उपदिशे, वर्धमान तप सार, करवो विधि जोगे सदा, कठिन कर्म संहार... १... ओकेकुं आंबिल वधे, यावत् शत परिमाण, साधिक चौदे वर्षमां, पूरण गुणमणि खाण...२... तप मंदिरनी उपरे ओ शोभे शिखर समान, अ, धर्मरत्न तपस्या करी, पामो पद निर्वाण...३... [३] त्रिगडे त्रिभुवन वालहो, भाखे तपना भेद, अकसो तेत्री मुख्य छे, करवा कर्म विच्छेद...१... तेमां पण धूर मोटको महा उग्र तप अह, शूरवीर कोई आदरे, निर्मल थाशे देह्...२... रोग विघ्न दूरे करे अ, उपजे लब्धि अनेक, क्षमा सहित आराधतां धर्मरत्न सुविवेक...३... [ ४ ] बेकर जोडी प्रणमीओ, वर्धमान तप धर्म, त्रिकरण शुद्धे पाळता, टळे निकाचीत कर्म...१... वर्धमान तप सेवीने, केइ पाम्या भव पार, अंतगड सूत्रे वर्णव्या, वंदु अंतराय पंचक टळेओ, बांधे जिनवर गोत्र, नमो नमो तपरत्नने, प्रगटे आतम ज्योत...३... वीश स्थानक तपना चैत्यवंदनो वारंवार...२... [१] पहेले पद अरिहंत नमुं, बीजे सर्व सिद्ध, त्रीजे प्रवचन मन धरो, आचारज ऋद्ध...१... Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला नमो थेराणं पांच में, पाठक पद छ?, नमो लोओ सव्व साहूणं, जे छे गुण गरि?...२. नमो नाणस्स आठमे, दर्शन मन भावो, विनय करो गुणवंतनो, चारित्र पद ध्यावो.. नमो बंभवयधारिणं, तेरमे किरियाणं, नमो तवस्स चौदमे, गोयम नमो जिणाणं...४... संयम नाण सुअस्सने, नमो तित्थस्स जाणी, जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां होय गुणखाणी...५... [२] चोवीश पंदर पीस्तालीशनो, छत्रीशनो करीओ, दश पचवीश सत्तावीशनो, काउस्सग्ग मन धरीओ...१ पांच सडसठ दश वळी, सीत्तेर नव पणवीस, बार अट्ठावीश लोगस्सनो, काउस्सग्ग गुणीश...२ वीश सत्तरने अकावन, द्वादश ने पंच, अणी पेरे काउस्सग्ग जो करो, तो जाओ भव संच...३ अणी पेरे काउस्सग्ग मनधरी, नवकारवाली वीश, वीश स्थानक अम जाणी, संक्षेपथी जगीश...४ भाव धरी मनमां घणोअ, जो अक पद आराधे, जिन उत्तम पद पद्मने, नमो निज कारज साधे...५ बार गुणे अरिहंतजी, प्रणमीजे भावे, सिद्ध आठ गुण समरतां, दुःख दोहग जावे...१.. पद त्रीजे पवयण तणां, पीस्तालिस सुचंग, सूरिगुण छत्तीस सही, ध्यावो भवि मनरंग...२... Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ८४ ] थिविर वली पद पंचमें, दश गुणे जे शोभंत, पचवीस गुण उवझायना, छठे पद महंत...३... सकल साधु पद सात में, सगवीस गुण सुखकार, नमो नाणस्स पद आठमें पांच गुणे श्रीकार... ४... नवमें पद निर्मल जपो, दर्शन जेह सुखकंद, सडसठ गुणे शोभतो, पामे परमाणंद... ५... पद प्रणमुं दशमें वली, विनय गुण अभिराम, चारित्र पद अग्यारमें, सत्तर गुण सुजाण... ६... बंभवय गुण बारमें, नव गुण निश्चय जेह, पचवीस गुण किरिया तणा, तेरमें पद वली तेह... ७... पद चौदम सुखकरु, तवस्स तिलक समान, बार गुणे जे आदरे, पामे परम निधान... ८... पन्नर में पद प्रणमीये, गोयम गुरु गुणखाण, अठावीस गुण अति भला, आपे नव निधान... ६... जिणाणं पद जपीये सदा, चउवीस गुण चित्त धार, नमो चारित्र पद सत्तरमें, तेहनां पांच प्रकार... १०... नमो नाणस्स अढारमें, अकावन गुणसार, सुअस्स पद ओगणीस में, तेनां बार गुण धार...११... वीसमें पद प्रणमं वली, तीत्थस्स तेहनुं नाम, पंच वीस गुणे ध्यावतां, सीझे वांछित काम... १२... तीर्थंकर पद ते लहे, जे करे तप मनोहार, नोकारवाली वोश वीश, पंदे पदे श्रीकार... १३... कीजे काउसग मन रली, जेहनां गुण वली जेह, कीत्तिचंद्र समरे सदा, दीजे तप विधि अह... १४... चैत्य वन्दन 1 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [८५] - - श्री वीशस्थानकना चैत्यवंदनो ____ अरिहंत पद नुचैत्यवंदन (१) भूत भावि वर्तमानमां, जे होवे अरिहंत, वोशस्थानक आराधतां, अतिशे पुण्यवंत...१... जीव मात्र कल्याणनी, भावंता दिन रात, भावना सह करतां वली, कठिन करमनो घात...२... भव त्रोजे नीकाचतां, तीर्थंकर नाम गोत, वाणी गुण पांत्रीश लहे, चोत्रीश अतिशय होत...३... अरिहंत पद आराधतां, श्रेणिक होशे जिन, देवपालादिक तिम होशे, अजरामर पद लीन...४... महागोप माहण वली, निर्यामक सत्थवाह, ते अरिहंतने प्रणमतां, धर्मरत्न उत्साह...५ सिद्ध पद नु चैत्यवन्दन (२) सादि अनंत भागे सुखी, सिद्धातम महाराय, अज अविनाशी अगोचरु, इकतीश गुण गणाय... समय अक उर्ध्व गति, सिद्धशिलाओ जाय, हस्तिपाल पद सेवीने, परमानंदी थाय...२... सिद्धिगतिने पामवा, धर्मरत्न गुण गाय, गुणीजननां गुण गावतां, पूर्णानंदी थाय...३... प्रवचन पद नु चैत्यवन्दन (३) त्रिकालमां जे शाश्वतुं, प्रवचन पद गंभीर, भरतादिक आराधतां, पामे भवजल तीर...१... साहु श्रावक साहुणी, श्राविका पण जाण, भक्ति करता तेहनी, प्रवचन पद वखाण...२... Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - [८६] चैत्यवन्दन प्रवचन पद मुज मन वस्युं, भवोभव होजो प्रीत, साते खेत भक्ति करू, धर्मरत्न जो चित्त...३... आचार्य पद नु चैत्यवन्दन (४) पंचाचारने पाळतां, शुद्ध प्ररुपक जेह, छत्तीश गुणे शोभतां, आचारज वर तेह...१. सारण वारण चोयणा, पडिचोयणनां जाण, जीन सूरज अस्तंगता, सूरिवर दीप प्रमाण...२... युगप्रधान वीरशासने, धर्मरत्न नमे सार, पुरुषोत्तम सूरिपद थकी, पामशे मोक्ष द्वार...३. स्थविर पद नु चैत्यवन्दन (५) थिविर पद आराधतो, पद्मोत्तर नृपति, तीर्थंकर पद पामशे, होशे त्रिभुवन पति...१... बाल ग्लानादिक जे वली, संयममां सीदाता, मधुर नीति समजावीने, स्थविर करंता शाता...२... ज्ञान थकी पर्यायथी, तिमहीज वयथी स्थविर, जीनशासन सोहावता, धर्मरत्न नमे धीर...३... ___ उपाध्याय पद नु चैत्यवन्दन (६) चौद दोषथी जे भर्या, अविनीत शिष्य अनेक, पंदर गुणवंता करे, उपाध्याय सुविवेक...१... अंग उपांगादिक का, जीनशासन श्रुत ज्ञान, भणे भणावे साचवे, दूरे करे अज्ञान...२... अ पदथी अरिहा थशे, महेंद्रपाल महाराज, धर्मरत्नने धारतां, सीझे सघलां काज...३... Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [८७] साधु पद नु चैत्यवन्दन (७) नमो लोओ सव्व साहूणं, सात, पद जपंता, सिद्धि साधक वंदता, अशुभ कर्म खपंता...१... नवविध गुप्ति पाळतां, पंच इंद्रियने जीते, नवविध परिग्रह टाळतां, शांत सुधारस पीते...२ मुनिपद आराधन लही, वीरभद्र थशे सिद्ध, धर्मरत्न प्रभु ध्यानथी, पामे सघली रिद्ध...३... ज्ञान पद नु चैत्यवंदन (८) गुण अनंत आतम तणां, तेहमां मुख्य दोय, सम्यग् ज्ञान शिरमोर छे, जिणथी दंसण होय...१. हेय उपादेय जाणवा, ज्ञान अक आधार, तप जपथी पण अधिक जे, कर्म खपावणहार...२... जयंत भूप आराधतो, पामे पदवी ईश, धर्मरत्न पसायथी, ज्ञान नमो निश दिश...३... . दर्शन पद नु चैत्यवंदन (8) हरिविक्रम नृपति परे, दर्शन पद आराधे, क्षायिक समकितने लही, शिवगति ते साधे...१... ज्ञान चारित्र नवि फल दीये, जो नवि दर्शन पासे, दुःषमकाल दर्शन मले, तेहनो जन्म विभासे...२ श्रद्धाभासन तत्त्व रमण, सम्यग् दर्शन काजे, धर्मसूरि गुरु महेरथी, रत्नविजय दिवाजे.. विनय पद नु चैत्यवन्दन (१०) पांच तेर बावन वली, छासठ विनय प्रकार, रत्नत्रय संवर तिमज, निर्जरानो आधार...१... Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६८ ] पांच भेदथी दश तणो, विनय करी पुण्यवंत, धन धन्नो जग सेवतो, करे करमनो अंत...२... सुलभबोधि जीव जे, विनय करे अति खंत, धर्मरत्न मनमां धरी, दूर करो भव तंत...३... चारित्र पद नुं चैत्यवन्दन ( ११ ) संचित कर्म चय करे, ते चारित्र उदार, वर्ष चारित्र पर्यायथी अनुत्तर सुख असार...१... देश सर्व बे भेदथी, वर्णवतां जिनराज, श्रीदेवी उपसर्ग हठावी, वरुणदेवे सार्या काज...२.. चारित्र विण नवि मोक्ष छे, ओवी जेने प्रतीति, धर्मरत्न कहे तेहनें, नवि भव केरी भीति...३... ब्रह्मचर्य पद नुं चैत्यवंदन [१२] सुवर्ण केरा जे करे, जिन प्रतिमा मंदिर, होड कदि नवि करो शके, ब्रह्मचर्ये जे धीर...१... सहस चोराशी साधुना, पारणके जे लाभ, विजय विजया भक्ति करे, पामे तेहिज लाभ...२... इच्छीत भोजने जे करे, क्रोड श्रावकनी भक्ति, ब्रह्मव्रतथी जिनदासने सोहागदेवीनी शक्ति...३... चोराशी चोवीशीमां, अमर कयूँ जे नाम, स्थुलिभद्र महिमानीलो, सारे वांछित काम... ४... तीर्थंकर पद पामतो, चंद्रवर्मा नृप राय, शीयलवंतने बंदतां, धर्मरत्न , चैत्य वन्दन " महाराय ... ५... Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [८६] क्रिया पद नु चैत्यवंदन [१३]' खेदादिक दूरे करी, दूर करी दोय ध्यान, पचीश क्रियाने परिहरी, शुभ क्रिया बहुमान...१... हरिवाहन नृप साधतो, होशे विदेहे जिणंद, शुद्ध क्रियामां वाधतो, टाळे भवना फंद...२... धर्मरत्न इम विनवे, सफल क्रिया फलदाय, सफल क्रियाविधि थापजो, महेर करी महाराय...३... तप पद नु चैत्यवंदन [१४] तप तपतां जे आकरां, कर्म निकाचीत जाय, हरीकेशी धन्नो वली, दृढ़प्रहारी शिव जाय...१... बाह्य अभ्यंतर जे कह्यां, तपना बार प्रकार, कनककेतु आराधतां, थाशे जिन निरधार...२... शल्य रहित समता सहित, तीक्ष्ण तप तलवार, धर्मरत्न गुरु इम भणे, जिनशासन शिरदार...३... गौतम पद नु चैत्यवंदन [१५] चौदर्श बावन गणधरा, चोवीश जिननां जाणो, गौतम सम दुजो नहीं, अह वचन प्रमाणो...१... जीहां जीहां दीजे दिक्ख, उपजे केवल त्यांही, अहवा मुनि भक्ति करू, मुज मनमांही उमांही...२... सुपात्र अहवा जे कह्या, तेहनी भक्ति करता, हरिवाहन यतिपति थशे, धर्मरत्न वरंता...३... जिन पद नु चैत्यवंदन [१६] गुणि जन दश जे वर्णव्या, जिनपद मुख्य कहंता, वैयावच्च करीये मुदा, फल अनंत लहंता...१... Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६०] चैत्यवन्दन नीच गोत्र बांधे नहीं, उंच गोत्र करे बंध, गाढ कर्म शीथील हुवे, वैयावच्च सुगंध...२... जीमूतकेतु आराधतो, लहेशे शिव संपत्त, धर्मरत्न अनुमोदता, टाळे सर्व विपत्त...३... संयम पद नु चैत्यवंदन [१७] राय पुरंदर मुनिवरा, करी बहु संघ समाधि, तीर्थंकर पद पामशे, टाली सर्व उपाधि...१... चित्त समाधि संयम धरे, अहीज मुक्ति निदान, संयम पद आराधतां, सत्तरमें गुणवान...२.. प्रमाण नय निक्षेपने, द्रव्यादिकथी विचार, निर्मल परिणामे लहे, धर्मरत्न भवपार...३... अभिनव ज्ञान नु चैत्यवंदन [१८] सुणतां भणतां नित नवा, आगम ज्ञान जे रंग, अपूरव श्रुत विचारी लहे, आत्मज्ञान ते अंग...१... श्रुतगंगामां न्हावता, सागरचंद गुणमाल, तीर्थकर पदवी थकी, टाळशे जगत जंजाल...२... अभिनव ज्ञाने रमणतां, मन वच काये लीन, बे कर जोडो प्रणमतां, धर्मरत्न निश दिन...३... श्रुत पद नु चैत्यवंदन [१६] अवधि मनःपर्यव वली, केवली ने मति ज्ञान, चउ मुंगा श्रुत अक छे, दूर करे अज्ञान...१... विषमकालमां को नहीं, अवधि केवलनाणी, तारणहारी ओक छे, श्रो जिन केरो वाणी...२... Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वमाला [६१] - चौद वीश श्रुत भेद ने, रत्नचूड मुनि भूप, धर्मरत्ननां ध्यानथो, थाशे आत्म स्वरूप...३... तीर्थ पद नु चैत्यवंदन [२०] वीशम स्थानक तीर्थ छे, श्री जिनशासन सार, स्थावर जंगम भेदथी, उतारे भवपार...१... तीरथ मानो तेह जे, टाळे करम विकार, स्थावर मांही जाणीये, सिद्धाचल गिरनार...२... अरिहंत गणधर मुनिवरा, जंगम तीरथराज, समवसरणमां समरतां, द्वादशांगी जिनराज...३... संघ चतुर्विध तिम लह्यो, तोरथ पुन्यवंत, मेरूप्रभ भक्ति करी, लहेशे पदवी गुणवंत...४... तपगच्छ नायक सुरतरु, विजय धर्मसूरि राय, तीरथ भक्ति जे करे, रत्नविजय नमे पाय...५... अक्षयनिधि तप नु चैत्यवंदन शासन नायक सुखकरण, वर्धमान जिनभाण, अहनिश अहनी शिर वहुं, आणा गुणमणी खाण...१ ते जिनवरथी पामीने, त्रिपदी श्री गणधार, आगम रचना बहुविध, अर्थ विचार अपार...२... ते श्री श्रुतमां भाखियाओ, तप बहुविध सुखकार, श्री जिन आगम पामीने, साधे मुनि शिव सार...३ सिद्धांत वाणी सुणवा रसिक, श्रावक समकित धार, इष्ठ सिद्धि अर्थे करे, अक्षयनिधि तप सार...४ तप तो सूत्रमा अति घणा, साधे मुनिवर जेह, अक्षय निधानने कारणे, श्रावकने गुणगेह...५ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२] चैत्य वन्दनं - ते माटे भवि तप करो अ, सर्व ऋद्धि मले सार, विधिशुं अह आराधतां, पामीजे" भव पार...६ श्री जिनवर पूजा करो, त्रिक शुद्ध त्रिकाल, तेम वली श्रुतज्ञाननों, भक्ति करो उजमाल...७ पडिकमणां बे टंकनां, ब्रह्मचर्यने धरी), ज्ञाननी सेवा करो, सहेजे भवजल तरी...८ चैत्यवंदन शुभ भावथीओ, स्तवनं थोय नवकार, श्रुतदेवो उपासना, धोरविजय हितकार...६ श्री उपधान तप नु चैत्यवन्दन विविध विषय जे तप तणां, भाख्यां श्री जिनराज, उपधान महानिशीथमां, आख्यो श्रावक काज...१ नवकार इरियावही, शक्रस्तव भगवान, अरिहंत चेइआणं लही, नामस्तव गुणगान...२ श्रुतस्तव सिद्धस्तव, तेह आखरी जाण, गुरुजन पासे आदरे, श्रावक तेह वखाण...३ माला पहेरे गुरु कने, धन धन जीवन तेह, धर्मरत्न ध्याने लहे, श्रावक शिवपुर गेह...४ श्री वर्षातप नु चैत्यवन्दन । क्लिष्ट कर्म खपाववा, वर्षीतप करे जेह, अंतराय परभव तणां, कापे भविजन तेह...१.. देववंदन त्रण कालनां, आवश्यक दोय वार, पडिलेहण पूजा वली, गणणुं दोय हजार...२... तप पूरण करी उजवे, सुलभबोधि जेह, धर्मरत्न पसायथी, पामे भवनो छेह...३... Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूज्य मुनि श्री दीपरत्नसागरजी [ M. Corn.. M.Ed. ) . द्वारा सम्पादित प्रकाशनो १. श्री नवकार महामंत्र नवलाख जाप नी नोंध पोथी (सर्व प्रथम वखत, प्रत्येक माला के लिए अलग नोंध की सुविधा)-१४ आवृति २. श्री चारित्र पद १ कोड जाप नो नोंधपोथी (क्षायिक चारित्र प्राप्ति अर्थे)-३ आवृति ३. श्री बारव्रत पुस्तिका तथा अन्य नियमो सर्व प्रथम डबल कलर, विशिष्ट विभागीकरण तथा नियमो लेने को अत्यन्त सुविधायुक्त-३ आवृति ४. अभिनव जैन पचांग-२०४२ सूर्योदय से पूरीमढ-कामली का काल तथा शाम को दो घड़ो सहित का सर्व प्रथम प्रकाशन ५. अभिनव हेम लघु प्रक्रिया भाग १ सप्तांग विवरण ६. अभिनव हेम लघु प्रक्रयिा भाग २ सप्तांग विवरण ७. अभिनव हेम लघु प्रक्रिया भाग ३ सप्तांग विवरण ८. अभिनव हेम लघ प्रक्रिया भाग ४ सप्तांग विवरण ६. कृदन्तमाला (१२५ धातु का २३ प्रकार से कृदन्त) १०. शत्रु जय भक्ति-२ आवृति ११. श्री ज्ञानपद पूजा १२. शत्रुजय भक्ति हिन्दी में--२ आवृति १३. चैत्यवन्दन पर्वमाला १४. चैत्य वन्दन संग्रह (जिन तीर्थ विशेष) १५. चैत्यवन्दन चोवीसी ..१४, १५ प्रकाशित थई रही छे ॐ प्रकाशक ॐ अभिनव श्रुत प्रकाशन प्रवीणचंद्र जेसंगलाल महेता प्रधान डाक घर के पीछे, जामनगर-361 001 (सौराष्ट्र) Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्य सहायक रैवताचल तीर्थोद्धारक प. पू. नीतिसूरीश्वरजी म. सा. ना समुदायना परम तपस्वी पूज्य साध्वी श्री चन्द्रकलाश्रीजी म. ना उपदेश थी श्री जैन श्वे. मूर्ति. संघ, नडीयाद तरफथी 2045 मां कसवेल शिबिरनी स्मृति मां Filma பாகாண பாணாணாணாணாண்டி From : BOOK-POST PRINTED मुद्रक : ज्ञानोदय मुद्रणालय, नीमच brary.org