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चंत्य वन्दन अठाइ महोत्सव आदरे, सुणोये सद्गुरु पास, वडा कल्पे वली कीजिये, छठ तणो तप खास...२... जन्मोच्छव श्री वीरनो, दीक्षा केवल ज्ञान, पार्श्व नेमि वली अंतरा, आदिनाथ व्याख्यान...३ . संघ चतुर्विध अकठा, मिलिये सद्गुरु पास, सूत्र सुणो मन वस करी, पूरे वांछित आश...४... चउत्थ छठ अठम करी, सुणिये थिर करो चित्त, अकवीस वार आराधतां, ते पामे सुख नित...५... सिद्धारथ कुल शोभतो, स्वामो वीर जिणंद, अठाई महोच्छव आखीयो, कीत्तिचंद्र सुखकंद...६...
[१४] प्रथम चरम जिनपतिना, शासने निश्चे कह्यु, साधु ने श्रावक तणा, भव दोष हरवा गुण ग्रह्यु, अशाश्वतुं पण शाश्वतुं जे, सुख देतुं शिवकर, पर्वमांही गुणनिधि ते, पर्युषण सवि हितकरं...१... उपवास छट्ट अट्ठम वली, मास पास छमासी, तप विविध जातीना करंता, आत्म शक्ति विकासीओ, पुनोत अबुं कल्पसूत्र, भद्रबाहु रचित वरं.पर्व.२ द्रव्य भाव थी सांहमी वच्छल, चैत्य सवि जुहारी, खामणा अट्ठम करतां, शल्य तीन निवारी, सवि जीव ने सुख आपनारो, पडहो अमारि दुःखहरं.पर्व.३ गुरुमुखे व्याख्यान सुणीने, दान दुःखोने दीजिअ, वीर नेम पास आदि चरित्र, वाणी सुधा पीजीओ, आंतरा स्थविरावलो ने, सामाचारी विहित परं.पर्व.४
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