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चैत्यवन्दन प्रवचन पद मुज मन वस्युं, भवोभव होजो प्रीत, साते खेत भक्ति करू, धर्मरत्न जो चित्त...३...
आचार्य पद नु चैत्यवन्दन (४) पंचाचारने पाळतां, शुद्ध प्ररुपक जेह, छत्तीश गुणे शोभतां, आचारज वर तेह...१. सारण वारण चोयणा, पडिचोयणनां जाण, जीन सूरज अस्तंगता, सूरिवर दीप प्रमाण...२... युगप्रधान वीरशासने, धर्मरत्न नमे सार, पुरुषोत्तम सूरिपद थकी, पामशे मोक्ष द्वार...३.
स्थविर पद नु चैत्यवन्दन (५) थिविर पद आराधतो, पद्मोत्तर नृपति, तीर्थंकर पद पामशे, होशे त्रिभुवन पति...१... बाल ग्लानादिक जे वली, संयममां सीदाता, मधुर नीति समजावीने, स्थविर करंता शाता...२... ज्ञान थकी पर्यायथी, तिमहीज वयथी स्थविर, जीनशासन सोहावता, धर्मरत्न नमे धीर...३...
___ उपाध्याय पद नु चैत्यवन्दन (६) चौद दोषथी जे भर्या, अविनीत शिष्य अनेक, पंदर गुणवंता करे, उपाध्याय सुविवेक...१... अंग उपांगादिक का, जीनशासन श्रुत ज्ञान, भणे भणावे साचवे, दूरे करे अज्ञान...२... अ पदथी अरिहा थशे, महेंद्रपाल महाराज, धर्मरत्नने धारतां, सीझे सघलां काज...३...
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