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पर्वमाला
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तरणि किरण जेम वादले, होय निस्तेज सतेज, ज्ञान गुणे संशय हरी, वीर चरणे करे हेज...३...
मोर्यपुत्र गणधर नु चैत्यवंदन (६) सातमो मौर्यपुत्र जे, कहे देव न दीसे, वेद पदे जे भाखिया, तिहां मन नवि हीसे...१ यज्ञ करतो लहे सर्ग, ओ वेदनी वाणी, लोकपाल इंद्रादिक, सत्ता किम जाणी...२ इम संदेह निराकरीओ, वोर वयणथी तेह, ज्ञानविमल जिनने कहे, हुं तुम पगनी रेह...३
____ अकंपित गणधर नु चैत्यवन्दन (७) अकंपित द्विज आठमो, संशय छे तेहने, नारक होय परलोकमां, अ मिथ्या जनने...१ जे द्विज शुद्र असन करे, तसं नारक सत्ता, दाखी वेदे नवि कहे, अ तुज उन्मत्तता...२... मेरू परे शाश्वत नही, प्रायिक अहवी भाखी, ते संशय दूर कर्यो, ज्ञानविमल जिन साखी...३...
____ अचल भ्राता गणधर नु चैत्यवन्दन (८) . अचलभ्रातने मन वस्यो, संशय अक खोटो, पुण्य पाप नवि देखीये, अ अचरज मोटो...१ पण प्रत्यक्ष देखीये, सुख दुःख घणेरां, बीजानी परे दाखीये, वेद पद बहोतेरां...२.. समजावी ते शिष कर्यो, वीरे आणी मेह, ज्ञानविमल पाम्या पछी, गुण प्रगट्यो तस देह...३...
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