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चैत्य वन्दन ब्रह्मज्ञान तपे करी, आतम निर्मल लही, कर्म शरीरथी वेगलो, अम वेद सद्दहीओ...२... ज्ञानविमल गुणधन धणी, जडमां केम होय ओक, वीर वयणथी ते लह्यो, आणी हृदय विवेक...३...
____ व्यक्त गणधर नु चैत्यवन्दन (३) पंचभूतनो संशयी, चोथो गणी व्यक्त, इंद्रजालपरे जग कह्यो, तो किम तस सक्त...१... पृथ्वी पाणी देवता, इम भूतनी सत्ता, पण अध्यात्म चितने, नहि तेहनी ममता...२... इम स्याद्वाद मते करी, टाल्यो तस संदेह, ज्ञानविमल जिनचरणशं, धरता अधिक सनेह...३...
सुधर्मास्वामि गणधर नु चैत्यवन्दन (४) सोहमस्वामिने मने, छे संशय अहवा, जे इहां होय जेहवो, परभव ते तेहवो...१... शालि थकी शालि नीपजे, पण भिन्न न थाय, सुणी अहवो निश्चय नथी, अह कहे जिनराय...२... गोमयथीविंछी होवे अ, अम विसहस पण होय, ज्ञानविमल मतिशुं करी, वेद अरथ शुद्ध जोय...३...
मंडित गणधर नु चैत्यवन्दन (५) छट्टो मंडित बंभणो, बंध मोक्ष न माने, व्यापक विगुण जे आतमा, ते किम रहे छाने...१... पण सावरण थकी नहीं, केवल चिद्रुप, तेह निवारण थ, होय ज्ञान सरूप...२...
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