________________
[१२]
चैत्य वन्दन
लोकालोक प्रकाशतो अ, दर्शन ज्ञान अनंत, भाव तीर्थंकर तव थया, दान दया कर संत...३... नोंध : चैत्यवंदन 'नव-दश' विशेष रूपे केवल ज्ञान नु छ ।
पंचमी सामान्य नू चैत्यवन्दन
सकल सुरासुर साहिबो, नमीये जिनवर नेम, पंचमी तिथि जग परवड़ो, पालो जन बहु प्रेम...१... जिन कल्याणक अ तिथे, संभव केवल ज्ञान, सुविधि जिनेसर जनमीया, सेवो थई सावधान...२... च्यवन चंद्र प्रभु जाणोओ, अजित सुमति अनंत, पंचमी दिने मोक्षे गया, भेटो भविजन संत...३... कुथु जिन संजम ग्रह्यो, पंचमो गति जिनधर्म, नेमि जन्म वखाणी, पंचमी तिथि जग शर्म. पंचमीना आराधने, पामे, पंचम ज्ञान, गणमंजरी वरदत्त ते, पहोंच्या मोक्ष सुठाण...५... कार्तिक शुदी पंचमी थकी, तप मांडीजे खाश, पंच वरस आराधीओ, उपर वळी पंच मास. दश क्षेत्रे नेवु जिन तणां, पंचमी दिन कल्याण, अह तिथि आराधतां, पामे शिवपद ठाण...७... पडिकमणां दोय टंकनां, करिओ शुद्ध आचार, देव वंदो त्रण कालनां, पहोंचाडे भवपार...८... नमो नाणस्स गणणु गणो, नवकारवाली वीश, सामायिक शुद्ध मने, धरीले शियल जगीश...६...
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org