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________________ पर्वमाला [१७] जनम्या जेठ वदि आठमे, मुनिसुव्रत स्वामी, नेम आषाढ़ शुदि आठमे, अष्टमी गति पामी...५... श्रावण वदनी आठमे, नमि जनम्या जगभाण, तेम श्रावण शुदि आठमे, पासजी नु निर्वाण...६... भादरवा वदि आठम दिने, चविया स्वामी सुपास, जिन उत्तम पद पद्मने, सेव्याथी शिववास . ७... अष्टमी दिन धन जिनवर, चंद्रप्रभु मनोहार, सेवा करतां जेहनी, टाले भव दुःख द्वार...१... भगवत् भाखी जे वचन, धारे गुण भंडार, तेहिज अष्टमी तप भणु, आगम अर्थ उदार...२... ज्ञायक ज्ञेय स्वरूप थी, चरण धरे सुखकार, अष्टमी तप आराधवा, करे शुभ भाव विचार...३... अष्ट वरस आठ मासनो, तपविधि विधिमां सार, श्रावक तन-मन वचनथी, पाले निरतिचार.. पोसह पडिकमणं करीओ, पूजे जिन अंग अविकार, करुणासागर गुण भर्या, मुनिजन वंदे विचार...५... आगम वयण सुणि करीओ, पूछे प्रश्न विचार, गुरु गम लहीने सद्दहे, समकित वड विस्तार.. परम पुरुष परमेसरु, परमातम जगदीश, चंद्रप्रभु. जिन आठमां, वन्दो ते सुजगीश...७... सारण वारण चोयणा, प्रति चोयणा नां जाण, वस्त्र दीजे जो तेहने, लहे सुख निरवाण...८... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003634
Book TitleChaityavandan Parvamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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