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पर्वमाला
[८६] क्रिया पद नु चैत्यवंदन [१३]' खेदादिक दूरे करी, दूर करी दोय ध्यान, पचीश क्रियाने परिहरी, शुभ क्रिया बहुमान...१... हरिवाहन नृप साधतो, होशे विदेहे जिणंद, शुद्ध क्रियामां वाधतो, टाळे भवना फंद...२... धर्मरत्न इम विनवे, सफल क्रिया फलदाय, सफल क्रियाविधि थापजो, महेर करी महाराय...३...
तप पद नु चैत्यवंदन [१४] तप तपतां जे आकरां, कर्म निकाचीत जाय, हरीकेशी धन्नो वली, दृढ़प्रहारी शिव जाय...१... बाह्य अभ्यंतर जे कह्यां, तपना बार प्रकार, कनककेतु आराधतां, थाशे जिन निरधार...२... शल्य रहित समता सहित, तीक्ष्ण तप तलवार, धर्मरत्न गुरु इम भणे, जिनशासन शिरदार...३...
गौतम पद नु चैत्यवंदन [१५] चौदर्श बावन गणधरा, चोवीश जिननां जाणो, गौतम सम दुजो नहीं, अह वचन प्रमाणो...१... जीहां जीहां दीजे दिक्ख, उपजे केवल त्यांही, अहवा मुनि भक्ति करू, मुज मनमांही उमांही...२... सुपात्र अहवा जे कह्या, तेहनी भक्ति करता, हरिवाहन यतिपति थशे, धर्मरत्न वरंता...३...
जिन पद नु चैत्यवंदन [१६] गुणि जन दश जे वर्णव्या, जिनपद मुख्य कहंता, वैयावच्च करीये मुदा, फल अनंत लहंता...१...
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