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चैत्यवन्दन
नीच गोत्र बांधे नहीं, उंच गोत्र करे बंध, गाढ कर्म शीथील हुवे, वैयावच्च सुगंध...२... जीमूतकेतु आराधतो, लहेशे शिव संपत्त, धर्मरत्न अनुमोदता, टाळे सर्व विपत्त...३...
संयम पद नु चैत्यवंदन [१७] राय पुरंदर मुनिवरा, करी बहु संघ समाधि, तीर्थंकर पद पामशे, टाली सर्व उपाधि...१... चित्त समाधि संयम धरे, अहीज मुक्ति निदान, संयम पद आराधतां, सत्तरमें गुणवान...२.. प्रमाण नय निक्षेपने, द्रव्यादिकथी विचार, निर्मल परिणामे लहे, धर्मरत्न भवपार...३...
अभिनव ज्ञान नु चैत्यवंदन [१८] सुणतां भणतां नित नवा, आगम ज्ञान जे रंग, अपूरव श्रुत विचारी लहे, आत्मज्ञान ते अंग...१... श्रुतगंगामां न्हावता, सागरचंद गुणमाल, तीर्थकर पदवी थकी, टाळशे जगत जंजाल...२... अभिनव ज्ञाने रमणतां, मन वच काये लीन, बे कर जोडो प्रणमतां, धर्मरत्न निश दिन...३...
श्रुत पद नु चैत्यवंदन [१६] अवधि मनःपर्यव वली, केवली ने मति ज्ञान, चउ मुंगा श्रुत अक छे, दूर करे अज्ञान...१... विषमकालमां को नहीं, अवधि केवलनाणी, तारणहारी ओक छे, श्रो जिन केरो वाणी...२...
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