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पर्वमाला
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चौद वीश श्रुत भेद ने, रत्नचूड मुनि भूप, धर्मरत्ननां ध्यानथो, थाशे आत्म स्वरूप...३...
तीर्थ पद नु चैत्यवंदन [२०] वीशम स्थानक तीर्थ छे, श्री जिनशासन सार, स्थावर जंगम भेदथी, उतारे भवपार...१... तीरथ मानो तेह जे, टाळे करम विकार, स्थावर मांही जाणीये, सिद्धाचल गिरनार...२... अरिहंत गणधर मुनिवरा, जंगम तीरथराज, समवसरणमां समरतां, द्वादशांगी जिनराज...३... संघ चतुर्विध तिम लह्यो, तोरथ पुन्यवंत, मेरूप्रभ भक्ति करी, लहेशे पदवी गुणवंत...४... तपगच्छ नायक सुरतरु, विजय धर्मसूरि राय, तीरथ भक्ति जे करे, रत्नविजय नमे पाय...५...
अक्षयनिधि तप नु चैत्यवंदन शासन नायक सुखकरण, वर्धमान जिनभाण, अहनिश अहनी शिर वहुं, आणा गुणमणी खाण...१ ते जिनवरथी पामीने, त्रिपदी श्री गणधार, आगम रचना बहुविध, अर्थ विचार अपार...२... ते श्री श्रुतमां भाखियाओ, तप बहुविध सुखकार, श्री जिन आगम पामीने, साधे मुनि शिव सार...३ सिद्धांत वाणी सुणवा रसिक, श्रावक समकित धार, इष्ठ सिद्धि अर्थे करे, अक्षयनिधि तप सार...४ तप तो सूत्रमा अति घणा, साधे मुनिवर जेह, अक्षय निधानने कारणे, श्रावकने गुणगेह...५
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