________________
[१०]
चैत्य वन्दन
कोइक चारित्रवंतने, चढते शुभ परिणामे, मनवा भाव जाणे सही, सागारी उपयोग ठामे...२... चितवता मनोद्रव्यनाओ, जाणे खंध अनंता, आकाशे मनोवर्गणा, रह्या ते नवि मुणता...३.. संज्ञी पंचेंद्रिय प्राणोये, तनु योगे करो ग्रहीया, मनयोगे करो मनपणे, परिणमे ते द्रव्य मुणिया...४... तिर्छ माणस क्षेत्रमा, अढिद्विप सही विलोके, तिलिोक ना मध्य थी. सहस जोयण अधोलोके...५.. उरध जाणे ज्योतिष लगे अ, पलियनो भाग असंख, कालथी भाग थया थशे, अतीत अनागत संख...६... भावथी चिंतित द्रव्यना, असंख्य पर्याय जाणे, ऋजुमति थी विपुलमति, अधिका भाव वखाणे...७... मनना पुद्गल देखीने, अनुमाने ग्रहे साचु, वितथपणु पामे नहीं, ते ज्ञावे. चित्त राचु...८... अमर्त्त भाव प्रगटपणे, जाणे श्री भगवंत, चरण कमल नमु तेहना, विजयलक्ष्मी गुणवंत...६...
___ केवलज्ञान नु चैत्यवन्दन
श्री जिन च उनाणी थई, शुक्ल व्यान अभ्यामे, अतिशय अतिशय आत्मरूप, क्षण क्षण प्रकाशे...१. निद्रा स्वप्न जागर दशा, ते सवि दूरे होवे, चोथी उजागर दशा, तेहनो अनुभव जोवे...२... क्षपक श्रेणि आरोहियाओ, अपूर्व शक्ति संयोगे, लही गुणठाणु बारमु, तूरीय कषाय वियोगे...३...
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org