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पत्रमाला
पंचमी तप आराधतां, लहे पंचम नाण, पंच वरस पंच मासनो, अ छ तप परिमाण...२... जिम वरदत्त गुणमंजरीओ, आराध्यो तप अह, ज्ञान विमल गुरु अम कहे, धन धन जगमां तेह...३...
मतिज्ञान नु चैत्यवन्दन
[४] श्री सौभाग्य पंचमी तणो, सयल दिवस शिणगार, पांचे ज्ञानने पूजीये, थाये सफल अवतार... सामायिक पोसह विषे, निरवद्य पूजा विचार, सुगंध चूर्णादिक थकी, ज्ञान ध्यान मनोहार...२... पूर्व दिशे उत्तर दिशे, पीठ रची त्रण सार, पंच वरण जिन बिंबने, स्थापीजे सुखकार...३... पंच पंच वस्तु मेलवी, पूजा सामग्री जोग, पंच वरण कळशा भरी, हरीये दु:ख उपभोग. यथाशक्ति पूजा करो, मतिज्ञान ने काजे, पंच ज्ञानमां धूरे कह्यु, श्री जिनशासन राजे...५... मति श्रुत विण होवे नहि, अवधि प्रमुख महाज्ञान, ते माहे मति धुरे कह्यु, मति श्रुतमां मति मान...६ क्षय उपशम आवरणनो, लब्धि होये समकाले, स्वाम्यादिकथी अभेद छे, पण मुख्य उपयोग काले....७... लक्षण भेदे भेद छे, कारण कारज जोगे, मति साधन श्रुत साध्य छे, कंचन कलश संयोगे...८...
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