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चंत्यवन्दन गुरु प्ररूपे वायणा, भाव भक्ति ने काजे, . छठ तप करी निर्मलो, आतम शक्ति छाजे...५... प्रतिपदा से प्रभु वीरनो, जन्म महोच्छव कीजे, भगति वत्सल भगवंतनी, सेवा भवि कीजे...६... अट्ठम तप करी निरमलो, सकल सुणो अधिकार, नागकेतुनी परे निरमलो, जेम पामो भवपार...७... वली सुणवा बारशें सूत्रनां, भवि थई उजमाल, श्रीफल स्वामी प्रभावना, करी टालो जंजाल...८... अट्ठाइ महोत्सव अणीपेरे, पालो निरतीचार, कारज़ कारण फल होशे, तो तरसो भवपार...६... द्विप नंदिसर आठमे, देव मली समुदाय, अठाइ ओच्छव करी, निज-निज थानक जाय...१०... सुलभबोधी जीवने, हरखे साते धात, ते माटे आराधवा, मन कीजे रळीयात...११... तपगच्छ नायक गुणनीलो, विजयसेन सूरीराय, पंडित पद्मविजय तणो, दीपविजय गुण गाय...१२...
[११] पर्व पर्युषण गुणनोलो, नव कल्प विहार, चार मासांतर स्थिर रहे, अहिज अर्थ उदार...१... अषाढ़ शुदि चौदश थकी, संवत्सरी पचास, मुनिवर दिन सीत्तेर में, पडिक्कमतां चोमास...२... श्राबक पण समता धरी, करे गुरुनां बहुमान, कल्पसूत्र सुविहित मुखे, सांभळे थई अकतान...३...
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