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पर्वमाला
[८७] साधु पद नु चैत्यवन्दन (७) नमो लोओ सव्व साहूणं, सात, पद जपंता, सिद्धि साधक वंदता, अशुभ कर्म खपंता...१... नवविध गुप्ति पाळतां, पंच इंद्रियने जीते, नवविध परिग्रह टाळतां, शांत सुधारस पीते...२ मुनिपद आराधन लही, वीरभद्र थशे सिद्ध, धर्मरत्न प्रभु ध्यानथी, पामे सघली रिद्ध...३...
ज्ञान पद नु चैत्यवंदन (८) गुण अनंत आतम तणां, तेहमां मुख्य दोय, सम्यग् ज्ञान शिरमोर छे, जिणथी दंसण होय...१. हेय उपादेय जाणवा, ज्ञान अक आधार, तप जपथी पण अधिक जे, कर्म खपावणहार...२... जयंत भूप आराधतो, पामे पदवी ईश, धर्मरत्न पसायथी, ज्ञान नमो निश दिश...३...
. दर्शन पद नु चैत्यवंदन (8) हरिविक्रम नृपति परे, दर्शन पद आराधे, क्षायिक समकितने लही, शिवगति ते साधे...१... ज्ञान चारित्र नवि फल दीये, जो नवि दर्शन पासे, दुःषमकाल दर्शन मले, तेहनो जन्म विभासे...२ श्रद्धाभासन तत्त्व रमण, सम्यग् दर्शन काजे, धर्मसूरि गुरु महेरथी, रत्नविजय दिवाजे..
विनय पद नु चैत्यवन्दन (१०) पांच तेर बावन वली, छासठ विनय प्रकार, रत्नत्रय संवर तिमज, निर्जरानो आधार...१...
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