Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 89
________________ पर्वमाला [८५] - - श्री वीशस्थानकना चैत्यवंदनो ____ अरिहंत पद नुचैत्यवंदन (१) भूत भावि वर्तमानमां, जे होवे अरिहंत, वोशस्थानक आराधतां, अतिशे पुण्यवंत...१... जीव मात्र कल्याणनी, भावंता दिन रात, भावना सह करतां वली, कठिन करमनो घात...२... भव त्रोजे नीकाचतां, तीर्थंकर नाम गोत, वाणी गुण पांत्रीश लहे, चोत्रीश अतिशय होत...३... अरिहंत पद आराधतां, श्रेणिक होशे जिन, देवपालादिक तिम होशे, अजरामर पद लीन...४... महागोप माहण वली, निर्यामक सत्थवाह, ते अरिहंतने प्रणमतां, धर्मरत्न उत्साह...५ सिद्ध पद नु चैत्यवन्दन (२) सादि अनंत भागे सुखी, सिद्धातम महाराय, अज अविनाशी अगोचरु, इकतीश गुण गणाय... समय अक उर्ध्व गति, सिद्धशिलाओ जाय, हस्तिपाल पद सेवीने, परमानंदी थाय...२... सिद्धिगतिने पामवा, धर्मरत्न गुण गाय, गुणीजननां गुण गावतां, पूर्णानंदी थाय...३... प्रवचन पद नु चैत्यवन्दन (३) त्रिकालमां जे शाश्वतुं, प्रवचन पद गंभीर, भरतादिक आराधतां, पामे भवजल तीर...१... साहु श्रावक साहुणी, श्राविका पण जाण, भक्ति करता तेहनी, प्रवचन पद वखाण...२... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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