Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 88
________________ [ ८४ ] थिविर वली पद पंचमें, दश गुणे जे शोभंत, पचवीस गुण उवझायना, छठे पद महंत...३... सकल साधु पद सात में, सगवीस गुण सुखकार, नमो नाणस्स पद आठमें पांच गुणे श्रीकार... ४... नवमें पद निर्मल जपो, दर्शन जेह सुखकंद, सडसठ गुणे शोभतो, पामे परमाणंद... ५... पद प्रणमुं दशमें वली, विनय गुण अभिराम, चारित्र पद अग्यारमें, सत्तर गुण सुजाण... ६... बंभवय गुण बारमें, नव गुण निश्चय जेह, पचवीस गुण किरिया तणा, तेरमें पद वली तेह... ७... पद चौदम सुखकरु, तवस्स तिलक समान, बार गुणे जे आदरे, पामे परम निधान... ८... पन्नर में पद प्रणमीये, गोयम गुरु गुणखाण, अठावीस गुण अति भला, आपे नव निधान... ६... जिणाणं पद जपीये सदा, चउवीस गुण चित्त धार, नमो चारित्र पद सत्तरमें, तेहनां पांच प्रकार... १०... नमो नाणस्स अढारमें, अकावन गुणसार, सुअस्स पद ओगणीस में, तेनां बार गुण धार...११... वीसमें पद प्रणमं वली, तीत्थस्स तेहनुं नाम, पंच वीस गुणे ध्यावतां, सीझे वांछित काम... १२... तीर्थंकर पद ते लहे, जे करे तप मनोहार, नोकारवाली वोश वीश, पंदे पदे श्रीकार... १३... कीजे काउसग मन रली, जेहनां गुण वली जेह, कीत्तिचंद्र समरे सदा, दीजे तप विधि अह... १४... For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International चैत्य वन्दन 1

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