Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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चैत्यवन्दन
[ -२]
[२]
वर्धमान जिन उपदिशे, वर्धमान तप सार, करवो विधि जोगे सदा, कठिन कर्म संहार... १...
ओकेकुं आंबिल वधे, यावत् शत परिमाण, साधिक चौदे वर्षमां, पूरण गुणमणि खाण...२... तप मंदिरनी उपरे ओ शोभे शिखर समान, अ, धर्मरत्न तपस्या करी, पामो पद निर्वाण...३...
[३]
त्रिगडे त्रिभुवन वालहो, भाखे तपना भेद, अकसो तेत्री मुख्य छे, करवा कर्म विच्छेद...१... तेमां पण धूर मोटको महा उग्र तप अह, शूरवीर कोई आदरे, निर्मल थाशे देह्...२...
रोग विघ्न दूरे करे अ, उपजे लब्धि अनेक, क्षमा सहित आराधतां धर्मरत्न सुविवेक...३... [ ४ ]
बेकर जोडी प्रणमीओ, वर्धमान तप धर्म, त्रिकरण शुद्धे पाळता, टळे निकाचीत कर्म...१... वर्धमान तप सेवीने, केइ पाम्या भव पार, अंतगड सूत्रे वर्णव्या, वंदु अंतराय पंचक टळेओ, बांधे जिनवर गोत्र, नमो नमो तपरत्नने, प्रगटे आतम ज्योत...३... वीश स्थानक तपना चैत्यवंदनो
वारंवार...२...
[१] पहेले पद अरिहंत नमुं, बीजे सर्व सिद्ध, त्रीजे प्रवचन मन धरो, आचारज ऋद्ध...१...
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