Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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चैत्यवन्दन
काशी कोशल देशना, मलिया राय अढार, स्वामी सुणी सौ आवीया, वंदनने निरधार...३... सोल पहोर दीधि देशना, जाणी लाभ अपार, दीधी भविहित कारणे, पोधी तेहीज पार...४... देवशर्मा बोधन भणी, गोयम गया सुजाण, कात्तिक अमावस्या दिने, प्रभु पाम्या निर्वाण...५... भाव उद्योत गयो हवे, करो द्रव्य उद्योत, इम कही राय सरवे मलो, कीधी दीपक ज्योत...६... दिवाली तिहांथी थइ, जगमांही प्रसिद्ध, पद्म कहे आराधतां, लहीले अविचल रिद्ध...७...
[४] चरम चोमासु वीरजी, पावापुरी नयरी, मुनिवर वृदे आवीया, जित अंतर वयरी...१... देश अढारना नरपति, वंदे प्रभु पाय, सोळ पहोरनी देशना, दोधो जिनराय...२... पुन्य पाप फल केरडां, पंचावन भाख्या, छत्रीश अण पुछयां वळी, अज्झयणां दाख्या...३... प्रधान अध्ययन भावतां, पाम्या प्रभु निरवाण, कात्तिक अमासने दहाडले, पांच अक्षर मान...४... गण राये दीवा कर्या, द्रव्य उद्योतने काज, दिवाली ते दिन थकी, प्रगटी पुन्य समाज...५... उत्तम गुरु गौतम भणी, उपनुं केवलनाण, पद्मविजय कहे मोटको, अह परम कल्याण...६...
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