Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 81
________________ पर्वमाला [७७] तरणि किरण जेम वादले, होय निस्तेज सतेज, ज्ञान गुणे संशय हरी, वीर चरणे करे हेज...३... मोर्यपुत्र गणधर नु चैत्यवंदन (६) सातमो मौर्यपुत्र जे, कहे देव न दीसे, वेद पदे जे भाखिया, तिहां मन नवि हीसे...१ यज्ञ करतो लहे सर्ग, ओ वेदनी वाणी, लोकपाल इंद्रादिक, सत्ता किम जाणी...२ इम संदेह निराकरीओ, वोर वयणथी तेह, ज्ञानविमल जिनने कहे, हुं तुम पगनी रेह...३ ____ अकंपित गणधर नु चैत्यवन्दन (७) अकंपित द्विज आठमो, संशय छे तेहने, नारक होय परलोकमां, अ मिथ्या जनने...१ जे द्विज शुद्र असन करे, तसं नारक सत्ता, दाखी वेदे नवि कहे, अ तुज उन्मत्तता...२... मेरू परे शाश्वत नही, प्रायिक अहवी भाखी, ते संशय दूर कर्यो, ज्ञानविमल जिन साखी...३... ____ अचल भ्राता गणधर नु चैत्यवन्दन (८) . अचलभ्रातने मन वस्यो, संशय अक खोटो, पुण्य पाप नवि देखीये, अ अचरज मोटो...१ पण प्रत्यक्ष देखीये, सुख दुःख घणेरां, बीजानी परे दाखीये, वेद पद बहोतेरां...२.. समजावी ते शिष कर्यो, वीरे आणी मेह, ज्ञानविमल पाम्या पछी, गुण प्रगट्यो तस देह...३... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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