Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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पर्वमाला
[६३] .
विकालिकपणे कर्म कषाय टाले,
निकाचीतपणे बांधिया तेह बाले, कह्यु तेह तप बाह्य अंतर दुभेदे,
क्षमायुक्त निर्हेतु दुर्ध्यान छेदे...२ होये जास महिमा थकी लब्धि सिद्धि,
अवांछकपणे कर्म आवरण शुद्धि, तपो तेह तप जे महानंद हेते,
होय सिद्धि सीमंतिनी जिम संकेते...३ इशा नवपद ध्यान ने जेह ध्यावे,
सदानंद चिद्रुपता तेह पावे, वली ज्ञानविमलादि गुणरत्नधामा,
___नमुं ते सदा सिद्धचक्र प्रधाना...४ इम नवपद ध्यावे, परम आनंद पावे, नवमे भव शिव जावे, देव नर भव पावे, ज्ञानविमल गुण गावे, सिद्धचक्र प्रभावे,
सवि दुरित शमावे, विश्य जयकार पावे...५
अरिहंत पद नु चैत्यवन्दन [१०] जय जय श्री अरिहंत भानु, भवि कमल विकाशी, लोकालोक अरूपी रूपी, समस्त वस्तु प्रकाशी...१ समुद्घात शुभ केवले, क्षय कृत मल राशी, शुक्ल चमर शुचि पादसे, भयो वर अविनाशी...२ अंतरंग रिपुगण हणी, हुले अप्पा अरिहंत, तसु पद पंकजमें रही, हीर धरम नित संत...३
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