Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 65
________________ पर्वमाला * करे सेवना सूरि तायग गणिनी, करू' वर्णना तेहनी शी मुणिनी, समेता सदा पंचसमिति त्रिगुप्ता, त्रिगुप्ते नहीं काम भोगेषु लिप्ता... २ बळी बाह्य अभ्यंतर ग्रंथि टाळी, होये मुक्तिने योग्य चारित्र पाळी, शुभाष्टांग योगे रमे चित्त वाली, नमुं साधुने तेह निज पाप टाळी... ३ दर्शन पद नुं चैत्यंवन्दन [६] जिणुत्त तत्ते रूइ लक्खणस्स, नमो नमो निम्मलदंसणस्स, मिच्छत्तनासाइसमुग्गमस्स, मूलस्स सुधम्ममहादुमस्स. १ विपर्यास हठ वासना रूप मिथ्या, टले जे अनादि अछे जे कुपथ्या, जिनोक्ते होये सहजथी सद्दधानं, [६१] विना जेहथी चरित्रं कहिये दर्शनं तेह परमं निधानं... २ ज्ञानमज्ञानरूपं, विचित्रं भवारण्यकूपं, प्रकृति सातने उपशमे क्षये ते होवे, तिहां आपरूपे सदा आप जोवे ... ३ ज्ञान पद नुं चैत्यवन्दन [७] अन्नाणसं मोहत मोहरस्स, नमो नमो नाणदिवायरस, पंचपयारस्सुवगारगस्स, सत्ताण सव्वत्थपयास गस्स. १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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