Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 71
________________ पर्वमाला सम अरू विषम पणे करी, गुण पर्याय अनंत, ओक ओक परदेशमां, शक्ति त्रिजग महंत... ४... . रूपातीत व्यतीत मल, पूर्णानंदी इश चिदानंद ताकुं नमत, विनय सहित निज शिष... ५... [३] तुम्हे तरणतारण दुःखनिवारण, भविकजन आराधनं, श्री नाभिनंदन त्रिजगवंदन, नमो सिद्ध निरंजनं. १ जगत भूषण विगत दूषण, प्रणव प्राण निरूपकं, ध्यान रूप अनूप उपमं नमो सिद्ध निरंजनं. २ गगन मंडल मुक्ति पद्म, सर्व उर्ध्व निवासनं, ज्ञान ज्योति अनंत राजे, नमो सिद्ध अज्ञान निद्रा विगत वेदन, दलित मोह निराउखं, 1 निरंजनं. ३ निरंजनं. ४ विसर्जनं, निरंजनं. ५ नाम गोत्र निरंतरायं, नमो सिद्ध विकट क्रोधा मान योधा, माया लोभ राग द्वेष विर्मादितांकुर, नमो सिद्ध विमल केवलज्ञान लोचन, ध्यान शुक्ल समीरितं, योगिनामिति गम्यरूपं, नमो सिद्ध निरंजनं. ६ योगमुद्रा सम समुद्रा, करी पर्यंकासनं, योगिनामिति गम्य रूपं, नमो सिद्ध निरंजनं ७ जगत जाके दास दासी, तास आश योगिनामिति गम्य रूपं नमो सिद्ध [ ६७ ] समय समकित दृष्टि जनकी, सोय योगी देखिता मिलि न होवे, नमो सिद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only निरासनं, निरंजनं. ८ अयोगिकं, निरंजनं. ६ www.jainelibrary.org

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