Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 68
________________ चैत्य वन्दन [ ६४ ] सिद्ध पद तु चैत्यवन्दन [११] श्री शैलेषी पूर्व प्रांत, तनु हीन त्रिभागी, पुव्वपओग पसंगसे, उरध गत जागी... १... समय अकमें लोकप्रांत, गये निर्गुण नीरागी, चेतन भूपे आत्मरूप, सुदिशा लही सागी...२... केवल दंसल नाणथी ओ, रूपातीत स्वभाव, सिद्ध भये जसु हीरधर्म, वंदे धरी शुभ भाव...३... आचार्य पद नुं चैत्यवन्दन [१२] जिनपद कुल मुखरस अनिल, मतरस गुण धारी, प्रबल सबल धन मोहकी, जिणते चमु हारी...१... ऋज्वादिक जिनराज गीत, नय तन विस्तारी, भव कूपे पापे पडत, जग जंग निस्तारी ... २... पंचाचारी जिवके, आचारज प्रद तीनकुं वंदे हीरधर्म, अट्ठोत्तरसो वार...३... उपाध्याय पद नुं चैत्यवन्दन [१३] सार, धन धन श्री उवज्झाय राय, शठता धन भंजन, जिनवर देशिल दुवालसंग, कर कृत जनरंजन... १ गुणवन भंजन मय गयंद, सुय शणि किज गंजण, कुलालंध लोय लोयणे, जत्थ य सुख मंजण... २ महाप्राण में जिन लह्यो अ, आगमसे पद तुर्य, तीन पे अहनिश हीरधर्म, वंदे पाठकवर्य ... ३ साधु पद तु चैत्यवंदन (१४) दंसण नाण चरित करी, वर शिवपदगामी, धर्म शुक्ल शुचि चक्रसे, आदिम चय कामी... १... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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