Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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चैत्यवन्दन
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होये जेहथी ज्ञान शुद्ध प्रबोध,
यथावर्ण नासे विचित्रावबोध, तेणे जाणिये वस्तु षड् द्रव्य भावा,
नहुये वितत्था निजेच्छा स्वभावा...२ होये पंचमत्यादि सुज्ञान भेदे,
गुरुपास्तिथी योग्यता तेह वेदे, वळी हेय ज्ञेय उपादेय रूपे, ___ लहे चित्तमां जेम ध्वांत प्रदीपे...३
चारित्र पद नू चैत्यवन्दन [-] आराहि अखंडिअसक्किअस, नमो नमो संजम वीरिअस्स, सब्भावणा संगविवड्ढि अस्स,निव्वाणदाणाइ समुज्जयस्स.१ वली ज्ञानफल चरण धरिये सुरंगे, निराशंसता द्वार रोध प्रसंगे, भवांभोधि संतारणे यानतुल्यं,
धरू तेह चारित्र अप्राप्तमूल्यं...२ होये जास महिमाथकी रंक राजा,
वळी द्वादशांगी भणी होय ताजा,
वळी पापरुपोपि निःपाप थाय, - थइ सिद्ध ते कर्मने पार जाय...३
तप पद नु चैत्यवन्दन [६] कम्मदुमोम्मूलणकुंजरस्स, नमो नमो तिव्वतवोभरस्स, अणेगल ध्यीण निबन्धणस्स, दुसझायठाणस्स पसाहणस्स.१
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