Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 64
________________ [६० ] नमुं सूरिराजा सदा तत्त्वताजा, जिनेंद्रागमे प्रौढ साम्राज्य भाजा, षड्वर्ग वर्गित गुणे शोभमाना, पंचाचारने पालवे सावधाना चंत्य वन्दन २ भवि जिवने देशना देश काले, सदा अप्रमत्ता यथा सूत्र आले, झिके शासनाधार दिग्दतिकल्पा, जगे ते चिरंजीवजो शुद्ध जल्पा... ३ उपाध्याय पद नुं चैत्यवन्दन [४] सुत्तत्थवित्थारणतप्पराणं, नमो नमो वायग-कुंजराणं, गणस्स साधारणसारयाणं, सव्वक्खणावज्जियमंथराणं. १ नहीं सूरि पण सूरिगणने सहाया, नमुं वाचका त्यक्त मद मोह माया, वळी द्वादशांगादि सूत्रार्थदाने, Jain Education International झींके सावधाना निरुद्धाभिमाने... २ धरे पंच ने वर्ग वर्गित गुणोघा, प्रवादि-द्विपोच्छेदने तुल्य सिंधा, गुणी गच्छ संधारणे स्थंभभूता, उपाध्याय ते वंदिये चित्प्रभूता... ३ साधु पद नुं चैत्यवन्दन [५] साहूण संसाहि असंजमाणं, नमो नमो शुद्धदयादमाणं, तिगुत्तिगुत्ताण समाहियाणं, मुणींदमानंदपर्यट्टि आणं. १ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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